कहते है की हिंदी सिनेमा समाज का ही एक चेहरा है, जो समाज में होता है वह हिंदी सिनेमा में दिखाई जाता है, और जो हिंदी सिनेमा के पर्दे पर दिखाया जाता है वह समाज में लोगों की ज़िंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन जाता है। वैसे तो हिंदी सिनेमा में महिलाओं के प्रति केंद्रित फ़िल्में ज्यादा नहीं बनती है लेकिन जब भी बनती है तो फ़िल्म की चर्चा चारों तरफ़ होती है। आईए जानते है की आख़िर वो कौन सी फ़िल्में है जो महिलाओं के प्रति केंद्रित है।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का
यह फ़िल्म रिलीज होने से पहले काफी सुर्खियों में थी, और इसके सुर्खियों में बने रहने की जो वजह थी वह था इस फ़िल्म का बोल्ड अंदाज। लिपस्टिक अंडर माय बुर्का चार महिलाओं कि ज़िंदगी पर आधारित फ़िल्म थी। जो अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है। लेकिन समाज की पुरानी सोच उनके सामने कई चुनौतियां पेश करती है।
पार्चड
फ़िल्म डायरेक्टर लीना यादव नें इस शब्द से गुजरात के एक गांव की तीन स्त्रियों के माध्यम से रुखी-निर्मम तस्वीर पेश की थी। फ़िल्म को 24 इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। जिसमें से 18 बार इसे अवार्ड्स से भी सम्मानित भी किया गया है। फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही तीक्ष्ण कटार की तरह थी, जिसमें कई सारे मुद्दे उठाये थे, जैसे बाल विवाह, पंचायती राज, पुरुष प्रधानता, और महिलाओं पर अत्याचार।
द डर्टी पिक्चर
विधा बालन के कमाल के अभिनय और मिलान लुथरिया के बेजोड़ निर्देशन नें फ़िल्म डर्टी पिक्चर को बेहद खूबसूरत तरीके से पेश किया। फ़िल्म वैसे तो 80 के दशक की दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सिल्क स्मिता की जीवनी पर आधारित थी, यह फ़िल्म सिनेमा के काले सच को उजागर करती है। फ़िल्म यह भी बताती है की सिनेमा में लोगों की सोच महिलाओं के शरीर के प्रति कैसी है। यह फ़िल्म बॉलीवुड के चमक के पीछे के अंधेरे को उजागर करने में सफ़ल रही थी। फ़िल्म के डायलॉग दमदार थे, और नारी शक्ति के प्रति लोगों की मानसिकता और फ़िल्म जगत की सोच पर कटाक्ष थे।
फायर
इस्मत चुगतई की किताब लिहाफ से प्रेरित दीपा मेहता की फ़िल्म फायर 1996 में बनी थी लेकिन सेंसर बोर्ड ने इसे 1998 में एडल्ट केरिटिफिकेट के साथ पास किया। फायर दो महिलाओं के समलैंगिक रिश्तों पर आधारित थी। फ़िल्म में शबाना आजमी और नंदिता दास नें शानदार अभिनय किया था।