Poverty In India: भारत में कितने गरीब यह पता नहीं, लेकिन देश में घट रही है गरीबी!

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Poverty In India: भारत में कितने गरीब यह पता नहीं, लेकिन देश में घट रही है गरीबी!

हाइलाइट्स

  • गरीब लोगों की संख्या का आकलन करना बहुत मुश्किल है।
  • एक मोटी बात यह समझ में आ रही है कि देश में लोगों की आमदनी के हिसाब से गरीबी घट रही है।
  • लोगों के निर्वाह स्तर को आय एवं उपयोग व्यय के आधार पर नापा जाता है।

नई दिल्ली
Poverty Index: भारत में गरीबी नापने वाली अलग-अलग प्रक्रिया की वजह से वास्तव में गरीब लोगों की संख्या का आकलन करना बहुत मुश्किल है। इसके बाद भी एक मोटी बात यह समझ में आ रही है कि देश में गरीबी घट रही है।

भारत में गरीबी का निर्धारण करने वाली नेशनल लाइन (तेंदुलकर) के हिसाब से 2009-10 और 11-12 के बीच गरीबी में 7.9% पॉइंट की कमी आई है। इस अवधि में रंगराजन लाइन के हिसाब से भी भारत में गरीबी में 8.7 परसेंटेज पॉइंट की कमी आई है। रंगराजन लाइन के हिसाब से हालांकि देश में गरीबों की संख्या तेंदुलकर लाइन की तुलना में अधिक है।

गरीबी कैसे नापी जाती है?
जिस वर्ग या देश में लोगों का जीवन स्तर या प्रति व्यक्ति आय का स्तर कम रहता है वे उच्च निर्वाह स्तर या अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले लोगों की तुलना में गरीब माने जाते हैं। लोगों के निर्वाह स्तर को आय एवं उपयोग व्यय के आधार पर नापा जाता है।

तेंदुलकर समिति की गणना
तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009) के अनुसार, भारत की कुल आबादी के 21.9 % लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते थे। तेंदुलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में रह रहे परिवारों के संदर्भ में गरीबी रेखा को 1000 रुपये (प्रति व्यक्ति प्रति माह) और ग्रामीण परिवारों के लिये 816 रुपये महीने निर्धारित किया था।

कई पैमाने पर सुधरी है हालत
अगर किसी देश में सिर्फ लोगों की आमदनी के हिसाब से गरीबी नापी जाती है तो उसमें शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मसलों को छोड़ दिया जाता है। शिक्षा और स्वास्थ्य की वजह से भी लोगों के गरीब होने की संख्या बढ़ती है। इस वजह से अब भारत में गरीबी को नापने का मल्टीडाइमेंशनल एप्रोच शुरू किया गया है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन की आम गुणवत्ता आदि शामिल है। भारत में मल्टीडाइमेंशनल गरीबी घट रही है लेकिन इस तरह के गरीब लोगों की संख्या आमदनी के मामले में गरीब लोगों से बहुत ज्यादा है।

गरीबी का आंकलन कौन करता है?
नीति आयोग हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वे करता है जिसे सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सैंपल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है।

कुपोषण के मामले बढ़े
भारत में गरीबी नापने के अन्य मापक में खाने के सामान में शामिल चीजें आदि भी शामिल हैं। देश में कुपोषण और खाने पीने की चीजों की बर्बादी को भी गरीबी नापने का एक मापक बनाया गया है। वास्तव में इससे गरीबी में कमी आने की बात सामने नहीं आई है। देश में कुपोषित बच्चों की संख्या गरीबों की कुल संख्या की तुलना में बहुत अधिक है। भारत में पॉवर्टी लाइन वास्तव में गरीबों की सही संख्या का अंदाजा नहीं लगा पा रही हैं। इसका एक मतलब यह भी है कि लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं, लेकिन आमदनी घटने या खर्च बढ़ने की वजह से अपने परिवार को पोषक पदार्थ उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं।

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