किसान आंदोलन को 100 दिन से ज्यादा का समय हो गया है. लेकिन अभी तक किसान आंदोलन का भविष्य अंधेरे में ही नजर आ रहा है. सरकार की तरफ से तीन कृषि कानून बनाए गए थे. जिनके विरोध में किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं कि ये कानून किसानों को बर्बाद कर देगें. ये तीने कानून वापिस लेने चाहिए.
सरकार भी इस बात पर अड़ी हुई है कि ये कानून किसानों की भलाई के लिए बनाए गए हैं. बड़े स्तर पर किसानों को इनसे फायदा होगा. प्रधानमंत्री मोदी के 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने में ये कानून बहुत मद्दगार साबित होगें. लेकिन सरकार इन कानूनों की वापिस लेने से साफ तौर पर मना कर चुकी है.
काफी दौर की वार्ता के बाद अब सरकार और किसानों के बीच कोई वार्ता भी नहीं हो रही है. सरकार की तरफ से इस तरह का रूख भी समझ से परे है क्योंकि जहाँ भी विरोध होता है या कोई भी आंदोलन होता है उनके साथ साथ वार्ता का दौर भी चलता रहता है. इसका कारण ये है कि विवाद का हल वार्ता से ही निकल सकता है.
इसी बात को ध्यान में रखते हुए तथा किसानों की सरकार के प्रति नाराजगी को देखते हुए ही मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी बयान दिया कि सरकार को अब किसान आंदोलन का हल निकालना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि सरकार MSP पर कानून बना देती है, तो किसानों से बात करके मै आंदोलन को खत्म करा सकता हूँ. लेकिन सरकार की तरफ से कोई भी वार्ता की तारिख तय नहीं की जा रही है. किसान और सरकार अपनी अपनी जिद पर हैं. किसानों का कहना है कि वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार की तरफ से वार्ता का निमंत्रण ना चाहिए. लेकिन सरकार का इस मुद्दे पर ध्यान ना देना भी समझ से परे नजर आता है,क्योंकि चुनी हुई प्रतिनिधि होने के नाते सरकार का किसानों से बात करने का पहला दायित्व बनता है.
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इस आंदोलन के समाधान की बात करें, तो इसके लिए सरकार को किसान नेताओं से लगातार वार्ता करनी चाहिए तथा किसी ऐसे फैसले तक जल्द से जल्द पहुँचना चाहिए जहाँ पर किसान नेता और सरकार दोनों सहमत हों. जैसे MSP पर कानून बनाया जा सकता है. कृषि कानूनों में संसोधन किए जा सकते हैं इत्यादि.