Ramon-Magsaysay Award:आखिर रैमन मैगसेसे से इतना क्यों चिढ़ते हैं भारत के वामपंथी, ये है खास कारण | Ramon-Magsaysay Award: Why the Leftists of India are jealous of Ramon | Patrika News
केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने एशिया का नोबेल प्राइज कहे जाने वाले रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड को ठुकरा दिया है। अवॉर्ड देने वाली संस्था ने कुछ हफ्ते पहले 64वें मैग्सेसे अवॉर्ड के लिए शैलजा का चयन किया था, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने यही फैसला किया। शैलजा सीपीएम की ही नेता है जिसकी केरल में सरकार है। सीपीएम ने कहा कि चूंकि रैमन मैग्सेसे ने अपने देश में वामपंथियों पर बहुत अत्याचार किए थे, इसलिए उनके नाम पर दिया जाने वाला पुरस्कार स्वीकार नहीं किया जा सकता है। ध्यान रहे कि रैमन मैगसेसे फाउंडेशन ने केरल में 2016 से 2021 के बीच पहले निपा वायरस और फिर कोरोना वायरस की समस्या से बेहतर तरीके से निपटने के लिए वहां की तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और सीपीएम नेता केके शैलजा को अवॉर्ड देने की इच्छा जताई थी, लेकिन उन्होंने अपना नाम देने से ही इनकार कर दिया।
The LDF, the public health infrastructure and the people of Kerala have set an example on tackling public health crises. We will consistently strive to do better. There are reasons why the Magsaysay award was not accepted. pic.twitter.com/qCREEF8Z1Q
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) September 4, 2022
रैमन मैग्सेसे ने जापानियों के खिलाफ लिया था मोर्चा
रैमन मैग्सेसे का पूरा नाम रैमन डेल फियरो मैग्सेसे सीनियर (Ramon del Fierro Magsaysay Senior) था। उनका जन्म फिलिपींस में 31 अगस्त 1907 को हुआ था। उनके पिता लोहार और माता शिक्षिका थीं। रैमन ने गाड़ियों के मेकैनिक के तौर पर अपनी पेशेवर जिंदगी की शुरुआत की। हालांकि, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1941 से 45 तक पैसिफिक वॉर शुरू हुआ तो उन्होंने जापानियों के खिलाफ मोर्चा लेने की ठान ली। जापान ने फिलिपींस को करीब चार वर्ष तक अपने कब्जे में रखा और 1946 में अमरीका ने उसकी स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा की थी। रैमन मैग्सेसे ने गुरिल्ला लीडर के तौर पर जापानियों के खिलाफ काफी बहादुरी से लड़े।
गुरिल्ला लड़ाकों के नेता से सांसद का सफर
जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाकों का दस्ता हुक्बलहप (Huk) के नाम से जाना जाता था। चार वर्षों के युद्ध से मिली आजादी के बाद फिलिपींस में अफरा-तफरी का माहौल था जिसमें एचयूके की किस्मत तेजी से पलटी। आजाद फिलिपींस में पूंजीवाद का ज्यों-ज्यों प्रसार हुआ, वहां गरीबों और अमीरों के बीच फासला बढ़ता गया। ऐसे माहौल में किसानों की स्थिति दयनीय होने लगी। एचयूके ने किसानों के अधिकारों की मांग उठाई। उसके नेताओं को साम्यवाद (कम्यूनिजम) के प्रति निष्ठा जताने के कारण संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा। तब फिलिपींस की सरकार ने अमेरिका की मदद से एचयूके नेताओं के खिलाफ ऐक्शन लेना शुरू कर दिया। तब एचयूके ने मुख्य धारा की पार्टी पीकेपी के साथ गठबंधन कर लिया ताकि संसद तक पहुंचा जाए। हालांकि, उन पर फिलिपींस सरकार का ऐक्शन रैमन मैग्सेसे के नैशनल डिफेंस सेक्रेटरी बनने तक जारी रहा।
कम्यूनिस्ट नेताओं पर कार्रवाई
