UP Election News : यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने वाले परिवार की पांचवी पीढ़ी ने किया पार्टी किनारा, जानें वजह

111


UP Election News : यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने वाले परिवार की पांचवी पीढ़ी ने किया पार्टी किनारा, जानें वजह

विकास पाठक, वाराणसी : बनारस का औरंगाबाद हाउस (Aurangabad House, Banaras) आजादी से लेकर लंबे दौर तक लोकतांत्रिक परंपरा के केंद्र में रहा है। देश की राजनीति में ब्राह्मण क्षत्रप की छवि के नेता स्‍व. पंडित कमलापति त्रिपाठी (Kamlapati Tripathi Congress) के घराने की कोठी औरंगाबाद हाउस कांग्रेस की धुरी बना तो पांचवीं पीढ़ी ने अपनी चाल बदलकर कांग्रेस को झटका भी दिया। पंडितजी के पौत्र राजेशपति त्रिपाठी और प्रपौत्र ललितेशपति के कांग्रेस से नाता तोड़ तृणमूल कांग्रेस का दामन थामने से औरंगाबाद हाउस की तस्‍वीर ही बदल गई। चुनाव के मौसम में जहां औरंगाबाद हाउस की रौनक देखते बनती थी, वहीं इस चुनावी बयार में यहां सन्‍नाटा पसरा है। यहां अब न नेता दिखते हैं और न कार्यकर्ता।

दूसरी विचारधारा के वर्चस्‍व ने पैदा की खाई
कमलापति की विरासत को संभालने वाले चाहे राजेशपति हों या ललितेशपति, उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ने को लेकर अब तक खुलकर न कुछ कहा और न ही नेतृत्‍व के खिलाफ ‘चार्जशीट’ पेश की। नेहरू-गांधी परिवार को लेकर गहरी गांठें भी खुलने नहीं दीं। तृणमूल में जाने के बाद भी उतना ही सम्‍मान, जितना कांग्रेस में रहने के दौर में रहा। युवा ललितेशपति भले यह कहते हैं कि पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़े रहे लोगों को नजरअंदाज किए जाने से आहत होकर उन्‍हें अलग होना पड़ा। लेकिन औरंगाबाद हाउस के बेहद खास अपना नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि कांग्रेस संगठन में दूसरी विचारधारा यानी रेडिकल लेफ्ट के बढ़ते वर्चस्‍व ने ऐसी खाई पैदा की जिसने कांग्रेस के किले को ही ढहा दिया। वह कहते हैं कि कांग्रेस में दूसरे दलों से लोगों का आना लगा रहता था, लेकिन मूलमंत्र था कि उन्‍हें संगठन की चाबी नहीं दी जाती थी। वर्तमान में राहुल गांधी और प्रियंका के इर्द-गिर्द वामपंथियों का घेरा खानदानी कांग्रेसियों को नहीं भाया, इसलिए वह कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं या घर बैठ गए हैं।

कांग्रेस से दूरी कल्‍चर से नहीं
राजनीतिक विश्‍लेषक प्रदीप कुमार की मानें तो राजेशपति और ललितेशपति ने कांग्रेस में आए परिवर्तन के चलते नाता जरूर तोड़ा, लेकिन कांग्रेस कल्‍चर से दूरी नहीं बनाई। इसके पीछे भाव कमलापति के कथन ‘कफन के साथ छूटेगा कांग्रेस का साथ’ का है। राजनीतिक गलियारे में जबरदस्‍त चर्चा रही कि सपा और भाजपा ने औरंगाबाद हाउस के उत्तराधिकारियों पर डोरे डाले, दबाव भी बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। ऐसे में कांग्रेस कल्‍चर से जुड़ी तृणमूल से जुड़ने की ही गुंजाइश रही। पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी से लड़कर विजेता के तौर पर अपने को स्‍थापित किया। इस वजह से भी तृणमूल के प्रति झुकाव बढ़ा।

पीढ़ी दर पीढ़ी
राजनीति शास्‍त्री प्रो. सतीश राय बताते हैं कि औरंगाबाद हाउस की पहली पी‍ढ़ी स्‍व. नारायणपति त्रिपाठी का भी कांग्रेस से जुड़ाव रहा। 1905 में बनारस में हुए कांग्रेस अधिवेशन में वह स्‍वागत समिति के सदस्‍य रहे। उनके पुत्र कमलापति त्रिपाठी 14 वर्ष की उम्र में 1920 में असहयोग आंदोलन की बैठक में पानी पिलाने वाले सेवक के रूप में शामिल हुए थे। 5 साल की उम्र में कलकत्ता कांग्रेस की बैठक में गए तो 16 साल की उम्र में प्रिंस ऑफ वेल्‍स के काशी आगमन के विरुद्ध पर्चा बांटने पर जेल काटी। कमलापति की विरासत संभालने वाले उनके पुत्र स्‍व. लोकपति त्रिपाठी पांच बार यूपी विधानसभा सदस्‍य और 13 साल तक मंत्री रहे। पुत्रवधू स्‍व. चंद्रा त्रिपाठी सांसद रहीं। चौथी पीढ़ी में पौत्र राजेशपति विधान परिषद सदस्‍य और पांचवीं पी‍ढ़ी में ललितेशपति 2012 में विधानसभा पहुंचे। हालांकि, 2017 में वह चुनाव हार गए थे।

विकास की राजनीति के पुरोधा
औरंगाबाद हाउस के क्षत्रप कमलापति त्रिपाठी साधारण जनाधार वाले नेता रहे। पूर्वांचल में जगह-जगह छोटे-बड़े कल कारखाने, चीनी मिलें, औद्योगिक क्षेत्र या फिर नहरों का जाल बिछाने की सोच उनकी ही रही। राजनीति में धार्मिकता-धर्मनिरपेक्षता, दोनों की वह कड़ी रहे। यूपी में उत्तरदायी शासन के लिए गठित पहली विधानसभा में महज 32 साल की उम्र में वह चंदौली से चुनकर पहुंचे थे। देश में गठबंधन वाली सरकार की शुरुआत करने का श्रेय भी उनके खाते में है। 1967 का चुनावपरिणाम आने के बाद उनकी मध्‍यस्‍थता के चलते ही कांग्रेस और नवगठित संविद की मिलीजुली सरकार बन पाई थी। 1971 में उन्‍होंने यूपी के सीएम की कुर्सी संभाली तो 1973 में केंद्रीय सत्ता में मजबूत पकड़ बनाई। जहाजरानी एवं परिवहन मंत्री के बाद रेलमंत्री रहे। आजादी के पूर्व जिला कांग्रेस के अध्‍यक्ष रहे तो 1964 से 1972 तक यूपी कांग्रेस के मुखिया का दायित्‍व भी संभाला था। राष्‍ट्रीय कार्यकारी अध्‍यक्ष बन 1983 से 1987 तक कांग्रेस में जान फूंकी।

kamlapati tripathi



Source link