RLD ने पहले जीता खतौली का रण, अब UP पर कब्जे की तैयारी, जिलों में अध्यक्ष की तैनाती का समझिए सामाजिक समीकरण

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RLD ने पहले जीता खतौली का रण, अब UP पर कब्जे की तैयारी, जिलों में अध्यक्ष की तैनाती का समझिए सामाजिक समीकरण

RLD ने पहले जीता खतौली का रण, अब UP पर कब्जे की तैयारी, जिलों में अध्यक्ष की तैनाती का समझिए सामाजिक समीकरण

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बदलाव की कोशिशें तेज हो गई हैं। विपक्ष को बदलाव की उम्मीद उप चुनावों के परिणामों ने दिखाई है। इन परिणामों के जरिए प्रदेश की राजनीति में बदलाव का प्रयास किया जा रहा है। खतौली विधानसभा उप चुनाव में जीत के बाद से राष्ट्रीय लोक दल की स्थिति मजबूत हुई है। राष्ट्रीय लोक दल ने यह सीट भारतीय जनता पार्टी से छीनी है। भाजपा के विक्रम सिंह सैनी यूपी चुनाव 2022 में खतौली विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन मुजफ्फरनगर के एक दंगों के मामले में उन्हें सजा हुई। उनकी विधायकी चली गई। इसके बाद उप चुनाव में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने जिस प्रकार से प्रचार किया और यह सीट मदन भैया की झोली में डाल दी, उसको प्रदेश में स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। इस सीट पर जीत के लिए जयंत चौधरी ने एक बार फिर अपने जाट+मुस्लिम समीकरण को मुजफ्फरनगर में जमाने की कोशिश की। खतौली सीट पर तो यह समीकरण काम करता दिख रहा है। ऐसे में जयंत चौधरी ने अब अपने पंख फैलाए हैं। 14 जिलों के लिए पार्टी की ओर से जिला अध्यक्ष का ऐलान किया गया है। यहां पर जिला अध्यक्ष जिन नेताओं को बनाया गया है, वे एक जाति विशेष से ताल्लुक रखते हैं, जिनसे पार्टी चुनावों में एक बेहतर प्रदर्शन करती दिखे।

क्या है जयंत चौधरी की राजनीति?

जयंत चौधरी की कोशिश राजनीतिक समीकरण के साथ-साथ सामाजिक समीकरण को भी मजबूत करने की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल को चौधरी चरण सिंह मजबूत पकड़ दिलाई थी। किसान उनके साथ खड़े रहे थे। किसानों में सभी जाति और धर्म के लोगों का साथ चौधरी चरण सिंह को मिला था। बाद के समय में रालोद के सफलता का श्रेय मुस्लिम जाट समीकरणों को ही जाता है। लेकिन, वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने इस समीकरण को ध्वस्त कर दिया। मुस्लिम और जाट अलग-अलग खेलों में बैठकर लग जाने के कारण इस इलाके में भाजपा की बैटरी और तमाम सीटों पर जाट गुर्जर और अन्य समुदायों को छोड़कर भाजपा में एक जीतने वाला समीकरण तैयार किया। खतौली ने इस समीकरण में सेंधमारी के संकेत दिए हैं। इन संकेतों को देखते हुए जयंत चौधरी सामाजिक समीकरण को बेहतर बनाकर काम करने की रणनीति बनाते दिख रहे हैं।

क्या सपा के सीटों पर ताकत बढ़ाने की कोशिश?

राष्ट्रीय लोक दल ऐसे जिलों में अपने जिलाध्यक्ष की तैनाती की है, जिन्हें समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में माना जाता रहा है। मैनपुरी जिले में विद्याराम यादव को नियुक्त कर राष्ट्रीय लोक दल ने अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया है। इसके अलावा बदायूं में भी राष्ट्रीय लोक दल ने जिला अध्यक्ष की तैनाती कर दी है। रामपुर में शाहिद हुसैन को तैनात कर बड़ा संकेत दिया है। यह ऐसी सीटें हैं, जहां पर समाजवादी पार्टी अपनी स्थिति मजबूत मानती है। लेकिन, राष्ट्रीय लोक दल अब यहां पर अपनी पैठ पढ़ाकर राजनीतिक और सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश करने की तैयारी शुरू कर दी है। लोकतंत्र में सभी दलों को हर जगह से चुनावी मैदान में उतरने और अपने दांव लगाने का अधिकार है।

