चाँद की तरह चमककर अब सितारे हो गए हैं शशि कपूर

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“मेरे पास माँ है।“ ये सिर्फ एक डायलॉग नही है, ये खत्म होते हुए परिवारवाद और पारिवारिक प्रेम की तरफ इशारा करता सच है। जिसे शशि कपूर जैसी मासूम शक्ल वाला शख्स ही इतनी सहजता से समझा सकता था। 1975 में जब दीवार फिल्म रिलीज़ हुई तो हर किसी की निगाह अमिताभ बच्चन पर थी। उनके किरदार को अलग ही शोहरत से देखा जा रहा था। मगर शशि कपूर के एक संवाद ने अमिताभ के किरदार की हर खूबी को ओझल कर दिया। एक आम भारतीय को अपना हीरो मिल गया। शशि कपूर हर भारतीय माँ के चहीते बन गए।

अफसोस है कि लंबी बीमारी के बाद बॉलीवुड का ये चाँद जो अपने नाम की ही तरह चमका, अब हमारे साथ नही है। कपूर खानदान की दूसरी पीढ़ी का आखरी चिराग भी भुज गया। उनके बड़े भाई राज कपूर का 1988 और शमी कपूर का 2011 में निधन हो गया था।

 

सितारा बन गया है बॉलीवुड का चाँद

मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में सोमवार शाम 5:20 पर उन्होने अपनी आखरी सांस ली। इसकी पुष्टि उनके भतीजे रणधीर कपूर ने की और पीटीआई को दिये एक बयान में बताया कि वो लंबे समय से किडनी की समस्या से जूझ रहे थे और काफी दिनो से डायालिसीस पर थे। कपूर खानदान के इस लाडले के देहांत की खबर पूरे बॉलीवुड के लिए एक बड़ा झटका है।

Shashi kapoor the legend -

 

कपूर खानदान के तीसरे बेटे थे शशि

शशि कपूर का जन्म जाने-माने थिएटर आर्टिस्ट और अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर 18 मार्च 1938 को मुंबई में हुआ था। उनकी शिक्षा मुंबई के डॉन बॉसको हाइ स्कूल में हुई।

शशि ने बहुत छोटी उम्र से ही बतौर बाल कलाकार फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद वो अपने पिता के थिएटर ग्रुप में असिस्टेंट और अभिनेता के रूप में काम करते रहे।

बॉलीवुड में बतौर अभिनेता उन्हे 1961 में आयी “धर्मपुत्र” में अपना पहला ब्रेक मिला। जिसके बाद उन्होने मुड़ कर नही देखा और करीब 116 फिल्मों में काम किया। उनकी आखरी फिल्म “जिन्नाह” थी जिसमे उन्होने फिल्म के नरेटर के रूप में अपनी आवाज़ दी थी।

शशि साहब ने 90 के दशक के अंत में फिल्में करना छोड़ दी और उसके बाद दोबारा काम नहीं किया।

फिल्मों में ही नही असल ज़िंदगी में भी हीरो थे

शशि कपूर को जानने वाले लोग उन्हे नेक नियत और खुले दिल वाला आदमी बताते हैं। कहा जाता है कि आर्ट फिल्मों और थिएटर के लिए उनकी दीवानगी का अलग ही स्तर था। 1978 में अपनी धर्मपत्नी जेनिफर केंडल के साथ पृथ्वी थिएटर की पुनःस्थापना की और उसे एक ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया।

श्याम बेनेगल जैसे फिल्म निर्माताओं के लिए वो किसी वरदान की तरह साबित हुए। उन्होने कई फिल्मों में पैसा लगाया मगर अपनी भलाई की वजह से धोखे का शिकार हुए और मुनाफा कमाने में असफल रहे।

इसके बाद उन्होने 1991 में अमिताभ बच्चन की “अजूबा” का निर्देशन किया और 1998 में एक रूसी फिल्म का निर्देशन करके निर्देशकीय पारी से छुट्टी ले ली।

 

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पहले प्यार से की शादी

शशिकपूर की प्रेम कहानी भी उनकी ही तरह मासूम और सीधी-साधी है। साल 1956 में वो इंग्लिश अभिनेत्री जेनिफर केंडल से कोलकाता में मिले थे। दोनों ही लोग अपने-अपने पिता के थिएटर ग्रुप के लिए काम कर रहे थे। कुछ मुलाक़ातों के बाद इन दोनों के बीच की जान पहचान प्यार में बदल गयी और इन्होने शादी करने का फैसला लिया। मगर ये राह इतनी आसान नही थी क्यूंकी जेनिफर के पिता और जाने माने थिएटर आर्टिस्ट जिओफरी केंडल को ये रिश्ता मंजूर नही था। लेकिन शशि कपूर की भाभी गीता बाली की कोशिशों से जुलाई 1958 में दोनों ने शादी कर ली। 26 साल की शादी के बाद 1984 में कैंसर की वजह से जेनिफर केंडल का देहांत हो गया। इस घटना से शशि कपूर बुरी तरह टूट गए थे।

शशि साहब के 3 बच्चे कुनाल कपूर, करण कपूर और संजना कपूर हैं।

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सम्मान और पुरस्कार

अपने शानदार काम के लिए शशि साहब को 3 राष्ट्रिय पुरस्कार और एक फिल्म्फेयर अवार्ड मिला है। इसके अलावा उन्हे 2010 में फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2011 में पद्मभूषण अवार्ड और 2015 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाज़ा गया।