उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर बज रहे सभी तरह के लाउडस्पीकर पर रोक लगा दी है. इस काम के लिए सरकार ने ख़ास हिदायतें भी जारी कर दी हैं. सरकार की तरफ से मिली सूचना में साफ़ कहा गया है कि बगैर अनुमति के बज रहे सारे अवैध लाउडस्पीकर 20 जनवरी तक हटा लिए जाने चाहिए.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए आदेश
प्रदेश सरकार का ये फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद आया है. कोर्ट ने धर्मस्थलों, सार्वजनिक जगहों, जुलूसों और जलसों आदि में बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगाने को कहा है. हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2017 को यूपी सरकार से सवाल किया था कि किसके आदेश पर लाउडस्पीकर बज रहे हैं? हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंदिर और मस्जिद में लाउडस्पीकर बजाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर उत्तर प्रदेश के गृह सचिव, मुख्य सचिव और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के प्रमुख को तलब किया था. तब कोर्ट ने कहा था कि किसी भी खास मौके पर सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकर बजाने से पहले प्रशासन से इजाजत लेनी होगी और तय शर्तों के साथ ही लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति मिलेगी.
फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी जगहों पर बजने वाले लाउडस्पीकरों पर रोक लगा दी है. प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने निर्देश दिया है कि लाउडस्पीकर का उपयोग करने वाले 15 जनवरी तक नए नियम के मुताबिक अनुमति हासिल कर लें. वरना 20 जनवरी तक सभी लाउडस्पीकर हटा लिए जाएं. इस संबंध में प्रमुख सचिव गृह को 1 फरवरी को हाई कोर्ट को रिपोर्ट भी देनी है.
लाउड स्पीकर के लिए ये है कानून?
ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण) कानून, 2000 जो पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के तहत आता है की 5वीं धारा लाउडस्पीकर्स और सार्वजनिक स्थलों पर बजने वाले यंत्रों पर मनमाने अंदाज में बजने पर अंकुश लगाता है.
- लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर ध्वनि यंत्र बजाने के लिए प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी होगी.
- रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक सार्वजनिक स्थलों पर लाउडस्पीकर या यंत्र नहीं बजाए जा सकेंगे. हालांकि ऑडिटोरियम, कांफ्रेंस रूम, कम्युनिटी और बैंकट हॉल जैसे बंद कमरों या हॉल में इसकी अनुमती है.
- नियम की उपधारा (2) के अनुसार, इस संबंध में राज्य सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों में रियायतें दे सकती है. वो यंत्रों को बजाने की अनुमति रात 10 बजे से बढ़ाकर 12 बजे तक कर सकती है. लेकिन किसी भी परिस्थिति में एक साल में 15 दिन से ज्यादा ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती.
- राज्य सरकार के पास अधिकार होता है कि वह क्षेत्र के हिसाब से किसी को भी व्यावसायिक, औद्योगिक, आवासीय या शांत क्षेत्र घोषित कर सकती है. शैक्षणिक संगठन, अस्पताल, और कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में ऐसे कार्यक्रम नहीं कराए जा सकते, क्योंकि सरकार इन क्षेत्रों को शांत जोन क्षेत्र घोषित कर सकती है.
अलग-अलग क्षेत्रों में तय है ध्वनि सीमा
- सार्वजनिक और निजी स्थलों पर लाउडस्पीकर की ध्वनि सीमा क्रमश:10 डेसीबल और पांच डेसीबल से ज़्यादा नहीं होगी.
- रिहाइशी इलाकों में ध्वनि का स्तर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसीबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसीबल तक ही रख जा सकता है. जबकि व्यवसायिक क्षेत्र में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 65 डेसीबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 55 डेसीबल तक का स्तर होना चाहिए.
- दूसरी तरफ औद्घोगिक इलाकों में इस दौरान ध्वनि स्तर को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 75 डेसीबल रख सकते हैं. वहीं शांत क्षेत्र (साइलेंस जोन) में इन दौरान क्रमशः 50 डेसीबल और 40 डेसीबल ध्वनि का स्तर रखा जाना चाहिए.
- बता दें कि पर्यावरण (संरक्षण) 1986 कानून की धारा 15 के तहत इसे दंडनीय अपराध माना गया है. नियमों का उल्लंघन करने पर 5 साल की जेल या एक लाख का जुर्माना या फिर दोनों (जेल और जु्र्माना) की सज़ा दी जा सकती है. वहीँ हर दिन उल्लंघन करने पर पांच हज़ार रुपये प्रतिदिन की सज़ा का प्रावधान अलग से है.