UP Nikay Chunav Result: अखिलेश और शिवपाल की आंखों के सामने, इन 5 कारणों ने सपा को मिट्टी में मिला दिया h3>
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के नतीजे आ गए है। एक तरफ जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश में डंका बज रहा है। वहीं, दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी ने चुनाव में अपना सबसे बुरा प्रदर्शन किया। निकाय चुनाव में पार्टी अखिलेश और शिवपाल की आंखों के सामने मिट्टी में मिल गई। आइए जानते है ऐसे कौन से 5 बड़े कारण रहे जिनके कारण पार्टी को इतनी शर्मनाक हार झेलनी पड़ है।
संगठन का निष्क्रिय होना
मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने संगठन को भंग कर दिया। इसके बाद पार्टी करीब 10 महीने तक पार्टी नए पदाधिकारियों की घोषणा नहीं कर पाई। 2023 में पार्टी ने धीरे-धीरे अपने संगठन में बदलाव करने के साथ नए लोगों को मौका तो दिया। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं और नेताओं को दूर कर अपने लोगों को आगे किया। जिससे पार्टी के सीनियर नेता और निष्ठावान कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया। इसके बाद इन नेताओं ने पाला तो नहीं बदला। लेकिन निकाय चुनाव के दौरान पार्टी से दूरी बना लिया। इसका नतीजा ये हुआ की पार्टी अपने सबसे खराब दौर में पहुंच गई।
टिकट बंटवारे में गड़बड़ी
निकाय चुनाव के दौरान सपा ने टिकट देने में परिवारवाद को आगे रखा। कई सालों से पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं की जगह पार्टी पदाधिकारियों ने अपने परिवार और दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया। इसका एक उदाहरण लखनऊ है। जहां महानगर अध्यक्ष सुशील दीक्षित ने बेटे मयंक दीक्षित को गुरुनानक नगर वार्ड से टिकट दिया। महिला प्रकोष्ठ की पूर्व जिलाध्यक्ष प्रेमलता यादव जानकीपुरम, शर्मिला महाजन ने काल्विन कालेज-निशातगंज वार्ड से चुनाव लड़ा। तीनों ही अपनी सीट हार गए।
इसके अलावा कई और उदाहरण देखने को मिले जहां कार्यकर्ताओं की मर्जी के बिना टिकट बांटे गए और पार्टी पिछली बार जीती हुई सीट भी इस बार हार गई।
बागियों को रोकने में नाकामयाब और भीतरघात रहा कारण
अखिलेश यादव ने पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप की अध्यक्षता में नगर निगम चुनाव प्रबंधन की कमेटी बनायी। इस कमेटी के बावजूद पार्षदी के दावेदारों की सूची ने मौजूदा दोनों विधायकों और विधानसभा प्रभारियों ने महानगर संगठन से साझा ही नहीं की। यहीं कारण रहा कि नामांकन के अंतिम दिन तक कई दावेदारों के टिकट काटे गए।
पिछली बार पार्टी के टिकट पर पार्षद और अध्यक्ष बनने वाले नेताओं को टिकट काटने पर वो बगावत पर उतर आए। इन नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़कर सपा के लिए मुश्किल खड़ा कर दिया।
इसका एक उदाहरण लखनऊ के गीतापल्ली वार्ड से देखने को मिला। जहां पूर्व पार्षद सुरेश चौहान का टिकट कांट कर जिलाध्यक्ष जय सिंह जयंत के रिश्तेदार अरविंद यादव को टिकट दिया गया। इसके बाद सुरेश चौहान ने निर्दलीय लड़ा और करीब 500 वोट काटे। इसी तरह कई सीटों पर पार्टी नेताओं ने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ भीतरघात कर सपा को हराया।
निकाय चुनाव के दौरान अखिलेश की गैरमौजूदगी
प्रदेश में निकाय चुनाव के दौरान जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 50 से ज्यादा सभाएं की। वहीं अखिलेश यादव ने सिर्फ 9 जिलों का दौरा किया। उन्होंने राजधानी लखनऊ में भी एक मेट्रो यात्रा को छोड़ दें तो कोई खास प्रचार नहीं किया। हालांकि शिवपाल सिंह यादव ने जरूर थोड़ी बहुत जनसभाएं की।
निकाय चुनाव के दौरान अखिलेश यादव कर्नाटक में चुनाव प्रचार करने के लिए गए। जहां उन्हें सिर्फ 0.03 % वोट मिला। इसके साथ ही प्रदेश में सपा के बड़े नेताओं के प्रचार की कमी दिखी, जिसका फायदा पूरी तरह से BJP को मिला।
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निकाय चुनाव के दौरान VIP ट्रीटमेंट
निकाय चुनाव के दौरान पहली बार ऐसा हुआ कि जब पार्टी के नेता जमीन पर उतरने के बजाए होटलों में VIP ट्रीटमेंट का मजा लेते रहे। इसका एक उदाहरण उस वक्त मिला जब एक शहर में पार्षद और नगर पंचायत के टिकट पार्टी ऑफिस की जगह होटलों से बांटा गया। नामांकन से एक दिन पहले आधी रात में आवेदकों को बुलाकर टिकट दिया गया। इस बात का वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने विरोध किया और चुनाव से दूरी बनाए रखी।