इंदिरा गांधी ने जिस बच्चे का हाथ थाम रखा है, पहचाना क्या… UP में विरोध की राजनीति का है चेहरा, जानिए पूरी स्टोरी

107
इंदिरा गांधी ने जिस बच्चे का हाथ थाम रखा है, पहचाना क्या… UP में विरोध की राजनीति का है चेहरा, जानिए पूरी स्टोरी

इंदिरा गांधी ने जिस बच्चे का हाथ थाम रखा है, पहचाना क्या… UP में विरोध की राजनीति का है चेहरा, जानिए पूरी स्टोरी

लखनऊ: देश की राजनीति में एक परिवार के बीच के टूट की कहानी कुछ ऐसी है, जिसने चार दशक बीतने के बाद भी उन्हें एक छत के नीचे नहीं आने दिया। हम बात कर रहे हैं, गांधी परिवार के बीच हुई 40 साल पहले की टूट की। दो भाइयों का परिवार ऐसा टूटा, राजनीति में एक-दूसरे का विरोधी बन बैठा। एक परिवार ने कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया, तो दूसरा विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाता रहा। जी हां, यहां बात हो रही है मेनका गांधी और इंदिरा गांधी के उस टकराव की, जिसने एक परिवार के बीच कभी न पटने वाली दरार पैदा कर दी। संजय गांधी के साथ शुरू हुई एक खूबसूरत कहानी का अंत 9 सालों के बाद हो गया। मेनका प्रधानमंत्री आवास से विदा हुईं और कांग्रेस में राजीव गांधी, सोनिया गांधी युग की शुरुआत हुई। सवाल यहां ये उठता है कि क्या इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के बीच अनबन पहले से थी? इसका जवाब नहीं होगा। आप इस तस्वीर से पूरे मामले को समझ सकते हैं। इसमें इंदिरा गांधी जिस बच्चे का हाथ थामे दिख रही हैं, वह कोई और नहीं, पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी हैं।

इंदिरा गांधी और वरुण गांधी की यह तस्वीर एक कहानी कहती है। इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे संजय गांधी का निधन 1980 में हुआ। उस समय संजय गांधी महज 100 दिन के थे। मेनका गांधी की उम्र 23 साल की थी। इस परिवार के देखरेख की जिम्मेदारी इंदिरा गांधी पर आ गई थी। इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि इंदिरा गांधी एक बच्चे का हाथ थामे हैं। यह वरुण गांधी हैं। इस तस्वीर से आप एक दादी के अपने पोते से प्रेम को स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं। यह तस्वीर वरुण गांधी के पिता संजय गांधी के निधन की पहली बरसी पर 23 जून 1981 को ली गई थी। इस तस्वीर में आपको इंदिरा गांधी नन्हें वरुण गांधी को अपने पिता को श्रद्धांजलि देने में मदद करती दिख रही हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि करीब एक साल बाद ही इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को घर से बाहर कर दिया। कैसे पूरे मामले की शुरुआत हुई, आइए जानते हैं।

संजय- मेनका ने किया था प्रेम विवाह
इंदिरा गांधी को काफी खुले विचारों वाले व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। परिवार के मामले में भी उन्होंने निर्णय का अधिकार अपने बच्चों पर छोड़ा था। राजीव गांधी ने जिस प्रकार अपनी पसंद की लड़की सोनिया गांधी से शादी की थी। उसी प्रकार संजय गांधी के लिए भी उनके विचार थे। संजय गांधी ने एक विज्ञापन में मेनका गांधी की तस्वीर देखी और उन्हें चाहने लगे। दिन था 14 दिसंबर 1973। मेनका के अंकल मेजर जनरल कपूर के बेटे वीनू की शादी की कॉकटेल पार्टी थी। इसमें संजय गांधी भी आमंत्रित थे। वहीं, मेनका से संजय की मुलाकात हुई। मेनका काफी खूबसूरत थी। उन्होंने कॉलेज का ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीता था। हालांकि, उस समय मेनका की उम्र महज 17 साल थी। दोनों की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ। निजी जीवन में दिखावे से दूर रहने वाले संजय गांधी मेनका को भाए और सिलसिला चल पड़ा। वर्ष 1974 में संजय गांधी ने मेनका को अपने घर 1, सफदरजंग रोड पर खाने पर बुलाया।

