UP Nikay Chunav Result: ये फेक्टर बने बीजेपी के विजयी होने का कारण, जीत तो दूर, विपक्ष ठीक से टक्कर भी नहीं दे सका

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UP Nikay Chunav Result: ये फेक्टर बने बीजेपी के विजयी होने का कारण, जीत तो दूर, विपक्ष ठीक से टक्कर भी नहीं दे सका

UP Nikay Chunav Result: ये फेक्टर बने बीजेपी के विजयी होने का कारण, जीत तो दूर, विपक्ष ठीक से टक्कर भी नहीं दे सका

लखनऊ: यूपी के शहरी निकायों के शनिवार को आए नतीजों में (Lucknow Nikay Chunav Result) एक बार फिर भगवा लहर देखने को मिली है। सत्तारूढ़ भाजपा ने मेयर की सभी 17 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि विपक्ष अपना खाता तक नहीं खोल सका। वहीं, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में भी भाजपा ने अपनी जीत का दायरा और बढ़ाया है। दोनों ही निकायों में अध्यक्ष पद की 45% से अधिक सीटों पर सत्तारूढ़ दल या तो जीत चुका है या बढ़त बना रखी है। प्रदेश में 17 नगर निगमों, 199 नगर पालिकाओं और 544 नगर पंचायतों के अध्यक्ष व सदस्य के पदों के लिए मतदान दो चरणों में 4 और 11 मई को हुआ था।

नगर निगमों में और बढ़ा भाजपा का दबदबा

2017 में 16 में 14 मेयर भाजपा के जीते थे। इस बार भाजपा ने मेरठ और अलीगढ़ नगर निगम भी बसपा से छीनकर विपक्ष को शून्य कर दिया है। गाजियाबाद में भाजपा की मेयर प्रत्याशी सुनीता दयाल 2.87 लाख वोटों से जीत दर्ज करने में सफल रहीं तो लखनऊ में भी मेयर पद पर जीत का अंतर 2 लाख से अधिक रहा। अधिकतर नगर निगमों में आधे से अधिक वॉर्ड जीतकर सदन में भाजपा ने बहुमत पक्का कर लिया है। पिछली बार भाजपा ने नगर पालिका अध्यक्ष की 35% और नगर पंचायत अध्यक्ष की 23% जीती थीं। इस बार नगर पंचायतों में पार्टी ने संख्या दोगुनी की है। वहीं, नगर पालिका में भी अध्यक्ष के 40% से अधिक पदों पर बढ़त है। इसमें सहारनपुर की देवबंद नगर पालिका भी शामिल है।

लड़ाई में खड़ा भी न हो सका विपक्ष

जीत तो दूर, विपक्ष ठीक से टक्कर भी नहीं दे सका। कुछ जगहों पर मेयर पद पर भाजपा की जीत इतनी एकतरफा रही कि विपक्ष के सभी प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई। इनमें मथुरा, गाजियाबाद व झांसी शामिल हैं। मुख्य विपक्षी दल सपा-8, बसपा-कांग्रेस 3-3 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहीं। बरेली में सपा समर्थित आईएस तोमर दूसरे नंबर पर रहे। नतीजों का एक अहम पक्ष असद्उदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का प्रदर्शन चौंकाने वाला रहा। मेरठ में पार्टी दूसरे नंबर पर रही। वहीं, कई सीटों पर वह चौथे और पांचवे नंबर पर रही। मुस्लिम वोटों में बिखराव का सीधा नुकसान सपा को हुआ।

नतीजों की वजह

सरकार का काम

सुरक्षा, जनसुविधा व गरीब केंद्रित सरकार की योजनाएं जमीन पर उतरीं। कानून-व्यवस्था को भाजपा ने खासतौर से मुद्दा बनाया और माफिया पर कार्रवाई को योगी की अगुआई में भाजपा ने हर मंच से गिनाया। विपक्ष, असफलताओं के दावों पर वोटरों की मुहर लगवाने में फेल रहा।

