UP DGP: वरिष्‍ठता और योग्‍यता के फेर में फंस गई यूपी डीजीपी की कुर्सी, आखिर कब तक चलेगी खींचतान?

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UP DGP: वरिष्‍ठता और योग्‍यता के फेर में फंस गई यूपी डीजीपी की कुर्सी, आखिर कब तक चलेगी खींचतान?

UP DGP: वरिष्‍ठता और योग्‍यता के फेर में फंस गई यूपी डीजीपी की कुर्सी, आखिर कब तक चलेगी खींचतान?

लखनऊ : यूपी में डीजीपी की कुर्सी वरिष्ठता और योग्यता के फेर में फंस गई है। जहां संघ लोक सेवा आयोग ने यूपी सरकार के भेजे पैनल पर ही सवाल उठाते हुए सरकार से पूछ लिया है कि आखिर मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से क्यों हटाया गया? वहीं सरकार गोयल को अयोग्य बताते हुए आयोग के सवालों का जवाब देने की तैयारी में जुट गई है। हालांकि, इस खींचतान के चलते अब यह संशय गहरा गया है कि यूपी में फिलहाल मार्च तक प्रभारी डीजीपी से ही काम चलाया जाएगा या स्थायी डीजीपी का नाम आएगा?

ऐसे फंसा कुर्सी पर पेंच
डीजीपी की कुर्सी को लेकर संकट तब गहराया, जब सरकार ने विधानसभा चुनाव के बाद अचानक 11 मई को गोयल को पद से हटाने का फैसला किया। यह पहली बार था जब किसी डीजीपी को हटाते हुए उसे लापरवाह और अकर्मण्य बताया गया। गोयल को हटाने के बाद सरकार ने 1988 बैच के आईपीएस डीएस चौहान को प्रभारी डीजीपी बना दिया। उनके पास डीजी इंटेलिजेंस की जिम्मेदारी के साथ विजिलेंस निदेशक का अतिरिक्त प्रभार पहले से था। उन्हें एक और प्रभार मिल गया। यहां से पेंच तब फंसा, जब नए डीजीपी के लिए पैनल भेजे जाने का इंतजार दिन से महीनों में बदल गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक, उसी अधिकारी के नाम पर डीजीपी के लिए विचार होगा, जिसकी कम से कम छह माह की सेवा बची हो। प्रक्रिया लंबी खिंचने से चौहान की दावेदारी और मजबूत हो गई। दरअसल, वरिष्ठता सूची में विश्वजीत महापात्रा, जीएल मीणा और आरपी सिंह के नाम प्रभारी डीजीपी से पहले थे। विश्वजीत जुलाई में रिटायर हो गए। जीएल मीणा और आरपी सिंह का सेवाकाल भी 31 अगस्त के बाद छह महीने से कम रह गया। मई में खाली हुए पद का प्रस्ताव सितंबर के पहले हफ्ते में भेजे जाने से ये तीनों अफसर दावेदारी से बाहर हो गए और चौहान वरिष्ठता सूची में ऊपर आ गए।

डेट ऑफ वैकेंसी या फिर डेट ऑफ मीटिंग?
डीजीपी की कुर्सी को लेकर फंसे पेंच के बीच कटऑफ डेट को लेकर भी अलग-अलग चर्चाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक नए डीजीपी की तैनाती के लिए पद खाली होने से करीब तीन माह पहले यूपीएससी को प्रस्ताव भेजना चाहिए। चूंकि डीजीपी को एकाएक हटाया गया, इसलिए पहले से प्रस्ताव जाना संभव नहीं था। इसके बाद डेट ऑफ वैकेंसी या फिर डेट ऑफ मीटिंग पर चर्चा शुरू हो गई है। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक पद के अचानक खाली होने की स्थिति में भी यूपीएससी की मीटिंग को ही कटऑफ डेट माना जाता है। कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि जिस दिन पद खाली होता है, उसी दिन के मुताबिक अधिकारियों की दावेदारी मानी जाएगी। इसके लिए विशेषज्ञ त्रिपुरा में डीजीपी बनाए गए विजय यादव का उदाहरण देते हैं। जब उन्हें डीजीपी बनाया गया तो उनका चार माह का सेवाकाल बचा था, जबकि डीजीपी की कुर्सी 11 माह पहले खाली हो गई थी। इसलिए उनकी दावेदारी 11 माह से गिनी गई।

अहम होंगे अगले चार दिन
पूर्णकालिक डीजीपी कौन होगा या प्रभारी की व्यवस्था आगे बढ़ेगी, इसकी दिशा तय करने में अगले चार दिन अहम होंगे। सरकार आपत्तियों को दूर करते हुए उस पर जवाब भेजती है तो गेंद यूपीएससी के पाले में होगी। अगर यूपीएससी सरकार के जवाब को स्वीकार करते हुए 30 सितंबर के पहले मीटिंग करती है तो डीएस चौहान प्रमुख दावेदार रहेंगे। मीटिंग 30 के बाद होती है तो चौहान के स्थायी डीजीपी बनने की राह मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि उनका कार्यकाल छह महीने से कम रह जाएगा। 30 सितंबर के बाद आरके विश्वकर्मा, अनिल अग्रवाल और आनंद कुमार भी टॉप थ्री में आ जाएंगे। वहीं, यूपीएससी अगर ‘डेट ऑफ वैकेंसी’ को आधार बनाती है तो भी तीन अफसर वरिष्ठता में चौहान से ऊपर आ जाएंगे। अगर सरकार यूपीएससी को जवाब ही नहीं भेजती है तो मामला लंबित रहेगा। ऐसी स्थिति में मौजूदा प्रभारी डीजीपी से मार्च में उनके रिटायर होने तक काम लिया जा सकता है। तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब में ऐसे उदाहरण आ चुके हैं। हालांकि, इससे सेवा विस्तार की संभावना खत्म हो जाएगी।

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