इंदिरा गांधी और मेनका की पहली मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद इंदिरा गांधी की ओर से भी रिश्ते को सहमति मिल गई। दोनों ने 23 सितंबर 1974 को शादी कर ली। शादी में इंदिरा गांधी ने मेनका को काफी तोहफे दिए थे। दो सोने के सेट, 21 महंगी साड़ियां और लहंगे का जिक्र कई स्थानों पर आता है। इसके अलावा मेनका को उन्होंने पिता और पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू का जेल में रहते हुए बनाई गई खादी की साड़ी भी उपहार में देने का जिक्र कई स्थानों पर है। इससे साफ होता है कि शादी के समय इंदिरा गांधी अपनी छोटी बहू से कोई बैर नहीं रखती थीं।

शादी के बाद संजय और मेनका की जोड़ी काफी चर्चित रही थी। मीडिया की सुर्खियों में वे रहते थे। मेनका भी संजय गांधी के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में जाने लगी। वे सूर्या पत्रिका की संपादक भी थीं। इमरजेंसी के बाद के दौर में कांग्रेस की छवि देश में धूमिल हुई थी। मेनका ने संजय गांधी और इंदिरा गांधी के कई इंटरव्यू पत्रिका में छापे। यह देश की मीडिया की सुर्खियां बनीं। इससे इंदिरा की छवि को बेहतर बनाने में मदद मिली। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इंदिरा गांधी चाहती थीं कि सोनिया गांधी की तरह मेनका भी घर में रहें। उनका राजनीतिक कार्यक्रमों में जाना पसंद नहीं था।

संजय गांधी के निधन के बाद बदली स्थिति
संजय गांधी के निधन के बाद स्थिति बदलने लगी। मेनका गांधी ने पति के निधन के बाद अकबर अहमद डंपी के साथ मिलकर संजय विचार मंच की शुरुआत की। 27 मार्च 1982 को लखनऊ के कैसरबाग में फाइव पाइंट प्रोग्राम पर कन्वेंशन का आयोजन हुआ। संजय गांधी के दोस्त अकबर अहमद डंपी ने संजय विचार मंच को बड़े स्तर पर खड़ा करने की रणनीति तैयार की। संजय गांधी के निधन से पहले से ही मेनका गांधी सक्रिय राजनीति में आना चाहती थीं। लेकिन, इंदिरा गांधी ने इस पर रोक लगा दी थी। अब उनके सामने जमीन तैयार थी। इंदिरा गांधी के लंदन दौरे के बीच पूरा कार्यक्रम आयोजित हुआ। लखनऊ में हुए कार्यक्रम में मेनका ने जोरदार भाषण दिया।

भाषण में मेनका गांधी ने संजय गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत बताई। इसके लिए सरकार के स्तर पर न डरने की भी बात कही। अगले दिन यानी 28 मार्च 1982 को जब इंदिरा गांधी लंदन से लौटीं तो वे भड़की हुई थीं। उन्होंने संजय गांधी के दोस्तों पर मेनका को भड़काने और कांग्रेस के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया। घर से निकलने को कहा।

