UP BJP: आयोग से उच्च सदन तक चेहरे नहीं तलाश पा रही भाजपा, जानिए क्या है पूरा मामला

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UP BJP: आयोग से उच्च सदन तक चेहरे नहीं तलाश पा रही भाजपा, जानिए क्या है पूरा मामला

UP BJP: आयोग से उच्च सदन तक चेहरे नहीं तलाश पा रही भाजपा, जानिए क्या है पूरा मामला

लखनऊ : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) विधान परिषद से लेकर निगम-बोर्ड तक के लिए चेहरों को तलाशने में नाकाम हो रही है। कई उदाहरण सामने आ रहे हें। दर्जन भर ऐसे आयोग, निगम एवं बोर्ड हैं, जहां पर पद खाली हैं, लेकिन 100 दिन की उपलब्धियों का जश्न मना चुके सरकार-संगठन इनके लिए चेहरे तलाश नहीं पाया है। चुनाव में ‘देवतुल्य’ हो जाने वाले कार्यकर्ता जीत के जश्न के बाद अपने पसीने के मोल का भी इंतजार कर रहे हैं। उच्च सदन में भी छह सीटों पर मनोनयन के लिए नाम तय नहीं हो पा रहे हैं।

विधान परिषद में मनोनयन कोटे की तीन सीटें 28 अप्रैल को खाली हो गई थीं। करीब ढाई महीने में सरकार-संगठन इसके लिए उपयुक्त चेहरे तय कर राजभवन नाम नहीं भेज पाया है। यही, स्थिति 26 मई को मनोनयन कोटे में खाली हुई तीन और सीटों की भी है। सूत्रों का कहना है कि पिछले महीने के पहले सप्ताह में विधायक कोटे वाली विधान परिषद सीटों के नामों पर मंथन के दौरान मनोनयन कोटे के लिए भी चेहरों पर चर्चा हुई थी। लेकिन प्रक्रिया अब भी जस की तस है।

केसों से समझिए मामला
केस एक : यूपी समाज कल्याण निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष बीएल वर्मा पिछले साल जुलाई में केंद्रीय मंत्री बना दिए गए। सियासी चेहरों वाला यह पद करीब एक साल से समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव के पास है।

केस दो : एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष पद पर पिछले साल जून में रामबाबू हरित को बैठाया गया। जून के आखिर में इस पद का भी अतिरिक्त कार्यभार समाज कल्याण राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण को दे दिया गया।

पिछली बार भी उठे थे सवाल
भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में भी कार्यकर्ताओं के समायोजन को लेकर सवाल उठे थे। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पिछले साल जून में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने इसको लेकर मैराथन बैठक की थी। इसमें कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम करने के लिए सरकार से लेकर संगठन तक में विभिन्न पदों पर समायोजन पर जोर भी दिया गया था। इसका असर भी हुआ भी और कई खाली पद भरे भी गए। अब, सरकार की दूसरी पारी में भी तस्वीर पहले जैसी ही बन रही है।

पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य अहम निकायों के अध्यक्ष की कुर्सी भी निवर्तमान चेहरों के मंत्री बनने के चलते खाली हैं। और भी कई ऐसे पद हैं, जो परंपरागत तौर पर राजनीतिक चेहरों को समायोजन के तौर पर दिए जाते हैं, वह भी या तो मंत्री के पास हैं या फिर उस पर अफसर ही काबिज हैं।

बदलाव की सुगबुगाहट में फंसी प्रक्रिया!
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जलशक्ति मंत्री बन चुके हैं। पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाना है। संगठन महामंत्री सुनील बंसल के बदलाव को लेकर भी लगातार कयास चल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि बदलाव की सुगबुगाहटों के बीच नामों पर मंथन एवं प्रक्रिया भी अटकी हुई हैं। पसंद व नापसंद के समीकरणों को साधने की कवायद में बदलाव की तस्वीर साफ होने का भी इंतजार किया जा रहा है। हालांकि, बड़े स्तर पर समायोजन के संकट के बीच फिलहाल पिस कार्यकर्ता रहे हैं।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह का कहना है कि सरकार-संगठन को कार्यकर्ताओं की पूरी चिंता है। विभिन्न पदों पर उनके समायोजन पर विचार चल रहा है। जल्द ही निर्णय ले लिया जाएगा।

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