घर के यह भेदी 2019 में ढहा सकते हैं भाजपा की लंका।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में भले ही देशभर में भगवा रंग फैल रहा हो और पार्टी लगातार जीत की नई इबारत लिखती जा रही हो मगर भाजपा शासित राज्यों में पार्टी के बागी नेता ही उनके लिए मुसीबत बनकर उभरे हैं। इनमें अधिकांश नेता उन राज्यों से ताल्लुक रखते हैं, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल राजस्थान में है। हाल के उप चुनावों में दो लोकसभा और एक विधान सभा सीटों पर बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है। माना जा रहा है कि बीजेपी को भितरघातियों की वजह से भी नुकसान पहुंचा है। उधर, कुछ नेताओं ने खुलकर राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर दी है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का विरोध करने वालों में सबसे आगे घनश्याम तिवाड़ी हैं।

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घनश्याम तिवाड़ी बीजेपी के वरिष्ठ और पुराने नेता हैं और पांच बार विधायक रहे हैं। उन्होंने वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ऐलान किया है कि अगर मुख्यमंत्री को नहीं हटाया गया तो राजस्थान में बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। बता दें कि तिवाड़ी वसुंधरा सरकार में पहले मंत्री भी रह चुके हैं। इसके अलावा वो विधान सभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं। फिलहाल वो सांगानेर विधानसभा से विधायक हैं। साल 2013 में उन्होंने यहां से सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को 60,000 वोटों से हराया था और सीट पर करीब 60 फीसदी वोट हासिल किए थे। तिवाड़ी बीजेपी की अनुषंगी इकाई दीनदयाल वाहिनी से जुड़े हैं और संघ में अच्छी पकड़ रखते हैं।

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ज्ञानदेव आहूजा भी राजस्थान बीजेपी में दूसरे बड़े बागी नेता हैं। अलवर लोकसभा उप चुनाव में पार्टी प्रत्याशी की हार के बाद उनका एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ था, जिसमें वो कहते सुने गए थे कि जैसा किया है तूने, वैसा ही तू भरेगा। आहूजा पहले भी सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके हैं। भाजपा महामंत्री को भी राज्य में नेतृत्व परिववर्तन के लिए लिख चुके हैं। आहूजा अलवर के रामगढ़ असेंबली सीट से विधायक हैं और हिंदू जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ से जुड़े हुए हैं। ये अपने छात्र जीवन में एबीवीपी के भी सदस्‍य रह चुके हैं। एक अक्‍टूबर 1950 को राजस्‍थान के बीवार शहर में जन्‍मे आहूजा 12वीं तक पढ़े हैं। पूर्व में वे पत्रकार भी रह चुके हैं। बंद हो चुके साप्‍ता‍हिक ‘मत सम्‍मत’ के वे मैनेजिंग एडिटर भी रहे हैं।

 

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नाना पोटले महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया से बीजेपी के सांसद रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व और पीएम मोदी की नीतियों के खिलाफ बागी रुख अख्तियार करते हुए दिसंबर 2017 में बीजेपी और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। पोटले ने 2014 के चुनावों में एनसीपी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को हराया था। पोटले ने आरोप लगाया था कि बीजेपी अपने वादों को पूरा करने में विफल रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि पीएम मोदी की गलत नीतियों की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं। पोटले ने भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा की महाराष्ट्र के किसानों के समर्थन में की गई जनसभा का समर्थन किया था।

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बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश के कैसरगंज संसदीय सीट से बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। इन्होंने भी कुछ दिनों पहले स्थानीय निकाय चुनावों में संगठन द्वारा अपनी उपेक्षा से नाराज होकर पार्टी से बगावत का ऐलान कर दिया था और पार्टी उम्मीदवार के सामने न केवल अपना उम्मीदवार खड़ा किया बल्कि उसे जीत भी दिलवाई थी। उन्होंने तब ऐलान किया था कि भले ही उनकी सांसदी चली जाय मगर वो बीजेपी के उम्मीदवार को हराकर रहेंगे। झारखंड में भी रघुवर दास सरकार के खिलाफ बीजेपी नेता अंदरखाने दो फाड़ हैं। कई सांसद-विधायक और मंत्री सीएम की नीतियों और फैसलों की आलोचना कर चुके हैं। इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले मध्य प्रदेश में भी किसान आंदोलन और सरदार सरोवर बांध को लेकर बीजेपी के कई नेताओं ने सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर रखा है।

इनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा लगातार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं। बात चाहे नोटबंदी की रही हो या जीएसटी की या फिर पीएनबी घोटाले की, हर मुद्दे पर इन दोनों नेताओं ने मोदी सरकार की आलोचना की है। इनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी भी मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना कर चुके हैं।