UP Congress में एक अध्यक्ष और 6 प्रांतीय अध्यक्ष का फॉर्मूला फेल, हर कोशिश के बाद भी हालात वही… कहां हैं प्रियंका?

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UP Congress में एक अध्यक्ष और 6 प्रांतीय अध्यक्ष का फॉर्मूला फेल, हर कोशिश के बाद भी हालात वही… कहां हैं प्रियंका?

UP Congress में एक अध्यक्ष और 6 प्रांतीय अध्यक्ष का फॉर्मूला फेल, हर कोशिश के बाद भी हालात वही… कहां हैं प्रियंका?


लखनऊ: उत्तर प्रदेश कांग्रेस की स्थिति सुधारने के लिए एक अध्यक्ष और छह प्रांतीय अध्यक्षों की तरकीब भी कामयाब होती नहीं दिख रही है। कांग्रेस के भीतर मौजूद गुटबाजी से संगठन अपना वह तेवर नहीं अख्तियार कर पा रहा, जो उसे मजबूत विपक्ष के तौर पर चाहिए। वहीं, तकरीबन चार साल में संगठन सुधारने और इसे मजबूत करने की कवायद चल रही है, लेकिन इसका नतीजा जमीन पर दिखाई न देने से कांग्रेस के कार्यकर्ता ही निराश हैं। जनवरी 2019 में जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने आधिकारिक तौर पर राजनीति में इंट्री ली थी और उन्हें यूपी की कमान मिली थी तो उन्होंने यही कहा था कि अभी हमारा संगठन कमजोर है क्योंकि हम बीते काफी साल से यूपी की सत्ता से बाहर हैं। हमें इसे मजबूत करना होगा। इसके बाद संगठन मजबूत करने के नाम पर चार साल से इसके लिए कवायद जारी है।

कांग्रेस में कई पुराने चेहरों को उम्रदराज होने के नाम पर किनारे कर दिया गया। कई नामचीन चेहरों ने पार्टी छोड़ दी। तब यह दलील दी जा रही थी कि नए चेहरों को शामिल करके उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा और पार्टी को मजबूत किया जाएगा। कहने को तो कोशिशें होती रहीं और फिर जब तीन साल बाद विधान सभा चुनाव हुए तो पार्टी केवल दो ही सीटों पर चुनाव जीत सकी। इसके बाद फिर पार्टी एक अध्यक्ष और छह प्रांतीय अध्यक्ष के फॉर्म्युले पर गई। सभी प्रांतीय अध्यक्षों के साथ ही एक-एक राष्ट्रीय सचिव की तैनाती कर दी गई, लेकिन नतीजा तब भी कुछ अलग नहीं दिखाई दे रहा। चार साल में पार्टी के संगठन की हालत तो यह हो चली है कि पार्टी अपने विरोध प्रदर्शनों में भी तेवर नहीं पैदा कर पा रही। पार्टी कार्यालय से ही कुछ दूर तक ही उसके विरोध प्रदर्शन का दायरा है, जिसके बाद उसका दम फूलने लगता है।

प्रियंका की गैरमौजूदगी का भी असर

पार्टी के उत्तर प्रदेश मामलों की प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा हैं। तकरीबन आठ महीने से वह उत्तर प्रदेश नहीं पहुंची हैं। जबकि प्रियंका के यूपी प्रभारी होने की वजह से सभी फैसलों में उनकी सहमति होना अनिवार्य माना जाता है या यूं कहें कि फैसले ही वही होते हैं, जो उनके स्तर से लिए जाते हैं। प्रदेश इकाई न तो अपने फैसले ले पा रही है और न ही अपने कार्यक्रम तय कर पा रही। वहीं, कांग्रेस महासचिव के पीए संदीप सिंह का भी दखल पार्टी के भीतर काफी माना जाता है। इसका भी असर प्रदेश के संगठन पर दिख रहा है।

गुटबाजी भी एक बड़ी वजह

सूत्रों की मानें तो संगठन के खड़ा न हो पाने के पीछे गुटबाजी भी एक बड़ी वजह है। कांग्रेस में एक धड़ा संदीप सिंह के करीबियों का माना जाता है। उस धड़े के इतर बाकी दूसरे खेमे के लोग कहे जाते हैं। संदीप के ही खेमे के लोगों को अहम पदों पर तैनात बताया जाता है। इसको लेकर भी खींचतान से संगठन की एका प्रभावित हुई है।

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