Ujjain Harsiddhi Temple: 51 शक्तिपीठों में शामिल है 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर, यहां की परंपराएं भी हैं खास

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Ujjain Harsiddhi Temple: 51 शक्तिपीठों में शामिल है 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर, यहां की परंपराएं भी हैं खास

Ujjain Harsiddhi Temple: 51 शक्तिपीठों में शामिल है 2000 साल पुराना हरसिद्धि मंदिर, यहां की परंपराएं भी हैं खास


उज्जैन का प्रसिद्ध हरसिद्धि मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है। इसकी चर्चा पुराणों में भी मिलती है। माना जाता है कि जहां यह मंदिर स्थित है, वहां माता सती की कोहनी गिरी थी। इस मंदिर की परंपराएं भी बेहद खास हैं। मंदिर के सामे दो दीप स्तंभ हैं। नवरात्रि के दौरान पांच दिन तक इनमें दीप मालाएं लगाई जाती हैं।

 

हाइलाइट्स

  • उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर 51 शक्तिपीठों में है शामिल
  • जहां मंदिर स्थित है, वहां गिरी थी माता सती की कोहनी
  • इस मंदिर में बलि नहीं दी जाती, श्रीसूक्त और वेद मंत्रों से होती है पूजा
  • नवरात्रि के दौरान देवी की होती है खास पूजा
उज्जैनः मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है। 2000 साल पुराने इस मंदिर की चर्चा पुराणों में भी है। जितना खास यह मंदिर है, उतना ही खास इसकी परंपराएं हैं। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में उत्सव का माहौल होता है। भव्य यज्ञ और पाठ के साथ देवी की खास पूजा-अर्चना होती है। माना जाता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर में चार प्रवेश द्वार

हरसिद्धि मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं। सभी द्वारों पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। मंदिर के दक्षिण-पूर्व कोण में एक बावड़ी है जिसके अंदर एक स्तंभ है। यहां श्रीयंत्र बना हुआ है। मंदिर के ठीक सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। नवरात्रि के दौरान पांच दिनों तक इन पर दीप मालाएं लगाई जाती हैं।

यहीं गिरी थी माता सती की कोहनी

माना जाता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर भैरव पर्वत पर मां सती के ओठ गिरे थे। हरसिद्धि मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह जहां स्थित है, वहां सती माता की कोहनी गिरी थी। इसीलिए इस मंदिर को शक्तिपीठों में स्थान प्राप्त है।

हरसिद्धि नाम की है ये कहानी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंड और मुंड नामक दो दैत्यों ने एक बार कैलाश पर कब्जा करने की योजना बनाई। दोनों जब वहां पहुंचे तब माता पार्वती और भगवान शंकर द्यूत-क्रीड़ा में व्यस्त थे। चंड और मुंडे ने अंदर घुसने की कोशिश की, लेकिन द्वार पर ही शिव के नंदीगण ने उन्हें रोक दिया। दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शस्त्र से घायल कर दिया। भगवान शिव को जब इसका पता चला तो उन्होंने चंडी देवी का स्मरण किया। शिव की आज्ञा से देवी ने दोनों दैत्यों का वध कर दिया। इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा कि आपने दुष्टों का वध किया है। इसलिए आप हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध होंगी। तभी से महाकाल वन में हरसिद्धि विराजमान हैं।

राजा विक्रमादित्य से भी संबंध

हरसिद्धि मंदिर का संबंध राजा विक्रमादित्य से भी माना जाता है। जिस क्षेत्र में मंदिर स्थित है, उसे विक्रमादित्य की तपोभूमि माना जाता है। मंदिर के ठीक पीछे एक कोने में कुछ सिर रखे हैं जिन पर सिंदूर लगा हुआ है। कहा जाता है कि ये राजा विक्रमादित्य के सिर हैं। लोक कथाओं के मुताबिक विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12वें वर्ष में अपने सिर की बलि दी थी। उन्होंने 11 बार ऐसा किया, लेकिन हर बार सिर वापस आ जाता था। जब 12वीं बार उन्होंने सिर की बलि दी तो यह वापस नहीं आया। इसे उनके शासन का अंत माना गया।

पूरी होती है हर मनोकामना

इस मंदिर की परंपराएं भी बेहद खास हैं। यहां बलि नहीं चढ़ाई जाती क्योंकि देवी वैष्णव हैं। वे परमारवंशी राजाओं की कुलदेवी हैं। यहां श्रीसूक्त और वेद मंत्रों के साथ पूजा होती है। यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। माना जाता है कि स्तंभ दीप जलाते वक्त बोली गई हर मनोकामना पूरी होती है।

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