चूंकि मैग्सेसे खुद भी गुरिल्ला युद्ध में भाग ले चुके थे, इसलिए उन्होंने एचयूके की समस्या से निपटने का नया रास्ता निकाला। उन्होंने एचयूके के अंदर सुधारों को लागू करवाने की कोशिश शुरू की तो उसके अतिवादी नेताओं के खिलाफ जबर्दस्त कार्रवाइयां भी जारी रही। माना जाता है कि रैमन की नीतियों के कारण ही एचयूके का प्रभाव खत्म हो गया। दरअसल, जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का बहादुरी से नेतृत्व करने के कारण रैमन को मिलिट्री गवर्नर बना दिया गया था। 1946 में जब देश जापानियों के आधिपत्य से आजाद हुआ तब रैमन ने फिलिपींस की संसद का चुनाव लड़ा। वो लिबरल पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर हाउस ऑफ रेप्रजेंटेटिव के लिए दो बार चुने गए। उसके बाद 1950 में उन्हें नैशनल डिफेंस का सेक्रटरी नियुक्त किया गया। 30 दिसंबर 1953 को उन्हें नैशनलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया जो फिलिपींस का सबसे पुराना राजनीतिक दल है।
मृत्यु के वर्ष ही हुई रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना
इधर, रैमन मैग्सेसे 1953 में फिलिपींस के राष्ट्रपति चुन लिए गए जो 1957 में एक एयर क्रैश में हुई मौत तक इस पद पर बने रहे थे। उसी वर्ष रॉकफेलर ब्रदर्स फंड के ट्रस्टियों और फिलिपींस सरकार ने मिलकर उनके नाम पर रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना की। इसका मकसद मैग्सेसे की विरासत, बेहतरीन शासन और उनके व्यावहारिक आदर्शों से जनता का परिचयन करवाना है। 1958 में पहली बार रैमन मैग्सेसे पुरस्कार की घोषणा हुई। तब से अब तक करीब 300 संगठनों और व्यक्तियों को एशिया महादेश की विकास गाथा में योगदान के लिए रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड दिए जा चुके हैं। अवॉर्ड हर वर्ष 31 अगस्त को दी जाती है। यह वही दिन है जब रैमन मैग्सेसे का जन्म हुआ था। भारत में अब तक विनोबा भावे, मदर टेरेसा, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सत्यजीत रे, महाश्वेता देवी, अरविंद केजरीवाल, आशु गुप्ता, बेजवाड़ा विल्सन और रवीश कुमार को रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने एशिया का नोबेल प्राइज कहे जाने वाले रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड को ठुकरा दिया है। अवॉर्ड देने वाली संस्था ने कुछ हफ्ते पहले 64वें मैग्सेसे अवॉर्ड के लिए शैलजा का चयन किया था, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने यही फैसला किया। शैलजा सीपीएम की ही नेता है जिसकी केरल में सरकार है। सीपीएम ने कहा कि चूंकि रैमन मैग्सेसे ने अपने देश में वामपंथियों पर बहुत अत्याचार किए थे, इसलिए उनके नाम पर दिया जाने वाला पुरस्कार स्वीकार नहीं किया जा सकता है। ध्यान रहे कि रैमन मैगसेसे फाउंडेशन ने केरल में 2016 से 2021 के बीच पहले निपा वायरस और फिर कोरोना वायरस की समस्या से बेहतर तरीके से निपटने के लिए वहां की तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और सीपीएम नेता केके शैलजा को अवॉर्ड देने की इच्छा जताई थी, लेकिन उन्होंने अपना नाम देने से ही इनकार कर दिया।
The LDF, the public health infrastructure and the people of Kerala have set an example on tackling public health crises. We will consistently strive to do better. There are reasons why the Magsaysay award was not accepted. pic.twitter.com/qCREEF8Z1Q
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) September 4, 2022
रैमन मैग्सेसे ने जापानियों के खिलाफ लिया था मोर्चा
