UP Chunav Ground Report: वोट डालने की वजह तलाश रहे अभी बुंदेलखंड के वोटर, झांसी में जीत का रहेगा ये समीकरण

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UP Chunav Ground Report: वोट डालने की वजह तलाश रहे अभी बुंदेलखंड के वोटर, झांसी में जीत का रहेगा ये समीकरण

झांसी: उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक बुंदेलखंड (Bundelkhand Assembly Election) की सरजमीं झांसी में सर्दी ढलान पर है। दिन की धूप तल्ख होने लगी है, लेकिन महज कुछ दिनों बाद होने वाले सियासी चुनाव की तपिश अभी हल्की ही है। इसमें उतनी गरमाहट नहीं आई है, जितनी राज्य के दूसरे इलाकों में देखी जा रही है। अभी वोटर मिजाज बनाने में जुटे हैं कि किसे और क्यों वोट करें। इस सुस्ती या यूं कहें, चुनाव के प्रति वैराग का कारण झांसी (Jhansi Ground Report) शहर में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले सरकारी कर्मी दिनेश कुशवाहा बताते हैं। उन्होंने बताया, किसी भी दल ने न हमारे, न हमारे इलाके के बारे में कभी सोचा और न ही आगे सोचेंगे। इस इलाके की नियति में ही कुछ खोट है। वोट एक रस्म है जो देंगे जरूर। कोई जीतेगा तो कोई हारेगा लेकिन झांसी तो हारता ही रहेगा। झांसी में तीसरे चरण के तहत 20 फरवरी को मतदान है।

लोगों में चुनाव और सियासत के प्रति वैराग भाव का यह कोई अकेला मामला नहीं था। जिले की सभी चार विधानसभा सीट-झांसी सदर, बबीना, मऊरानीपुर और गोराठा में कमोबेश यही तस्वीर दिखी। इलाके की उपेक्षा के प्रति नाराजगी है। झांसी में अपनी दुकान चलाने वाले शिरीष सिंह कहते हैं, दिल्ली से नजदीक है तो सभी लोग जेवर हवाई अड्डे की बात करते हैं लेकिन झांसी हवाई अड्डा की बात किसी ने नहीं की। झांसी स्मार्ट सिटी बना लेकिन क्या मिला? लेकिन बात के अंत में बता जाते हैं कि फिर भी वह राष्ट्र हित के नाम पर बीजेपी को वोट करेंगे।

वोट डालने का पैमाना ही अलग
राज्य के इस इलाके में घूमने पर लगा कि जब लोगों के पास किसी के पक्ष में वोट देने या नहीं देने की वजह नहीं मिली तो लोगों ने वोट देने का पैमाना अपनी बिरादरी या इसके हित को चुना। इस तरह चुनाव जातीय समीकरणों में उलझता दिखने लगा। झांसी शहर से दूर सुदूर गांवों में जाने पर यह ट्रेंड और मजबूत होता दिखने लगा। मऊरानीपुर विधानसभा के तहत गांव सोखी में राकेश गौतम ने कहा कि सड़क-रेल तो सब ठीक लेकिन जब पेट ही नहीं भरेगा तो क्या? 40 वर्षीय राकेश वहां मोबाइल पार्ट्स की एक छोटी दुकान चलाते हैं। वह बताते हैं कि मऊरानीपुर को जिला बनाने की मांग लंबे समय से चल रही है। जिला बनता तो लाभ मिलता लेकिन आज तक किसी दल ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया।

क्षेत्र की राजनीति में दल-बदल का असर
यही उलझन जिले की बाकी दो विधानसभा सीट पर है। मऊरानीपुर में कमलेश सेन पूछने पर उलटा सवाल पूछते हैं कि वे किसे वोट करें? उनका इशारा सभी दलों के टिकट वितरण से था। अपना दल ने जिस उम्मीदवार को टिकट दिया वह कभी एसपी नेता थीं। बीएसपी उम्मीदवार रोहित रतन पूर्व मंत्री रतन लाल अहिरवार के बेटे हैं। वे सभी दलों में रह चुके हैं। कहते हैं, वोट कहीं भी दो घूमफिर उसका अंत सिर्फ दलदबल में ही होता है। झांसी के सरकारी स्कूल में भूगोल के शिक्षक के रूप में काम कर रिटायर होने वाले दिलीप रस्तोगी इलाके के सियासी मूड के बारे में बताते हैं, जो ध्यानचंद की तरह पूरी एकाग्रता से संतुलन बनाकर आगे बढ़ेगा, वही अंत में गोल करेगा। फिर जोड़ते हैं कि हॉकी के जादूगर ध्यानचंद इसी इलाके के हैं तो नेताओं ने भी उनकी इस विधा को सीख लिया है।

