UP में पहली बार लॉ एंड आर्डर बना सत्‍ता पक्ष का हथियार, बीजेपी हावी और विपक्ष नहीं कर पा रहा वार

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UP में पहली बार लॉ एंड आर्डर बना सत्‍ता पक्ष का हथियार, बीजेपी हावी और विपक्ष नहीं कर पा रहा वार

UP में पहली बार लॉ एंड आर्डर बना सत्‍ता पक्ष का हथियार, बीजेपी हावी और विपक्ष नहीं कर पा रहा वार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) अपना पहला पड़ाव पार कर चुका है। पहले चरण में हुई बम्पर वोटिंग से चुनाव आयोग उत्साहित दिख रहा है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों की धड़कने बढ़ी हुई हैं। वो अगले चरणों में वोटरों को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं। हर पार्टी एक दूसरे पर जमकर हमले कर रही है। इन हमलों में एक नई चीज देखने को मिल रही है। आमतौर पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विपक्ष का प्रमुख मुद्दा कानून व्यवस्था होता था। विपक्ष इन्हें हथियार बनाकर सत्तारूढ़ दल पर हमले करता था। पिछली बार 2017 के विधानसभा चुनावों पर ही नजर डाल लें तो मुजफ्फरनगर सहित प्रदेश में हुए कई जगह दंगे, कैराना पलायन, गुंडो माफियाओं की सरपरस्ती आदि अहम मुद्दा थे। लेकिन इस बार कहानी कुछ बदली-बदली सी लग रही है। कानून व्यवस्था मुद्दा इस बार है जरूर लेकिन ये सत्तारूढ़ रही बीजेपी के प्रमुख हथियार के रूप में नजर आ रहा है। योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सब इस मुद्दे पर विपक्ष पर हमलावर दिख रहे हैं। बीजेपी के सभी नेताओं के भाषण में इसकी झलक भी देखने को मिलती है। वहीं विपक्ष की तरफ से अखिलेश यादव-जयंत चौधरी हों, प्रियंका गांधी हों या मायावती, कानून व्यवस्था को लेकर आवाज उठाई जरूर जाती है लेकिन उसमें वो धार नजर नहीं आ रही।

कुछ बयानों पर ही गौर करें तो सहारनपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुजफ्फरनगर में जो हुआ, वो तो कलंक था ही, यहां सहारनपुर में जो कुछ हुआ था, वो भी खौफनाक था। अखिलेश-जयंत पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि सहारनपुर के गुनहगारों को इन माफियावादियों ने अपना साथी बना लिया। उन्होंने कहा, “यूपी में कुछ लोग आज इसलिए नाराज हैं, क्योंकि योगी जी की सरकार ने दंगावादियों और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की, उन्हें जेल भेजा।” इससे पहले एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में एक समय था, गुंडे जो चाहे, वो कर सकते थे। आज स्थिति ये है कि उनको हाथ जोड़कर कहना पड़ता है कि यहां बाहर मुझे रहना नहीं है, मुझे जेल में ही रखो।

दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कानून व्यवस्था के मुद्दे पर शुरू से ही आक्रामक रही। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ यूपी में पुलिस एनकाउंटरों को अपनी सरकार के एक तमगे की तरह पेश करते रहे। वह सीएए/एनआरसी के दौरान हुए यूपी में उग्र प्रदर्शन को लेकर कुर्की-जब्ती के आदेश को भी उपलब्धि मानते हुए संदेश देते हैं कि अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। योगी आदित्यनाथ अपने भाषणों में अपराधियों, माफियाओं के खिलाफ एक्शन, महिलाओं के खिलाफ अपराध पर बीजेपी सरकार का सख्त रुख आदि जिक्र जरूर करते हैं। वह यूपी में माफिया और गुंडों पर बुलडोजर और जेसीबी चलाने की बात कर रहे हैं। इसके जरिए वे कानून व्यवस्था को सही करने का दावा करते हैं। विपक्ष की ओर से उम्मीदवार बनाए गए दागदारों को चेतावनी देते दिख रहे हैं। योगी कहते हैं कि जो गुंडे-माफिया आज चुनावी मैदान में उतर कर अपनी धमक दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, वे 10 मार्च के बाद ठेला पर सब्जी बेचने के लिए गुहार लगाते नजर आएंगे।

इसी क्रम में हाल ही में योगी आदित्यनाथ का गर्मी शांत करने का बयान भी काफी चर्चा में रहा। दरअसल योगी ने कहा था कि ये गर्मी जो अभी कैराना और मुजफ्फरनगर में कुछ जगहों पर दिख रही है, शांत हो जाएगी। मैं मई और जून में भी शिमला बना देता हूं। योगी के इस बयान पर विपक्ष हमलावर जरूर दिखा। लेकिन बात कानून व्यवस्था से इतर उनकी भाषा शैली पर केंद्रित होकर रह गई।

