विजयदशमी पर हम रावण तो जलाते है, लेकिन क्या हम इन रावणों को भी जलाते है

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दशहरा एक हिंदू त्यौहार है जिसे कई युगों से बुराई पर जीत के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस दौरान आप जानते ही होगें की दशहरे की दिन रावण को जलाया जाता है औ समाज में बुराई के ऊपर अच्छाई के जीत का संदेश दिया जाता है।

दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘दश-हर’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ दस बुराइयों से छुटकारा पाना है। दशहरा उत्सव, भगवान् श्रीराम का अपनी अपहृत पत्नी को रावण पर जीत प्राप्त कर छुड़ाने के उपलक्ष्य में तथा अच्छाई की बुराई पर विजय, के प्रतीकात्मक रूप में मनाया जाता है।
लेकिन सवाल उठता है की आख़िर इतनी सदियों से हम दशहरे को बुराई पर अच्छाई के जीत के उपलक्ष में मनाते आ रहे है तो ऐसा क्यों है की हम अपने अंदर की बुराई को ख़त्म नहीं कर पाते है। आख़िर वो कौन सी बुराईयां है जिनको हमें रावण के ख़त्म होने के साथ-साथ ही ख़त्म करनी चाहिए।

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भ्रष्टाचार

हम रावण तो जलाते है ये सोचकर की यह बुराई का प्रतीक है लेकिन क्या हम कभी अपने अंदर की उस बुराई को भी जलाते है जो हमें भ्रष्टाचार करने के लिए मजबूर करता है।

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अशिक्षा

रावण के साथ-साथ हमें अशिक्षा को भी पुरी तरह से जला देना चाहिए। क्योंकि यह अशिक्षा ही है जो समाज में भेदभाव को जन्म देता है। इसी अशिक्षा के कारण ही हम दुनिया में तरक्की नहीं कर पाते है।

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बेरोजगारी

बेरोजगारी भी किसी रावण से कम नहीं है। बेरोजगारी एक ऐसा किस्म का रावण है जो हमारे देश के युवाओं के अंदर नफ़रत और जुर्म का बीज बो रहा है। इसे जड़ से ख़त्म करने की जरुरत है।

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धर्म और जात-पात की राजनीति का अंत हो

रावण का अंत तो हम हर साल कर ही देते है लेकिन जात-पात और धर्म की राजनीति का अंत हम कैसे करें हम सभी को इस चीज के ऊपर विचार करना चाहिए। क्योंकि धर्म और जात की राजनीति नें हमारे देश को कई सालों के लिए पिछे धकेल दिया है।

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भेदभाव

हमारे देश को आज़ाद हुए 70 साल हो चुके है लेकिन अभी भी समाज में कई लगों के साथ भेदभाव होता है। जो हमारे समाज के लिए एक केंसर है। हम आधुनिक युग में तो जी रहे है फिर भी हम धर्म, जात और आर्थिक बुनियाद पर लोगों के साथ भेदभाव करते है।

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महिला अत्याचार

इकस्सवीं सदी के रफ़्तार के साथ दौड लगा रहे भारत में आज भी महिलाएँ सुरक्षित नहीं है। महिलाएँ आज भी न तो घर के अंदर सुरक्षित है और न ही कार्यस्थलों पर। हर दिन हमारे समाज में हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार होता। आज भी औरत को हमारे समाज में मर्द के बराबर दर्जा नहीं दिया जाता है।