चुनाव प्रबंधन

लगातार जीत के बाद भी सरकार और भाजपा कंफर्ट जोन में नहीं आए। चुनावी तैयारियों पर लगातार केंद्रित किया। चुनाव की घोषणा के पहले ही योगी व भाजपा नेतृत्व सभी निकायों का दौरा कर चुका था। चुनाव के बीच सीएम ने 50 रैलियां की। बगावत-असंतोष के सुर भी संगठन ने काफी हद तक थाम लिए।

विपक्ष की सुस्ती

सब कुछ दांव पर होने के बाद भी विपक्षी दल प्रचार में सुस्त रहे। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने महज 9 शहरों में प्रचार किया। बसपा, कांग्रेस के बड़े चेहरे जमीन से दूर रहे। सपा का टिकट प्रबंधन फेल रहा। छह नगर निगमों में घोषित प्रत्याशी बदले गए। स्थानीय विरोध व मतभेद दूर करने की कोशिशें भी कमजोर रहीं।

विपक्ष का आपसी बिखराव

विपक्षी दलों पर आपसी लड़ाई व बिखराव भी भारी पड़ा। कई सीटों पर विपक्ष के प्रत्याशियों का समीकरण एक जैसा रहा और वे एक-दूसरे के वोट कटवा साबित हुए। सपा सहयोगी दल संग भी प्रबंधन बेहतर नहीं कर पाई। लड़ाई में होने या जिताऊ होने का परसेप्शन भी नहीं बना सके।

अल्पसंख्यकों ने बदला ट्रेंड

कई सीटों पर सपा की हार वजह अल्पसंख्यक वोटों पर बिखराव भी रहा। मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ जैसी सीटों पर सपा उनकी प्राथमिकता नहीं बन सकी। मेरठ में एआईएमआईएम ने सपा को लड़ाई से बाहर कर दिया। नगर पालिकाओं में भी पार्टी के बजाय स्थानीय चेहरे पसंद आए।

जनादेश के संदेश

ब्रैंड योगी और मजबूत
नतीजे के बाद ब्रैंड योगी की चमक और बढ़ेगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी के चेहरे पर भाजपा यूपी की सत्ता में दोबारा लौटी थी। उपचुनावों के बाद शहरी निकायों में मिली शानदार जीत सरकार के काम-काज पर मुहर मानी जाएगी। फैसलों में और धार आएगी।

’24 का दावा और मजबूत

शहरों के साथ ही नवविस्तारित क्षेत्रों में मिली शानदार जीत 2024 के चुनाव के लिए भाजपा का आत्मविश्वास और बढ़ाएगी। यह जीत संगठन के नए नेतृत्व का भरोसा भी और मजबूत करेगी। विपक्ष के गढ़ में मिली जीत से पार्टी जनता के बीच अजेय रहने का दावा और पुख्ता कर सकेगी।

विपक्ष की चुनौती और बढ़ेगी

2024 में भाजपा को हराने का ख्वाब देख रहे विपक्ष की लड़ाई और कठिन हो गई है। सपा नेतृत्व को बाहर के साथ ही पार्टी के भीतर भी सवालों से जूझना होगा। कोर वोटरों का ‘मूड स्विंग’ भी चिंता का विषय बनेगा। कांग्रेस-बसपा भी उबरते नहीं दिख रहे।

परसेप्शन की लड़ाई भी

वोटों की गणित के साथ ही विपक्ष को जनता से ‘केमेस्ट्री’ भी बेहतर करनी होगी। ‘परसेप्शन’ के मोर्चे पर भी कठिन चुनौती है। जमीनी सक्रियता के बिना यह मुश्किल है। कोर मुद्दों को जनता तक पहुंचाने की राह ढूंढ़नी होगी। बसपा जैसी पार्टियों को ‘वोटकटवा’ का टैग तोड़ना होगा।

एकजुटता का रास्ता

2019 के लोकसभा चुनाव में साथ आने के बाद भी सपा-बसपा भाजपा की राह नहीं रोक पाए। अब बिखराव और बढ़ चुका है। लड़ने के लिए एकजुटता का रास्ता तलाशना होगा। यूपी के बाहर विपक्ष की गोलबंदी, भीतर अमल में आती है कि नहीं, इससे भी सियासी रुख तय होगा।

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