28 मार्च की कई है कहानियां
28 मार्च 1982 को प्रधानमंत्री आवास में जो कुछ हुआ, उसकी कहानियां हैं। सब कुछ मीडिया के कैमरों के सामने हो रहा था। परिवार की लड़ाई सड़क पर आ गई थी। दरअसल, मेनका को लग रहा था कि राजीव गांधी को आगे करके उनके हक को मारा जा रहा है। वहीं, इंदिरा गांधी उन्हें परिवार पर फोकस करने को कह रही थीं। 28 मार्च 1982 की उस रात की कहानी को खुशवंत सिंह, पुपुल जयकर आदि लेखकों ने अलग-अलग तथ्यों के आधार पर अपनी किताबों में लिखा है। खुशवंत और पुपुल जयकर दोनों ने घटना के बारे में लिखते हैं कि यह लड़ाई आम भारतीय परिवारों में होने वाली सास-बहू की लड़ाई के जैसी थी। बिल्कुल वैसी ही। वैसी ही गालियां, वैसी ही तकरार। इंदिरा गांधी ने मेनका को घर से निकलने को कह दिया। वरुण गांधी को देने से इनकार कर दिया।

मेनका नहीं मानी। इंदिरा ने जब सुरक्षाकर्मियों को मेनका को घर से बाहर निकालने को कहा। इस पर सिक्योरिटी अफसर एनके सिंह ने इंदिरा गांधी से लिखित आदेश मांग लिया। पूरा ड्रामा चला। मेनका की बहन पीएम आवास पहुंची। उनका और इंदिरा गांधी का झगड़ा हुआ। आखिरकार इंदिरा गांधी ने मेनका को वरुण गांधी के साथ घर छोड़ने की इजाजत दे दी। मेनका अपने सामान के साथ निकल गई।

मंच को मिली थी आंध्र में सफलता
इंदिरा गांधी का पारा इसलिए हाई था कि संजय गांधी का नाम लेकर बड़े स्तर पर राजनीति हो रही थी। संजय गांधी विचार मंच को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया जा रहा था। इसको लेकर परिवार में ही आपत्ति जताई जा रही थी। संजय गांधी विचार मंच ने आंध्र प्रदेश में चुनाव लड़ा था और 4 सीटों पर जीती। बाद में जनता दल में मिल गई। इस प्रकरण ने गांधी परिवार में अनबन बढ़ा दी। एक इंटरव्यू में मेनका गांधी ने दावा किया था कि इंदिरा गांधी के घर से निकालने और संपत्ति से बेदखल किए जाने के पीछे का सारा खेल राहुल गांधी और सोनिया गांधी का था। उनके ही दबाव में इंदिरा गांधी ने उनके साथ इस प्रकार का व्यवहार किया। इंदिरा गांधी तो केवल चेहरा थी। मेनका ने यह भी दावा किया था कि सोनिया गांधी ने इंदिरा के सामने वापस इटली जाने की भी बात कह दी थी।

1999 में भाजपा से जुड़ीं मेनका
वर्ष 1999 में दो बड़ी घटनाएं हुईं। कांग्रेस में सोनिया गांधी को कुछ समय पहले अध्यक्ष बनाया गया। वहीं, मेनका गांधी ने भाजपा की सदस्यता ले ली। अटल सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। इसके बाद से भाजपा में वे गांधी परिवार की नुमाइंदगी करने वाली नेता के रूप में जानी जाने लगीं। मेनका ने भाजपा में रहते कांग्रेस और गांधी परिवार पर खूब निशाना साधा। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में भी उन्हें मंत्री बनाया गया थ। अभी भी वे भाजपा से सांसद हैं और उनके बेटे भी। वर्ष 2009 में भाजपा ने उन्हें पीलीभीत सीट से उतारा और वे जीते। फिर 2014 के चुनाव में सुल्तानपुर सीट पर जाकर चुनाव लड़े और वहां भी जीत मिली। एक बार फिर 2019 में उनको पीलीभीत से उतारा गया और जीत दर्ज की।

मेनका गांधी और वरुण गांधी की अहमियत पिछले दिनों में भाजपा में कम हुई है। एक समय वरुण गांधी को भाजपा का फायरब्रांड नेता कहा जाता था। लेकिन, अब उनके सुर भी बदले हैं। वे भाजपा में रहते हुए पार्टी के खिलाफ लगातार विभिन्न मुद्दों पर मुखर रहे हैं। इसको लेकर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी स्थिति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News