मोदी और योगी की तरह ही केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी के प्रमुख रणनीतिकार अमित शाह भी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सीधे सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर हमलावर रहे हैं। अमित शाह ने आंकड़ों के जरिए प्रदेश में अपराध की स्थिति पर बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि पिछले पांच सालों डकैती और चोरी की घटनाओं में 70 फीसदी और 69.3 फीसदी की कमी आई है। हत्या के मामलों में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अमित शाह ने दावा किया कि वर्ष 2017 में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में जो वादे किए थे, उनमें से 95 फीसदी को पूरा कर दिया है। इसके बाद हम चुनावी मैदान में उतरे हैं।

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वहीं बात अगर विपक्ष की करें तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर उनके गठबंधन के साथी आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी हों, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और बसपा प्रमुख मायावती कानून व्यवस्था के मुद्दे पर योगी सरकार को अभी तक घेर नहीं सके हैं। लखीमपुर कांड को लेकर सभी दलों ने तगड़ा विरोध जरूर किया और मुद्दा चर्चा में बना रहा लेकिन इस घटना से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी ही कटघरे में खड़े दिखे, योगी सरकार घिरती नजर नहीं आई।

वैसे ऐसा नहीं है कि योगी सरकार के दौरान घटनाएं ही नहीं हुईं या विपक्ष ने आवाज ही नहीं उठाई। चाहे वह उन्नाव रेप केस हो, बिकरू कांड हो, गोरखपुर में कानपुर के व्यापारी की हत्या का मामला हो, हाथरस रेप और हत्याकांड हो, सोनभद्र प्रकरण हो, कई जिलों में पुलिस कस्टडी में मौत का मामला हो, विपक्ष ने इन मामलों में विरोध प्रदर्शन से लेकर बयानों में सरकार को घेरने की कोशिश की। कई बार सरकार बैकफुट पर भी दिखी। लेकिन यूपी चुनाव तक आते-आते विरोध की ये तपिश कहीं ठंडी पड़ती दिख रही है।
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अखिलेश सरकार की तुलना में दोगुने पुलिस एनकाउंटर
आंकड़ों के अनुसार 2017 से 2022 के बीच योगी सरकार में 9185 एनकाउंटर हुए, जबकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में कुल 4359 एनकाउंटर हुए थे। योगी सरकार में जहां 156 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए, जबकि अखिलेश सरकार में 40 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए थे। योगी सरकार में 19908 अपराधी एनकाउंटर में गिरफ्तार किए गए, जबकि अखिलेश सरकार में 11963 अपराधी गिरफ्तार किए गए। योगी सरकार में 13 पुलिस वाले एनकाउंटर में शहीद हुए, जबकि अखिलेश सरकार में 8 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।

अपराध के आंकड़ों का एक अलग है ‘सच’
एनसीआरबी के वर्ष 2021 में आए आंकड़े कहानी को बयां करते हैं। वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई थी। वह भी तब जब कोरोना का लॉकडाउन लगा हुआ था। यूपी में 66,01,285 संज्ञेय अपराध के मामले दर्ज किए गए। ये ऐसे मामले रहे, जिसमें अपराधी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, अपराध के मामलों में यूपी आगे रहा। वहीं, हत्या के मामलों ने भी सवाल खड़े किए। बिकरू में जिस प्रकार से 9 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई। रात के अंधेरे में अपराधियों ने गोली चलाकर उन्हें शहीद कर दिया। लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में किसानों के प्रदर्शन पर एसयूवी चढ़ाए जाने और इसके बाद हिंसा में 8 लोगों की मौत ने भी पूरे देश को झकझोड़ा। हालांकि, प्रदेश में पिछले पांच सालों में हत्या के मामलों में कमी आई है, लेकिन इसे पूरी तरह काबू में करना संभव नहीं हुआ।
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यूपी में पिछले पांच वर्ष में हत्या के दर्ज मामले
वर्ष : दर्ज मामले
2016 : 4889
2017 : 4324
2018 : 4018
2019 : 3806
2020 : 3779

महिला अपराध के मामलों ने भी बढ़ाया है दबाव
यूपी में हाथरस और उन्नाव की घटनाओं ने महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के मामलों को सामने लाया है। यूपी में महिला उत्पीड़न, रेप, हत्या, लूट, डकैती और किडनैपिंग जैसी घटनाओं की बात की जाए तो इसमें पहले के मुकाबले कमी आई है। महिलाओं से संबंधित क्राइम में पिछले 8 सालों में करीब 10 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिला रिलेटेड अपराध के मामले में यूपी 16वें नंबर पर है। वर्ष 2020 में देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,71,503 मामले दर्ज किए गए।

प्रदेश में पिछले पांच सालों में रेप के दर्ज मामले
वर्ष : दर्ज मामले
2016 : 4816
2017 : 4246
2018 : 3964
2019 : 3065
2020 : 2769

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (सांकेतिक तस्वीर)

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