UP में कैसे तय होगी विपक्षी एकता की राह? एकता के प्रयासों से Mayawati अब तक बाहर, Akhilesh का रुख भी साफ नहीं

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UP में कैसे तय होगी विपक्षी एकता की राह? एकता के प्रयासों से Mayawati अब तक बाहर, Akhilesh का रुख भी साफ नहीं
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UP में कैसे तय होगी विपक्षी एकता की राह? एकता के प्रयासों से Mayawati अब तक बाहर, Akhilesh का रुख भी साफ नहीं

लखनऊ: 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में विपक्षी एकता को लेकर शुक्रवार को कई दलों के नेताओं ने कसरत की। यूपी से इसमें सपा मुखिया अखिलेश यादव मौजूद थे। लेकिन, खराब दौर में भी 13% से 20% तक वोट हासिल करने वाली बसपा इस पूरी प्रक्रिया से अलग है। इसलिए, सबके मन में सवाल यही है कि यूपी में विपक्षी एकता की राह कैसे तय होगी।यूपी में वोट बैंक की पूंजी के आधार पर बात करें तो विपक्ष में सपा और बसपा दो अहम खिलाड़ी हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय दल होने के बाद भी यूपी में हाशिए पर है। इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में जयंत चौधरी की रालोद, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाल), ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा और संजय निषाद की निषाद पार्टी भी कुछ सीटों पर अपना प्रभाव रखती है।

हालांकि, दलों ने फिलहाल किसी न किसी का दामन थाम रखा है या संभावनाओं की राह पकड़ ली है। मसलन, रालोद सपा के साथ गठबंधन में हैं तो अपना दल व निषाद पार्टी सत्तारुढ़ भाजपा के गठबंधन का हिस्सा है। ओम प्रकाश राजभर की भाजपा से नजदीकियां छिपी नहीं हैं। सवाल, प्रमुख दलों की केमिस्ट्री को लेकर फंसा है।

साथ होंगे सपा-बसपा?
2019 के लोकसभा चुनाव में एक साथ आने के बाद सपा-बसपा अलग राह पकड़ चुके हैं। गणित में मजबूत यह गठबंधन केमिस्ट्री में फेल रहा, इसलिए नतीजे माकूल नहीं रहे। गठबंधन टूटने के बाद दोनों दल एक-दूसरे पर हमलावर हैं। मायावती सपा की नीतियों पर सवाल उठा रही हैं और अखिलेश यादव बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम बता रहे हैं। विपक्षी एकता की पटना में हुई बैठक में मायावती को बुलावा तक नहीं था। माया ने इसे लेकर हमला भी बोला था।

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ऐसे में सपा-बसपा की एका को लेकर अब तक न कोई बात हुई है और न ही पहल। अखिलेश हालांकि ‘बड़ा दिल’ दिखाने की अपील कर रहे हैं, लेकिन उनकी ओर से भी इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर एकता को लेकर शुरू हुई इस कवायद में यूपी से इकलौते चेहरे अखिलेश की ‘अगुआई’ को मायावती स्वीकारेंगी, इसे लेकर भी संशय है।

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कांग्रेस को किसका साथ?
पटना की बैठक में अखिलेश के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मौजूद थे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने एक साथ ‘दो लड़कों की जोड़ी’ की ब्रैंडिंग की थी, लेकिन गठबंधन से न कांग्रेस का भला हुआ और न ही सपा का। दोनों ही अपने सबसे खराब प्रदर्शन की ओर पहुंच गए। गठबंधन खत्म होने के बाद अखिलेश कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हैं। हाल में उन्होंने अमेठी से रायबरेली से गांधी परिवार के खिलाफ उम्मीदवार न उतारने की रवायत को भी तोड़ने का इशारा किया था।

शुक्रवार को हुई बैठक में भी अखिलेश केवल नीतीश और लालू का ही नाम लेने तक सीमित रहे। ऐसे में एकता के मंथन में मौजूद सपा-कांग्रेस यूपी में साथ आएंगे इसकी तस्वीर धुंधली ही है। साथ आते भी हैं तो सीटों का स्वरूप क्या होगा, भागीदारी कितनी होगी? जैसे सवालों का भी जवाब तलाशना पड़ेगा। यूपी जैसे सबसे बड़े राज्य में मामूली सीटों पर पर कांग्रेस मानेगी या सपा या बसपा किसी से भी गठबंधन होता है तो वे कांग्रेस को बड़ा हिस्सा देने पर तैयार होंगे, इस पर भी तरह-तरह के कयास हैं।

हालांकि, जातीय जनगणना के जरिए ओबीसी-दलित लामबंदी के साथ ही अल्पसंख्यक वोटों को अपने पाले में करने के लिए मेहनत सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों ही कर रहे हैं। ऐसे में खेमे में जितने अलग होंगे, बंटवारे का खतरा भी उनका ही अधिक होगा। इस खतरे की आहट इनके नेतृत्व को भी है।

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