गठबंधन की स्थिति में कई बार कई दल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दबाकर रखते हैं। लोगों की के बीच जाकर अपनी बात रखेगी। मैनपुरी और खतौली विधानसभा सीट पर जयंत चौधरी ने दिखाया कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के वोटरों को एक पाले में लाने में कामयाबी मिली है। मतलब, अब वोट ट्रांसफर का मुद्दा बड़ा नहीं है। ऐसे में दोनों पार्टियों का क्षेत्र में प्रभाव बढ़ने से दोनों अपने वोट बैंक को एक- दूसरे के उम्मीदवार को ट्रांसफर करा सकते हैं।

चार मुस्लिमों को दी गई है जिम्मेदारी

राष्ट्रीय लोक दल ने 13 जिलों में राष्ट्रीय अध्यक्ष की तैनाती कर दी है। इसमें सबसे अधिक 4 मुसलमानों को जिम्मेदारी दी गई है। सहारनपुर में राव केशर सलीम, बरेली में महबूब अली, रामपुर में शाहिद हुसैन और पीलीभीत में आरिफ हजरत खान को जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। इन जिलों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है। आबादी के हिसाब से देखें तो करीब 41.95 फीसदी मुसलमानों की आबादी है। वहीं, रामपुर जिले में करीब 50.57 फीसदी, बरेली में 34.54 फीसदी और पीलीभीत में 28.65 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। इस कारण इस वर्ग का वोट साधने में कामयाबी मिलेगी।

बागपत की चौधराहट बचाने की जिम्मेदारी धामा पर

रालोद ने बागपत जिले के अध्यक्ष पद पर रामपाल धामा की नियुक्ति की गई है। धामा गुर्जर समाज से आते हैं। यह क्षेत्र जाट और मुस्लिम समुदाय का गढ़ रहा है। भाजपा ने इस गढ़ पर अपना कब्जा जमाया हुआ है। गुर्जर, कश्यप, सैनी, कोली, माली और तेली जैसी जातियां भाजपा के पाले में जाती रही हैं। जाट वोट बैंक साथ आने के बाद यहां पर अटूट गठबंधन बना है। जयंत चौधरी को यहां से हार झेलनी पड़ी थी। ऐसे में जयंत चौधरी जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश करेंगे। वहीं, धामा गुर्जर वोट बैंक को साधेंगे। इसके अलावा अन्य जिलों में तैनात किए गए मुस्लिम अध्यक्षों के जरिए इस वर्ग के वोट बैंक को साधने की कोशिश होगी।

त्यागी समाज को भी साधने का प्रयास

राष्ट्रीय लोक दल ने त्यागी समाज को साधने का प्रयास किया है। त्यागी समाज का गुस्सा नोएडा के श्रीकांत त्यागी विवाद के बाद से भाजपा पर बढ़ा हुआ है। ऐसे में गाजियाबाद के जिलाध्यक्ष पद पर अमित त्यागी को नियुक्त किया गया है। इसके अलावा आगर जिले के दलित समाज के वोटरों को साधने के लिए महेश कुमार को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी है। वे जाटव वोट बैंक को साधने की कोशिश करेंगे। यह बसपा प्रमुख मायावती का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है। वहीं, अमरोहा जिले की जिम्मेदारी मानवीर सिंह को दिया गया है। वे जाट बैंक के एकजुट करने का प्रयास करेंगे। फिरोजाबाद में भी जाट वोट बैंक को साधने के लिए मास्टर देशराज सिंह को पार्टी की ओर से अध्यक्ष बना दिया गया है।

लखीमपुर खीरी में ब्राह्मण वोट बैंक के प्रभाव को देखते हुए रालोद ने शिव प्रसाद द्विवेदी को कमान सौंपी है। सीतापुर के शरद कुमार को कमान सौंपी गई है। वे ओबीसी वोट बैंक को साधने का प्रयास करेंगे। यादव वोट बैंक को लेकर विद्याराम यादव को मैनपुरी की कमान दी गई है।

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