Vidhansabha Bypoll 2021: उप-चुनावों के परिणाम मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी या फिर राहत की सांस

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Vidhansabha Bypoll 2021: उप-चुनावों के परिणाम मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी या फिर राहत की सांस

हाइलाइट्स

  • 29 विधानसभा सीट सहित तीन लोकसभा सीटों पर मंगलवार को उपचुनाव परिणाम आए
  • इन परिणामों को देख बीजेपी का माथा ठनका, अब अगले साल होने वाले हैं पांच राज्यों में चुनाव
  • राजस्थान, पं बंगाल और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हालत और भी नाजुक

नई दिल्ली
भारत में हर साल कहीं न कहीं लोकतंत्र का पर्व मनाया जाता है। पूरे देश में दीवाली की धूम है और इसी बीच 29 विधानसभा सीट सहित तीन लोकसभा सीटों पर मंगलवार को उपचुनाव परिणाम आए। इन चुनावों में एकतरफा जीत किसी को नहीं मिली मगर क्षेत्रीय पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन किया। इन चुनावों को एक तरह से मोदी सरकार से जोड़कर भी देखा जा रहा है। राजस्थान, हिमाचल और पश्चिम बंगाल में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई। सबसे ज्यादा जो चौंकाने वाली बात ये है कि हिमाचल प्रदेश में सरकार तो बीजेपी की है और ऐसा माना जाता है कि जिसकी सरकार होती है ज्यादातर उसी पार्टी को उपचुनावों में जीत मिलती है मगर ये मिथ हिमाचल से तोड़ दिया। वहीं कांग्रेस के लिए सुखद खबर ये है कि उसने अपने राज्य की सीटों में बीजेपी को सेंधमारी नहीं करने दी।

उपचुनाव मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा
ये उपचुनाव मोदी सरकार के लिए एक तरह से अग्निपरीक्षा की तर्ज पर देखा जा रहा था। बीजेपी इन परिणामों से खुश तो बिल्कुल भी नहीं होगी। वहीं लगातार हार का मुंह देख रही कांग्रेस के लिए ये किसी संजीवनी से कम नहीं होगा। मगर बीजेपी को ये झटका क्यों लगा ये विचार करने वाली बात होगी और बीजेपी इसमें मंथन में जुट भी गई होगी। लेकिन भाजपा का उपचुनावों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न कर पाने के पीछे कई वजह हैं। पूरे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बेहिसाब बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ ही दीवाली से ठीक पहले कॉमर्शियल एलपीजी सिलेंडर के दामों में वृद्धि कर दी गई। महंगाई एक बड़ा कारण है जो वोटर को सीधे-सीधे टार्गेट करता है। इसके अलावा किसान आंदोलन, बेरोजगारी, हंगर इंडेक्स भी भारत की रैंकिंग गिरना भी इन चुनावों में बड़े कारण बनकर उभरे हैं।

मोदी सरकार के कार्यकाल का आधा समय गुजरा
मोदी सरकार की दूसरी पारी का आधा समय बीत चुका है। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर दोबारा काबिज हुई थी। अब 2021 विदा होने वाला है और 2024 को फिर से लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। तालिबान का मुद्दा और जम्मू कश्मीर में विकास को लेकर मोदी सरकार राष्ट्रवादी और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर दे रही है। अगले साल यानी की 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी इन चुनावों में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देकर ही चुनाव लड़ रही हैं।

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बीजेपी की सीट शिवसेना के नाम
दादरा नागर से निर्दलीय सांसद मोहन डेलकर की पत्नी कलाबेन डेलकर शिवसेना उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतरी थीं। मोहन डेलकर की खुदकुशी की खबर काफी चर्चित हुई थी। डेलकर की मौत के बाद शिवसेना ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। डेलकर 2019 में बीजेपी के समर्थन से चुनाव जीते थे। हालांकि इस वोट को सहानुभूति वाला जनादेश माना जा रहा है, फिर भी शिवसेना इसे बड़ी जीत के रूप में पेश करेगी। यह महाराष्ट्र के बाहर किसी लोकसभा सीट पर शिवसेना की पहली जीत है। यहां पर भी बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा।