कानून का राज बनाम सामाजिक समीकरण
फिर भी जब चुनाव है तो चकल्लस तो होगी ही। उसके बीच ही चुनाव की दिशा की एक झलक भी मिलेगी। भावनात्मक मुद्दों को छोड़ दें तो झांसी इलाके में वोटर्स के बीच दो मुद्दे सबसे प्रभावी हैं। वोटर्स का बड़ा तबका है जो पांच सालों में कानून के राज से प्रभावित हुआ है और इसी कारण बीजेपी को वोट करेगा। उनके पास सरकार से कई शिकायतें हैं लेकिन फिलहाल इस चुनाव में वोटिंग के जरिए दंड नहीं देना चाहते हैं। गोरठा में शकुतंला देवी ने कहा कि महंगाई बहुत है लेकिन यह भी सही है कि अब कोई गुंडई नहीं करता। पहले किसी को डर नहीं था। थाने में शिकायत करने पर शिकायती को ही उलटे फंसा दिया जाता था।

वे कहती हैं – अगर कानून व्यवस्था ऐसी ही रहे तो उन्हें बाकी किसी चीज से परेशानी नहीं है। उनकी बात इस इलाके के कई लोगों की समान आवाज थी। इनका आरोप है कि जब समाजवादी का शासन था, तब यादव समुदाय का दबदबा था और वे मनमानी करते थे। यही फैक्टर बीजेपी के पक्ष में जा रहा है। तो बदलाव करने या अपनी बिरादरी के साथ जाने की ललक अखिलेश यादव की अगुआई एसपी के लिए उम्मीद देती है।

कोविड के दौरान गुड़गांव में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले महेश अहिरवाल पिछले डेढ़ साल से अपने गांव में हैं। परिवार के साथ कोविड के दौरान उन्हें यहां लौटना पड़ा। कभी कोई मजदूरी मिल जाती है तो काम कर लेते हैं। 25 हजार का कर्जा भी चढ़ चुका है। अब चाहते हैं कि नई सरकार उनके लिए कुछ करे। 2017 में वह बीजेपी को वोट कर चुके हैं लेकिन इस बार मायावती को करेंगे। क्यों? बताते हैं कि अपनी बिरदारी को देखना होता है।

हाथी की चाल पर सभी की नजर
मायावती की अगुआई वाली बीएसपी भले ही हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार नहीं कर रही लेकिन इस इलाके की चार सीटों पर छाप छोड़ रही है। गोराठा में खेती करने वाले गगन कुमार बताते हैं – वोट तो बहन जी को। वह 2017 में बीजेपी को वोट कर चुके हैं। उनकी तरह इस इलाके में दलितों का बड़ा हिस्सा मायावती के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। वैसे भी कभी मायावती का यह सबसे मजबूत इलाका माना जाता था। यहां मूलत: बीएसपी ही अधिकतर सीटों पर काबिज होती रही है।

कांग्रेस हालांकि सभी सीटों पर खड़ी है लेकिन अभी संगठन जमीन पर उतना सक्रिय दिखता नहीं है, जबकि कभी यह कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां के अधिकतर स्थानीय नेता कभी कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। कभी इसी इलाके की बबीना विधानसभा सीट में इंदिरा गांधी को सोने-चांदी से तब तोला गया था, जब पर्टी के पास फंड की कमी हो गई थी।

दलित, ओबीसी और सवर्ण बहुल हैं जिले की सभी सीटें
इस इलाके की अधिकतर सीटों पर ओबीसी, दलित या सवर्णों का प्रभुत्व है। मुस्लिम वोटों की संख्या अपेक्षाकृत इस इलाके में कम है। बबीना सीट पर सबसे अधिक लोधी वोट हैं और दूसरे नंबर पर यादव और दलितों की तादाद एक समान है। झांसी नगर में सबसे अधिक वोटर ब्राह्मण हैं। दूसरे नंबर पर दलित वोटरों की तादाद है। इसी तरह गरौठा सीट पर सबसे अधिक लोधी और यादव की संख्या है जबकि दूसरे नंबर पर दलित हैं। मऊरानीपुर सीट पर सबसे अधिक दलित हैं। दूसरे नंबर पर यादव हैं।

झांसी जिले में चार विधानसभा सीटें हैं। अभी चारों पर बीजेपी का कब्जा है। 2012 में इस जिले की चार सीटों में दो में एसपी, एक-एक पर बीजेपी और बीएसपी के उम्मीदवार जीते थे। राज्य की लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। 2019 आम चुनाव में बीजेपी के अनुराग शर्मा साढ़े तीन लाख वोट से जीते थे।

बुंदेलखंड के चुनावी मैदान में एक बार फिर हावी हो रही जाति



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