Varun Gandhi: किसानों के मुद्दे उठाकर वरुण गांधी बीजेपी को बार-बार क्यों दे रहे हैं चुनौती?

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Varun Gandhi: किसानों के मुद्दे उठाकर वरुण गांधी बीजेपी को बार-बार क्यों दे रहे हैं चुनौती?

लखनऊ
यूपी के पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी इन दिनों अपनी ही सरकार पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर गन्ने के दाम बढ़ाने की अपील की। जबकि एक दिन पहले ही योगी सरकार ने गन्ना का रेट बढ़ाकर 350 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला किया था। इससे पहले मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत को लेकर वरुण ने किसानों का समर्थन किया और अपनी ही सरकार को असहज कर दिया। वरुण गांधी बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं, वह भी ऐसे मौके पर जब अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव हैं। क्या है वरुण की नाराजगी की वजह, आइए जानते हैं-

गन्ना किसानों का मुद्दा उठाते हुए वरुण गांधी ने सोमवार को ट्वीट किया और गन्ने का रेट 400 रुपये घोषित करने की मांग की। वरुण ने सीएम योगी को खत भी लिखा। जबकि एक दिन पहले यानी रविवार को ही योगी सरकार ने गन्ना मूल्य में प्रति क्विंटल 25 रुपये की वृद्धि की घोषणा कर गन्ने का दाम 350 रुपये प्रति क्विंटल किया था।

किसान महापंचायत का किया था समर्थन
वरुण ने 12 सितंबर को भी किसानों के मुद्दे उठाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखा था। तब वरुण ने भूमिपुत्रों की बात सुनते की अपील करते हुए पत्र में 7 पॉइंट लिखे थे। वरुण गांधी ने इसमें गन्ना के दाम, बकाया भुगतान, धान की खरीदारी समेत 7 मुद्दों को उठाया था। 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में वरुण गांधी ने किसानों का समर्थन कर सरकार को असहज महसूस कराया था।

क्यों पार्टी से साइडलाइन हो गए हैं वरुण?
आखिर वरुण गांधी किस बात से खफा है जो अपनी ही पार्टी और सरकार से नाराज दिख रहे हैं, इस पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं, ‘वरुण गांधी बीजेपी के फायरब्रैंड नेता कहलाते हैं लेकिन कई बार उनके बयान पार्टी के लिए मुसीबत बन चुके हैं। इस वजह से वह पार्टी से धीरे-धीरे साइडलाइन होते गए। विधायकों और कार्यकर्ताओं के साथ उनके बर्ताव के चलते भी विरोधियों को उन पर हावी होने का मौका मिलता रहा और उनका जनाधार कम हुआ है।’

बता दें कि इस बार कैबिनेट विस्तार में वरुण गांधी की भी चर्चा हो रही थी लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को भी कैबिनेट पद से हटा दिया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में ही वरुण गांधी के टिकट कटने की चर्चा हो रही था हालांकि बाद में उन्हें पीलीभीत से मेनका गांधी की जगह टिकट दिया गया। जबकि मेनका ने सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़ा।

‘वरुण को है टिकट कटने का डर’
वरिष्ठ पत्रकार ने आगे बताया, ‘वरुण के दिमाग में यह बातें हैं कि वह भारत के सर्वोच्च परिवार से आते हैं लेकिन उन्हें पार्टी में तवज्जो नहीं दी जा रही है। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी कांग्रेस में बड़े पद पर हैं। वरुण को इस बात की भी आशंका है कि शायद उन्हें इस बार टिकट न मिले। फिर जब वह पार्टी लाइन से अलग जाकर ट्वीट करते हैं तो उन्हें बीजेपी के अंदर से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिलती। इस वजह से उनमें छटपटाहट होना लाजिमी है।’

किसानों के मुद्दों पर क्यों घेर रहे हैं वरुण?
वरुण किसानों के मुद्दों ही क्यों उठा रहे हैं, इस पर बृजेश शुक्ल ने कहा, ‘पीलीभीत तराई वाला इलाका है और वहां ज्यादातर पंजाब के सरदार आकर बसे। उन्होंने वहां कई जमीनें और बड़े खेत खरीदे। इनकी मां भी मूलरूप से पंजाबी हैं, तो यहां का सिख समुदाय वरुण और मेनका का कोर वोटबैंक है। वहां के किसानों का दबाव भी है।’ वरुण गांधी ने 2018 में किसानों की पृष्ठभूमि पर किताब लिखी थी- रूरल मेनिफेस्टो। किताब के जरिए वरुण ने हाशिये पर किसानों के संघर्ष के मुद्दे उठाए थे।

मां मेनका और अपनी उपेक्षा से नाराज हैं वरुण
लखनऊ यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रफेसर एसके द्विवेदी का मानना है कि वरुण आइसोलेट होते जा रहे हैं और बीजेपी उन्हें महत्व नहीं दे रही है। वह कहते हैं, ‘आजकल यह ट्रेंड है कि कोई भी नेता पद के लिए ही पार्टी जॉइन करता है लेकिन वरुण के पास न ही राष्ट्रीय संगठन में कोई पद है और न ही यूपी चुनाव में उन्हें कोई जिम्मेदारी दी गई है।’ प्रफेसर द्विवेदी आगे कहते हैं, ‘वरुण गांधी की नाराजगी इसी बात को लेकर है कि पार्टी में न सिर्फ उनकी बल्कि उनकी मां की भी उपेक्षा हो रही है। ऐसे में वह असंतुष्ट हैं और किसानों के मुद्दे उठाकर अन्य दलों का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं।’

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