हिमालयन स्टेट बना कांग्रेस के लिए संजीवनी
हिमालयन स्टेट यानी हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की हार सबसे बड़ा चर्चा का विषय बन चुका है। यहां पर चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है। मंडी लोकसभा उपचुनाव सहित तीनों विधानसभा क्षेत्रों – अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई में जीत हासिल की है। कांग्रेस के लिए ये जीत बेहद खास है। अगले साल ही यहां पर चुनाव होने वाले हैं ऐसे में बीजेपी के लिए ये बुरी खबर है। कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह ने मंडी सीट जीती। बीजेपी के लिए यही सीट सबसे ज्यादा साल रही है। प्रतिभा सिंह ने भाजपा के ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (सेवानिवृत्त), को 8,766 मतों के मामूली अंतर से हराया, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब सीएम को डर है कि कहीं उनको विधानसभा चुनावों से पहले सीएम पद से न हटा दिया जाए।

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पश्चिम बंगाल में ‘दीदीगिरी’
पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी ने चारों विधानसीटों में जीत दर्ज की है। जिन चार सीटों पर चुनाव हुआ था उनमें दो सीट पहले टीएमसी के पास तो दो सीट बीजेपी के पास थी। टीएमसी ने चारों सीटों पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। सबसे हैरानी रही कि टीएमसी ने बहुत बड़े अंतर से हराया। जिस सीट से गृह राज्य मंत्री नीतीश प्रमाणिक ने इसी साल मई में चुनाव जीता था, वहां टीएमसी ने न सिर्फ सीट छीनी बल्कि जिस अंतर से जीती, वह बीजेपी के लिए बड़ा झटका है।

राजस्थान में गहलोत सरकार
राजस्थान से कांग्रेस के लिए अच्छी खबर की उम्मीद कम थी मगर यहां भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। कांग्रेस यहां पर अंतर्कलह से जूझ रही है। सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच मनमुटाव की खबरें भी खूब रहती हैं। मगर इस जीत से न केवल कांग्रेस को फायदा होगा बल्कि अशोक गहलोत का कद और भी मजबूत होगा। राजस्थान में अशोक गहलोत को उपचुनाव ने बड़ी राहत दे दी। वहां कांग्रेस न सिर्फ अपनी एक सीट बचाने में सफल रही बल्कि दूसरी सीट भी बीजेपी से छीन लेने में कामयाब हो गई। इस परिणाम से अशोक गहलोत और मजबूत बनकर उभरेंगे। यह चुनाव परिणाम बीजेपी को चिंता में डालने वाला है।

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बिहार में जेडीयू-बीजेपी का कमाल
बिहार में विधानसभा उपचुनावों में सबकी नजरें गड़ी हुईं थीं क्योंकि लगभग तीन साल बाद लालू प्रसाद यादव खुद चुनाव प्रचार में उतरे थे। ऐसा कहा जा रहा था कि लालू के आने से आरजेडी जरुर कुछ कमाल कर सकती है मगर ऐसा नहीं हुआ। एक साल बाद हुए दो सीटों पर उपचुनाव में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू ने जीत दर्ज की। कुशेश्वरस्थान और तारापुर दोनों ही सीटों में जेडीयू की बड़ी जीत हुई। वहीं आरजेडी से गठबंधन तोड़कर अलग चुनाव लड़ने का कांग्रेस का दांव पूरी तरह विफल साबित हुआ। चिराग भी चुनाव में कोई छाप नहीं छोड़ सके।

असम में भाजपा
सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगियों ने राज्य की पांच विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। भबनीपुर, मरियानी और थौरा निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। फणीधर तालुकदार, रूपज्योति कुर्मी और सुशांत बोरगोहेन – इस साल मार्च-अप्रैल में आम चुनाव में विपक्षी पार्टी के टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन बाद में इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए।

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कर्नाटक में बीजेपी की चिंता
कर्नाटक का उपचुनाव खासकर वहां के सीएम बासवराज बोम्मई के लिए बेहद अहम माना जा रहा था, क्योंकि एक सीट उनके गृह जिले में थी। बीजेपी उम्मीदवार वहां से हार गया। यह बीजेपी के साथ नवनियुक्त सीएम के लिए भी झटका माना जा रहा है। येदियुरप्पा के सीएम पद से हटने के बाद बोम्मई के सामने सबको यह संदेश देने की चुनौती थी कि वह लिंगायत वोट अपने दम पर लाने में सक्षम हैं। यही कारण है कि इन दोनों सीटों के लिए बोम्मई ने पूरी ताकत झोंक दी थी। 15 महीने बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बोम्मई के लिए यह परिणाम चिंता में डालने वाला है।

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