UP Nagar Nikay Chunav Result: मायावती ने दिखाया दम, हाथी ने बताया ‘जिंदा हूं मैं’, अब क्या करेंगे अखिलेश यादव?

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UP Nagar Nikay Chunav Result: मायावती ने दिखाया दम, हाथी ने बताया ‘जिंदा हूं मैं’, अब क्या करेंगे अखिलेश यादव?

UP Nagar Nikay Chunav Result: मायावती ने दिखाया दम, हाथी ने बताया ‘जिंदा हूं मैं’, अब क्या करेंगे अखिलेश यादव?

लखनऊ: 17 नगर निगम, 199 नगर पालिका और 544 नगर पंचायतें। इनमें भी प्रमुख के साथ हजारों वार्ड सदस्य। ये आंकड़े अपने आप में बताते हैं कि उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2023 देश के कई राज्यों के विधानसभा चुनावों से भी ज्यादा बड़े हैं। इस चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के लिए संगठन के तौर पर बड़ी परीक्षा होती है। चुनाव का दायरा काफी छोटा होता है लिहाजा महत्वाकांक्षाएं बढ़ जाती हैं। सभी पार्टियां बागियों के संकट से जूझती हैं। और ऐसी स्थिति में अगर हाशिए पर चल रही कोई पार्टी अचानक चुनाव में तगड़ी फाइट देती नजर आए तो जाहिर है उस दल के लिए बड़ा बूस्ट होता है। बहुजन समाज पार्टी के लिए भी इस बार के नगर निकाय चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं।

यूपी की राजनीति पर कई बार सत्तारूढ़ होने वाली बसपा 2022 आते-आते अपने अस्तित्व के संकट से जूझती दिख रही थी। स्थिति ये हुई कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक सीट जीत सकी। इस हार ने पार्टी और सुप्रीमो मायावती दोनों को झकझोर दिया था। यही कारण था कि इसके बाद से संगठन को नए सिरे से दुरुस्त करने और पार्टी की रणनीति में बड़े बदलाव किए गए। अब नगर निकाय चुनावों में बसपा का प्रदर्शन ये साफ दिखा रहा है कि मायावती का ‘रणनीति परिवर्तन’ सही रास्ते पर है। चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि बसपा अभी ‘जिंदा’ है। उसे ‘खत्म हो गई’ मत मान लीजिएगा।

वैसे तो बसपा 90 के दशक से सत्ता में आती जाती रही लेकिन बहुमत उसे कभी नहीं मिला। 2007 से ऐन पहले पार्टी ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया और दलित, मुस्लिम गठजोड़ में ब्राह्मणों को भी शामिल किया। रणनीतिक तौर पर ये बड़ा बदलाव और पार्टी को इसका फायदा भी मिला। 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अकेले दम पर पहली बार बहुमत की सरकार बना ली। इसके बाद उसकी हर रणनीति में ब्राह्मण पॉलिटिक्स की झलक दिखने लगी। सतीश चंद्र मिश्रा के साथ पार्टी के कई ब्राह्मण चेहरे बन गए। लेकिन 2012 में समाजवादी पार्टी ने बसपा को सत्ता से बाहर कर दिया और इसी के साथ पार्टी का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव गिरता चला गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी जो पार्टी और मायावती के साथ राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी चौंकाने वाली खबर थी। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव हुए लेकिन पार्टी हाशिए पर जा चुकी थी। यहां बीजेपी की प्रचंड जीत में भले ही अखिलेश की समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर हुई और 50 सीट तक नहीं जुटा सकी लेकिन बसपा का और बुरा हाल हुआ और वह सपा की आधी सीट भी नहीं ला सकी।

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अब तक ये साफ दिख रहा था कि बसपा को अपनी रणनीति और राजनीति दोनों में बदलाव करने की सख्त जरूरत है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हां, अखिलेश यादव ने 2019 में बसपा को थाली में परोसकर संजीवनी जरूर दे दी। इस चुनाव में 90 के दशक के बाद पहली बार सपा और बसपा एक साथ आए लेकिन ये गठबंधन बीजेपी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सका। इतना जरूर हुआ कि 2014 में बसपा जो शून्य पर खड़ी थी, वह 10 सीटें जीतने में कामयाब रहीं, सपा सिर्फ 5 सीटें जीत सकी। चुनाव बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया। लेकिन अभी भी वह मुस्लिम, दलित और ब्राह्मण वोटबैंक को टार्गेट कर जीत के सपने बुनती रहीं।

लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव ने आखिरकार मायावती की आंखें खोल ही दीं। सिर्फ एक सीट जीतकर बसपा यहां राजा भैया के छोटे से जनसत्ता दल के भी नीचे आ गई। इसके बाद मायावती ने संगठन और रणनीति में बड़े बदलाव किए। मायावती अब पुरानी दलित, मुस्लिम राजनीति पर लौट आईं। उन्होंने ब्राह्मण वोट बैंक काे जोड़ने का मोह छोड़ दिया। इसके बाद हुए आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में ये देखने को भी मिला, जब बसपा ने अखिलेश की इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारा। चुनाव में भले ही भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को मात दी। लेकिन चुनाव हारने के बावजूद मायावती ने गुड्‌डू जमाली के प्रदर्शन की प्रशंसा की। खुद अखिलेश यादव ने सपा की हार के लिए बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने को कारण बताया।

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इस बार के नगर निकाय चुनावों में भी बसपा ने अपनी इसी रणनीति काे विस्तार दिया। पार्टी ने राज्य के कुल 17 नगर निगमों में से 11 के लिए अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। यही नहीं नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में भी भारी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को तरजीह दी गई। खुद मायावती ने इसे लेकर चुनाव के दौरान एक बयान दिया कि बीएसपी द्वारा मुस्लिम समाज को भी उचित भागीदारी देने को लेकर यहां राजनीति काफी गरमाई हुई है, क्योंकि उससे खासकर जातिवादी एवं सांप्रदायिक पार्टियों की नींद उड़ी हुई है।

अब निकाय चुनावों में प्रदर्शन के बाद ये साफ होता दिख रहा है कि मायावती अब 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए इसी रणनीति पर आगे बढ़ेंगी। जाहिर है समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए ये बड़ी चुनौती खड़ी होती दिख रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद वही दिख रहे थे।

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