रैमन मैग्सेसे का पूरा नाम रैमन डेल फियरो मैग्सेसे सीनियर (Ramon del Fierro Magsaysay Senior) था। उनका जन्म फिलिपींस में 31 अगस्त 1907 को हुआ था। उनके पिता लोहार और माता शिक्षिका थीं। रैमन ने गाड़ियों के मेकैनिक के तौर पर अपनी पेशेवर जिंदगी की शुरुआत की। हालांकि, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1941 से 45 तक पैसिफिक वॉर शुरू हुआ तो उन्होंने जापानियों के खिलाफ मोर्चा लेने की ठान ली। जापान ने फिलिपींस को करीब चार वर्ष तक अपने कब्जे में रखा और 1946 में अमरीका ने उसकी स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा की थी। रैमन मैग्सेसे ने गुरिल्ला लीडर के तौर पर जापानियों के खिलाफ काफी बहादुरी से लड़े।
गुरिल्ला लड़ाकों के नेता से सांसद का सफर
जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाकों का दस्ता हुक्बलहप (Huk) के नाम से जाना जाता था। चार वर्षों के युद्ध से मिली आजादी के बाद फिलिपींस में अफरा-तफरी का माहौल था जिसमें एचयूके की किस्मत तेजी से पलटी। आजाद फिलिपींस में पूंजीवाद का ज्यों-ज्यों प्रसार हुआ, वहां गरीबों और अमीरों के बीच फासला बढ़ता गया। ऐसे माहौल में किसानों की स्थिति दयनीय होने लगी। एचयूके ने किसानों के अधिकारों की मांग उठाई। उसके नेताओं को साम्यवाद (कम्यूनिजम) के प्रति निष्ठा जताने के कारण संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा। तब फिलिपींस की सरकार ने अमेरिका की मदद से एचयूके नेताओं के खिलाफ ऐक्शन लेना शुरू कर दिया। तब एचयूके ने मुख्य धारा की पार्टी पीकेपी के साथ गठबंधन कर लिया ताकि संसद तक पहुंचा जाए। हालांकि, उन पर फिलिपींस सरकार का ऐक्शन रैमन मैग्सेसे के नैशनल डिफेंस सेक्रेटरी बनने तक जारी रहा।
कम्यूनिस्ट नेताओं पर कार्रवाई
चूंकि मैग्सेसे खुद भी गुरिल्ला युद्ध में भाग ले चुके थे, इसलिए उन्होंने एचयूके की समस्या से निपटने का नया रास्ता निकाला। उन्होंने एचयूके के अंदर सुधारों को लागू करवाने की कोशिश शुरू की तो उसके अतिवादी नेताओं के खिलाफ जबर्दस्त कार्रवाइयां भी जारी रही। माना जाता है कि रैमन की नीतियों के कारण ही एचयूके का प्रभाव खत्म हो गया। दरअसल, जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का बहादुरी से नेतृत्व करने के कारण रैमन को मिलिट्री गवर्नर बना दिया गया था। 1946 में जब देश जापानियों के आधिपत्य से आजाद हुआ तब रैमन ने फिलिपींस की संसद का चुनाव लड़ा। वो लिबरल पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर हाउस ऑफ रेप्रजेंटेटिव के लिए दो बार चुने गए। उसके बाद 1950 में उन्हें नैशनल डिफेंस का सेक्रटरी नियुक्त किया गया। 30 दिसंबर 1953 को उन्हें नैशनलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया जो फिलिपींस का सबसे पुराना राजनीतिक दल है।
मृत्यु के वर्ष ही हुई रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना
इधर, रैमन मैग्सेसे 1953 में फिलिपींस के राष्ट्रपति चुन लिए गए जो 1957 में एक एयर क्रैश में हुई मौत तक इस पद पर बने रहे थे। उसी वर्ष रॉकफेलर ब्रदर्स फंड के ट्रस्टियों और फिलिपींस सरकार ने मिलकर उनके नाम पर रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड की स्थापना की। इसका मकसद मैग्सेसे की विरासत, बेहतरीन शासन और उनके व्यावहारिक आदर्शों से जनता का परिचयन करवाना है। 1958 में पहली बार रैमन मैग्सेसे पुरस्कार की घोषणा हुई। तब से अब तक करीब 300 संगठनों और व्यक्तियों को एशिया महादेश की विकास गाथा में योगदान के लिए रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड दिए जा चुके हैं। अवॉर्ड हर वर्ष 31 अगस्त को दी जाती है। यह वही दिन है जब रैमन मैग्सेसे का जन्म हुआ था। भारत में अब तक विनोबा भावे, मदर टेरेसा, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सत्यजीत रे, महाश्वेता देवी, अरविंद केजरीवाल, आशु गुप्ता, बेजवाड़ा विल्सन और रवीश कुमार को रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।