UP Chunav: अवध, लखनऊ फिर अयोध्या… अगले 3 चरण तय करेंगे, यूपी में किस करवट बैठेगा ऊंट

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UP Chunav: अवध, लखनऊ फिर अयोध्या… अगले 3 चरण तय करेंगे, यूपी में किस करवट बैठेगा ऊंट
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UP Chunav: अवध, लखनऊ फिर अयोध्या… अगले 3 चरण तय करेंगे, यूपी में किस करवट बैठेगा ऊंट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Chunav 2022) तीसरे, चौथे और पांचवे चरण की वोटिंग की ओर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, सभी की नजरें अवध पर टिकी हैं, जिसे उत्तर प्रदेश का हार्टलैंड (Heart Land) कहा जाता है। पहले दो चरणों में कथित तौर पर सपा से कड़ी टक्कर का सामना करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP Uttar Pradesh) इन तीनों चरणों को भुनाने की भरपूर कोशिश करेगी। ये इलाके राजनैतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के अनुकूल भी हैं।

तीसरे, चौथे और पांचवे चरण की 179 सीटों के लिए वोटिंग 20 फरवरी से शुरू हो जाएगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दोआब, अवध और बुंदेलखंड- भौगोलिक रूप से तीन अलग-अलग इलाकों में बंटे इस क्षेत्र में मैनपुरी की यादव पट्टी भी शामिल है। एटा, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा में सपा का अच्छा-खासा प्रभाव माना जाता है। फिर भी पिछले चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। पार्टी को 20 में से सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली थी।

यादव लैंड में सपा की चुनौती
इस बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव करहल से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा पीएसपी प्रमुख शिवपाल भी जसवंतनगर सीट से उम्मीदवार हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चाचा-भतीजे का यह गठजोड़ पार्टी के पारंपरिक गढ़ में सपा को मजबूती दिलाकर सत्ता में वापसी का रास्ता तैयार करेगा। उधर, अगर बीजेपी यादवलैंड में हारती है तो उसे बुंदेलखंड के दक्षिणी इलाकों- झांसी, जालौन और ललितपुर जैसे जिलों में इस नुकसान की भरपाई करनी होगी।

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बुंदेलखंड में बरकरार रहेगा बीजेपी का प्रभाव?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंचाई और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भारी निवेश के वादों के साये में बीजेपी ने पिछले चुनाव में इस क्षेत्र की 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, यह पूरा इलाका बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का गढ़ रहा है। ऐसे में यहां बीजेपी, एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। हालांकि, बीजेपी यहां पर ज्यादा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है।

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चौथे चरण के चुनाव का मुख्य आकर्षण राजधानी लखनऊ की लड़ाई होगी, जो पिछले तीन दशकों से बीजेपी का मजबूत गढ़ बनी हुई है। समाजवादी पार्टी लखीमपुर खीरी और पीलीभीत के तराई क्षेत्रों में अपनी संभावनाएं तलाशेगी, जो अवध में किसान मूवमेंट का मुख्य केंद्र है। इस इलाके में बीजेपी वरुण गांधी और मेनका गांधी के संयुक्त बगावत का सामना भी कर रही है।

हिंदुत्व का मोर्चाः पांचवा चरण
पांचवे चरण में बीजेपी अपनी पूरी ताकत के साथ हिंदुत्व के मोर्चे से चुनाव लड़ेगी। इस चरण में अयोध्या और प्रयागराज जैसे हिंदू संप्रदाय के पवित्र इलाके शामिल हैं। इस दौर में बीजेपी की ओर से राम मंदिर का जोर-शोर से प्रचार किए जाने की संभावना है। इसका असर अयोध्या के आसपास के जिलों पर भी पड़ने के आसार हैं। पांचवे चरण में सपा को श्रावस्ती और बहराइच में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी।

अवध का इलाका समाजवादी पार्टी के पिछड़ी जातियों के लिए ‘अंब्रेला पार्टी’ होने के परीक्षण का भी गवाह बनेगा। यहां यह तय हो जाएगा कि सपा अपने आपको दलितों-पिछड़ों का रहनुमा साबित कर पाने में सफल हुई है या नहीं? अवध इलाके में जाट कुछ मात्रा में हैं। यहां मुस्लिम आबादी भी 15 फीसदी के आसपास है। इसके अलावा कुर्मी, शाक्य, लोध, निषाद जैसी ओबीसी जातियां भी इस इलाके में सपा के भाग्य का फैसला कर सकती हैं। सपा के छोटे सहयोगी दल जैसे- महान दल या अपना दल (कमेरावादी) के जमीनी प्रभाव की परीक्षा भी यहीं होगी। यह प्रदेश की नई सत्ता में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

किसके साथ जाएंगे कुर्मी?
कुर्मी अवध के कई विधानसभा इलाके में निर्णायक भूमिका में हैं। खासतौर पर उन्नाव, लखीमपुर खीरी, हरदोई और बाराबंकी जैसे स्थानों पर उनकी अच्छी-खासी तादाद है। यादवों के बाद कुर्मी समुदाय उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा पिछड़ा (ओबीसी) समुदाय है। अपने सहयोगी अपना दल (एस) की मदद से बीजेपी कुर्मी वोटों का 57 फीसदी हिस्सा पिछले चुनाव में हासिल करने में सफल रही थी।

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सपा ने इस बार लालजी वर्मा, राम अचल राजभर और राम प्रसाद चौधरी जैसे बड़े कुर्मी नेताओं को पार्टी में शामिल किया है। सपा का जाति जनगणना का वादा भी इन पिछड़ी जाति के मतदाताओं को रिझाने में काम आ सकता है।

इसके अलावा इस क्षेत्र में पासी समुदाय भी है, जो अवध क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी दलित कम्युनिटी है। बीजेपी ने पिछले चुनाव में पासी वोटरों में अच्छी-खासी पैठ बना ली थी। यही कारण था कि अवध क्षेत्र में बीएसपी शून्य पर पहुंच गई थी। अपनी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए बीजेपी इलाके में पासी तथा अन्य दलित समुदायों पर काफी निर्भर रहेगी।

‘ब्राह्मणों के असंतोष’ की परीक्षा
अवध में ब्राह्मण (11 प्रतिशत) और राजपूत (8 फीसदी) का भी एक बड़ा अनुपात है। यहां देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी के खिलाफ बहुप्रचारित ब्राह्मण असंतोष चुनाव में अपना कोई असर दिखाता है या नहीं? इस इलाके में कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा बीजेपी को मिलेगा। कांग्रेस ने एक समय में बीजेपी के ब्राह्मण वोट बैंक को काफी नुकसान पहुंचाया है। साल 2009 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने ब्राह्मणों के समर्थन से ही अवध की 8 प्रभावशाली सीटें जीत ली थीं।

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हालांकि, इस इलाके में पार्टी अभी भी अचेत अवस्था में है। यहां तक कि अमेठी और रायबरेली जैसे पार्टी के गढ़ भी इस बार उसके लिए मुश्किल दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले दो चरण दो ध्रुवीय रहे हैं। अब अगले तीन चरण यह तय करेंगे कि चुनाव किस ओर झुक रहा है।

(‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में असीम अली के लेख पर आधारित)

यूपी चुनाव 2022



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