sharda sinha ने कहा युवा पीढ़ी संगीत में कोई भी प्रयोग करे, लेकिन संस्कृति को भी सहेजना होगा | sharda sinha, Indian Maithili language folk-singer, folk singer, bihar | Patrika News

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sharda sinha ने कहा युवा पीढ़ी संगीत में कोई भी प्रयोग करे, लेकिन संस्कृति को भी सहेजना होगा | sharda sinha, Indian Maithili language folk-singer, folk singer, bihar | Patrika News

पद्मभूषण लोक गायिका शारदा सिन्हा(sharda sinha) की प्रस्तुति के साथ हुआ गायन पर्व का समापन

भोपाल

Published: April 25, 2022 01:00:44 am

भोपाल. भारत भवन में चल रहे गायन पर्व का समापन पद्मभूषण लोक गायिका शारदा सिन्हा के गायन से हुआ। उन्होंने माता की वंदना करते हुए ‘भगवति गीत’ बोल जगदंबा घर में दियरा जलाई दे री… पेश किया। मिथिलांचल में गाया जाने वाला यह गीत महाकवि विद्यापति की रचना है। इसके बाद उन्होंने ‘चौमासा’ में उधो बारी बरस बिसर जाय रे कन्हैया के बुलाऐ दियो ना… सुनाकर फिजा में मौसिकी के रंग घोल दिए। कार्यक्रम को विस्तार देते हुए ‘नचारी’ में हम नहीं आजु रहब ऐही आंगन… सुनाया। यह विद्यापति की लोक रचना है जिसे विवाह के अवसर पर गाया जाता है। यह एक प्रहसन गीत है। इसी क्रम में ‘झूमर’ पेश किया, यह गीत में भोजपुरी और अवधि का मिला-जुला रूप है, इसमें बहू अपनी ससुराल के बारे में बताती है, इस गीत के बोल महल पर कागा, बोला है रे… थे।

अब धुन में शब्दों को भरा जा रहा है
शारदा(sharda sinha) ने कहा कि गायन में कई शैलियां जैसे शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत आदि होती हैं। कुछ संगीतकार पॉपुलर होने के लिए कुछ भी लिख रहे हैं और गायक उन्हें गा भी रहे हैं। मुझे आज भी याद है कि नौशाद साहब पहले गीत लिखवाया करते थे और फिर धुन तैयार होती थी। आजकल उल्टा होता है पहले धुन बनती है फिर उसमें शब्दों को भर दिया जाता है। मैं इसे संगीत नहीं मानती।

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मेरी सास ने तीन दिन खाना नहीं खाया

लोकगायिका शारदा सिन्हा((sharda sinha) ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी प्रयोगवादी है, संगीत में रिमिक्स कर कई प्रयोग किए जा रहे हैं। मैं हमेशा उन्हें कहती हूं कि किसी भी शैली में गीत गाओ, किसी भी तरह का प्रयोग करो, लेकिन हमें अपनी संस्कृति को सहेज कर चलना होगा। शास्त्रीय संगीत हमारी धरोहर है, इससे छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। आप जितना रियाज करेंगे, उतने ही पारंगत होते जाएंगे। संगीत की साधना को कोई छोड़ा नहीं जा सकता, ना ही ये कह सकते हैं कि मैं सब कुछ सीख चुका है। ये तो उम्रभर चलने वाली साधना है। उन्होंने(sharda sinha) गायन से जुड़ने का किस्सा सुनाते हुए बताया कि मेरे ससुर को भजन-कीर्तन में रुचि थी। ससुरजी ने मंदिर में ठाकुरजी की सेवा में मुझे एक भजन सुनाने को कहा। मेरी सास इतनी नाराज हुई कि उन्होंने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। उन्होंने बताया कि 1971 में म्यूजिक कंपनी एचएमवी के ऑडिशन हुए, लेकिन मैं रिजेक्ट हो गई। मैं बहुत दुखी थी तो मैंने अपने पति से कहा चलिए आइसक्रीम खाकर कहीं गला खराब कर लिया जाए। दूसरे दिन फिर ऑडिशन दिया। वहां जज के तौर पर बेगम अख्तर बैठी थीं, उन्हें मेरा गाना बहुत पंसद आया और मेरा सिलेक्शन हो गया।

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जिया दुख पावे, काहे पिया नहीं आवे…
इससे पहले विनोद मिश्र का गायन हुआ। उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत राग विराग में विलंबित एक ताल में जिया दुख पावे, काहे पिया नहीं आवे… से की। इसके बाद मध्य लय तीन ताल में लगन तोसे लगी बालमा… सुनाया। उन्होंने आडा चार ताल में मध्य लय की स्वयं की रचना बालमा जाने नही दूंगी… सुनाकर श्रोताओं को बांधे रखा। इसके बाद चैती सेजिया पे सैय्या रूठ गैने हो रामा… सुनाकर समां बाधा। प्रस्तुति का समापन जंगला भैरवी ठुमरी नैना मोरे तरस गयो आजा बलम परदेसी… से किया। उनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्र, हारमोनियम पर आयुष मिश्र और सारंगी पर आबिद हुसैन ने संगत दी।

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