UP Nikay Chunav: महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी आरक्षण पर फंसा था पेच, फिर क्यों नहीं चेती योगी सरकार

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UP Nikay Chunav: महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी आरक्षण पर फंसा था पेच, फिर क्यों नहीं चेती योगी सरकार

UP Nikay Chunav: महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी आरक्षण पर फंसा था पेच, फिर क्यों नहीं चेती योगी सरकार

लखनऊः उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया है। हाई कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट फार्मूले के तहत निकाय चुनाव में आरक्षण तय नहीं करने पर योगी सरकार को फटकार लगाई है। साथ ही उन्होंने बिना ओबीसी आरक्षण के ही निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट फॉर्म्यूले के तहत आरक्षण तय करने में अब समय लगेगा, इसलिए सरकार तत्काल बिना आरक्षण ही चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दे। हालांकि, योगी सरकार ने बिना आरक्षण चुनाव कराने से इनकार कर दिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने संकेत दिए हैं कि हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है। आगे जो भी हो, फिलहाल प्रदेश में योगी सरकार के लिए एक मुश्किल परिस्थिति बनी हुई है, जिसमें उसे कोर्ट से लेकर विपक्ष तक के हमकों का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी ओबीसी आरक्षण को लेकर ऐसी ही परिस्थिति बन चुकी है। सवाल है कि इन घटनाओं के बारे में जानते हुए भी योगी सरकार समय पर सचेत क्यों नहीं हुई?

क्या है मामला
उत्तर प्रदेश के नगर निकायों का कार्यकाल दिसंबर में समाप्त हो रहा है। बीते 5 दिसंबर को प्रदेश की योगी सरकार ने चुनाव को लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी लेकिन हाई कोर्ट में इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई कि आरक्षण तय करने में सुप्रीम कोर्ट से दिशानिर्देशित ट्रिपल टेस्ट फार्मूले का प्रयोग नहीं किया गया है। हाई कोर्ट ने यह दलील स्वीकार कर ली और अधिसूचना को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण के लिए अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी। मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए मंगलवार को सरकार आदेश दे दिया कि वह बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए चुनाव की अधिसूचना जारी करे क्योंकि ट्रिपल टेस्ट में अब काफी वक्त लगेगा। समय पर निकाय चुनाव कराना जरूरी है। कोर्ट के इस आदेश से योगी सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। विपक्षी दलों ने इसे लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा है और आरोप लगाया कि योगी सरकार ओबीसी को आरक्षण देने में गंभीर नहीं है।

कोर्ट के फैसले पर रही गहमागहमी
कोर्ट के फैसले को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार नगर निकाय सामान्य चुनाव के परिप्रेक्ष्य में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा और अगर आवश्यक हुआ तो राज्य सरकार हाई कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील भी करेगी।

योगी सरकार के ऐसा कहने के बाद भी विपक्ष ने उन पर रहम नहीं दिखाई। सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट किया कि भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक़ छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी। उन्होंने आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछड़ों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील की है। मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी उच्च न्यायालय का फैसला सही मायने में भाजपा एवं उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है।

महाराष्ट्र में भी ऐसे ही फंसा था मामला
हालांकि, यूपी अकेले ऐसी परिस्थितियों का शिकार नहीं बना है। उसके पास महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का उदाहरण था, जिससे वह सचेत हो सकता था। दरअसल, महाराष्ट्र में 92 नगर परिषद और 4 नगर पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी करने में ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। मामला अदालत में पहुंचा तो हाई कोर्ट ने निकाय चुनाव में आरक्षण रद्द कर सभी सीटों को सामान्य घोषित कर दिया था। इसके बाद सरकार आरक्षण लागू करने को लेकर अध्यादेश लेकर आई। इसे सुप्रीम कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया। तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने इस मुश्किल परिस्थिति में 11 मार्च 2022 को बांठिया कमीशन का गठन किया। कमीशन ने राज्य की वोटर लिस्ट को आधार बनाकर इंपीरिकल डेटा तैयार किया और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कमीशन की सिफारिश के आधार पर ही निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने का निर्देश दिया।

शिवराज भी फंसे चक्कर में
महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश में भी बिना ट्रिपल टेस्ट के निकाय चुनाव में आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी गई थी। जबलपुर हाई कोर्ट में शिवराज सिंह चौहान सरकार के फैसले के खिलाफ अपील की गई। अदालत ने वहां भी बिना आरक्षण चुनाव कराने का फैसला दे दिया, जिसके बाद शिवराज सरकार विपक्ष के हमलों से घिर गई। इसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई लेकिन वहां भी ट्रिपल टेस्ट के बिना आरक्षण लागू करने की परमिशन नहीं मिली। शिवराज सरकार ने इसके बाद रिव्यू पिटीशन दाखिल किया और राज्य पिछड़ा आयोग के जरिए एक रिपोर्ट बनवाई, जिसमें 52 जिलों के आंकड़े रखे गए। ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट के बाद ही कोर्ट ने प्रदेश में निकाय चुनावों के लिए परमिशन दिया।

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