UP Nikay Chunav: फिर सपा-भाजपा के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बनेगा रामपुर-मैनपुरी? जानिए क्‍या कहते हैं आंकड़े

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UP Nikay Chunav: फिर सपा-भाजपा के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बनेगा रामपुर-मैनपुरी? जानिए क्‍या कहते हैं आंकड़े

UP Nikay Chunav: फिर सपा-भाजपा के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बनेगा रामपुर-मैनपुरी? जानिए क्‍या कहते हैं आंकड़े

लखनऊ: लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद रामपुर और मैनपुरी में सपा और भाजपा के पास एक दूसरे से हिसाब बराबर करने का मौका होगा। शहरी निकायों के चुनाव में दोनों दल एक बार फिर आमने-सामने होंगे। रामपुर में जहां भाजपा उपचुनाव में सपा को पटखनी देकर उत्साहित है तो मैनपुरी की जीत ने भी सपा का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। हालांकि, पिछली बार हुए शहरी निकायों के नतीजों पर गौर करें तो रामपुर में सपा का दबदबा रहा है जबकि मैनपुरी के शहरी निकायों पर भाजपा का कब्जा रहा।

पूर्व मंत्री आजम खां के सियासी कद में इजाफे के साथ रामपुर में सपा का दबदबा हर चुनाव में बढ़ता गया। नगर विकास मंत्री रहे आजम ने इस जिले के नगरीय इलाकों का विस्तार भी खूब करवाया, जिसका असर यहां की सियासी फिजाओं में तारी रहा। रामपुर जिले में पांच नगर पालिका परिषदें हैं-रामपुर, मिलक, स्वार, टांडा और बिलासपुर। वहीं, पिछले चुनाव तक तीन नगर पंचायतें थीं, जिनकी संख्या बढ़कर अब छह हो गई है। पिछली बार जब 2017 में शहरी निकायों के चुनाव हुए थे, तब आठ शहरी निकायों में छह पर सपा का कब्जा रहा था। टांडा नगर पालिका परिषद और मसवसी नगर पंचायत भाजपा के हिस्से आई थीं जबकि स्वार नगर पालिका परिषद चेयरमैन रेशमा भले ही सपा के सिंबल पर जीतीं, लेकिन जीत के बाद उनका सियासी रुझान सपा की तरफ नहीं रहा। 2019 के बाद से जिस तरह चुनाव दर चुनाव भाजपा का फोकस रामपुर की तरफ बढ़ा, उसका परिणाम भी पिछले कुछ चुनावों में सामने दिख रहा है। पहले लोकसभा उपचुनाव और फिर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने यह सीट अपने हक में कर ली। ऐसे में भाजपा उत्साहित है और अब वह पूरी ताकत निकायों पर कब्जा करने में झोंकने की तैयारी में है। ऐसे में निकाय चुनाव दिलचस्प होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इस बार तीन नगर पंचायतों में पहली बार चुनाव होंगे।

मैनपुरी के शहरी निकायों में भाजपा का दबदबा
मैनपुरी लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव की जीत से सपा उत्साहित है। हालांकि 2017 में जब शहरी निकायों के चुनाव हुए थे तब भाजपा उसमें अपना असर छोड़ने में कामयाब रही थी। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि उत्साहित सपा भाजपा का मुकाबला किस तरह करती है। पिछली बार के शहरी निकायों के नतीजों पर नजर डालें तो मैनपुरी नगर पालिका परिषद और छह नगर पंचायतों पर भाजपा अपना चेयरमैन जितवाने में सफल रही थी। जबकि भोगांव और कुशमरा नगर पंचायत का चेयरमैन सपा समर्थित उम्मीदवार बने थे। इस बार मैनपुरी में एक और नगर पंचायत बरनाहल का गठन हुआ है। इस नगर पंचायत में पहली बार चुनाव होगा।

एक दूसरे की रणनीति से वाकिफ, काट खोजने की तैयारी
इस बीच हुए चुनावों के दौरान सपा और भाजपा एक दूसरे की चुनावी रणनीति से वाकिफ भी हो गए हैं। ऐसे में जब कुछ ही अंतराल पर दोनों दल शहरी निकाय के चुनाव में एक दूसरे के सामने होंगे तो मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है। रामपुर में सपा प्रशासन की सख्ती को शक्ति का दुरुपयोग बताता रहा है। ऐसे में जब इस बार शहरी निकाय के चुनाव होंगे तो उसे वहां अपनी रणनीति बदलनी होगी। उसे देखना होगा कि कैसे वह अपने वोटरों को घरों से पोलिंग बूथ तक ला सके जबकि भाजपा एक बार फिर अपनी नीति के साथ आगे बढ़ेगी ताकि वह इन निकायों पर कब्जा जमा सके, जहां पहले सपा का दबदबा रहा है। इसके लिए मुस्लिम दांव लगाने पर विचार चल रहा है। वहीं मैनपुरी चुनाव में भले ही सपा ने भाजपा को पछाड़ दिया, लेकिन अब भी राजनीतिक गलियारों में सवाल साफ है कि क्या सपा अपना वही तेवर बनाए रखेगी? लोग तो यह भी कह रहे हैं कि चूंकि मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था लिहाजा और डिंपल चुनाव मैदान में थीं, इस वजह से इतना जोर लगाया गया।

बाकी दल भी उतरेंगे मैदान में, करेंगे नफा-नुकसान
जब शहरी निकायों के चुनाव होंगे तो न केवल सपा और भाजपा चुनाव मैदान में होंगे बल्कि कांग्रेस और बसपा भी अपने प्रत्याशी उतारेंगे। इन दोनों दलों के चुनाव मैदान में उतरने का असर भी सपा और भाजपा के राजनीतिक समीकरणों पर पड़ेगा। देखना दिलचस्प होगा कि इन दलों की भागीदारी किसको कितना नफा-नुकसान पहुंचाती है। दोनों दलों का अपना भी कितना असर इन जगहों के चुनाव में रहता है, यह भी देखने वाला होगा।

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