आज का सवाल Number 166……………… क्या नेताओं पर जूता फेंक कर मारना ही विरोध का एकमात्र लोकतांत्रिक तरीका है?

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आज AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर जूता फेंकने का मामला सामने आया है. जिस वक़्त ये हमला हुआ उस समय ओवैसी तीन तलाक़ के मामले पर बात कर रहे थे. ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी नेता पर जूता फेंका गया हो. इससे पहले साल 2012 में राहुल गाँधी पर और साल 2015 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पर भी जूता फेंकने की घटना हुई थी. इतना ही नही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर 2009 में जूता फेंकने की कोशिश की गयी थी मगर वो बच गए थे. मनमोहन के अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्णा आडवाणी पर 2009 में पावस अग्रवाल नाम के उनके ही पार्टी कार्यकर्ता ने जूता फेंकने की कोशिश की थी.

जूता फ़ेंक कर विरोध दर्ज करने का सबसे चर्चित मामला साल 2008 का है, जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर एक आदमी ने इराक हमले के विरोध में जूता फ़ेंक कर मारा था.

सवाल यही है कि क्या भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां पुलिस है, पुख्ता कानून है और विरोध दर्ज करने के सैकड़ों अहिंसक तरीके हैं वहां इस तरह किसी नेता पर आक्रामक हमला करना सही है? क्या सचमुच इस तरह की हरकतों से कोई हल निकल पाएगा?

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