Padma Shri: कूची से दुनिया में चमकी जोधइया अम्मा की जिंदगी में बहुत ‘अंधेरा’, 84 की उम्र में भी पक्का घर नहीं

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Padma Shri: कूची से दुनिया में चमकी जोधइया अम्मा की जिंदगी में बहुत ‘अंधेरा’, 84 की उम्र में भी पक्का घर नहीं

Padma Shri: कूची से दुनिया में चमकी जोधइया अम्मा की जिंदगी में बहुत ‘अंधेरा’, 84 की उम्र में भी पक्का घर नहीं


बैगा पेंटिंग करने वाली जोधइया बाई बैगा को भारत सरकार ने पद्म श्री देने की घोषणा की है। इसके बाद पूरे जिले में खुशी का माहौल है। इस घोषणा से जोधइया बाई बैग खुश तो हैं। साथ ही उन्हें उम्मीद है कि अब जिंदगी में छाए अंधेरे छंट जाएंगे। अपनी पेंटिंग से पूरी दुनिया में प्रदेश का मान बढ़ाने वाली जोधइया बाई बैगा एक पक्का घर के लिए संघर्ष कर रही है। 14 की उम्र में शादी के बाद से इनकी जिंदगी काफी संघर्षपूर्ण रहा है। अब सरकारी नियमों में पक्के घर का सपना उलझकर रह गया है। 84 की उम्र में भी जिंदगी जीने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा रहा है। जोधइया बाई बैगा की पेंटिंग की प्रदर्शनी विदेशों में लग चुकी है। प्यार से लोग इन्हें जोधइया अम्मा बुलाते हैं।

गुरु की इच्छा अम्मा को मिले सम्मान

जोधइया बाई के गुरु आशीष स्वामी जो अब इस दुनिया में नहीं है। उनकी इच्छा थी कि अम्मा को पद्म श्री सम्मान मिले और आज अम्मा को पद्म श्री सम्मान मिल गया। अम्मा आदिवासी कला में लगातार काम कर रही थी और अम्मा की बनाई पेंटिंग विदेशों में भी प्रसिद्ध है। अम्मा आदिवासी कला को आगे बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही थी। उनकी पेंटिंग ऐसी है कि देखकर आपकी नजरें नहीं हटेंगी।

अम्मा का जीवन कठिन

अम्मा का जीवन कठिन

जोधइया अम्मा की कम उम्र में शादी हो गई। कुछ साल बाद ही पति की मौत हो गई। मजदूरी कर वह अपने बच्चों की परवरिश की है। बच्चे बड़े हो गए इसके बावजूद जोधइया अम्मा का संघर्ष कर रही हैं। कुछ समय बाद गुरु आशीष स्वामी से मिली और चित्रकारी शुरू की। जनगण तस्वीर खाना 2008 में शुरू हुआ और लगातार मेहनत के बाद आज अम्मा को पद्म श्री सम्मान मिला।

नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है

नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है

जोधइया अम्मा को पहले नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है‌। अम्मा को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नारी शक्ति सम्मान प्रदान किया था। 84 वर्षीय अम्मा की जिंदगी में आज भी बहुत संघर्ष है। आदिवासी कला को बढ़ाने के लिए वह लगातार मेहनत कर रही हैं लेकिन जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। सरकारी योजना के तहत इन्हें पक्का का घर का लाभ नहीं मिला है। अम्मा उमरिया के लोढ़ा गांव में झोपड़ी में रहती हैं।

नियम बन रहे हैं अड़चन

नियम बन रहे हैं अड़चन

84 साल की उम्र में जोधइया अम्मा खुद ही बर्तन मांजती हैं। वह झोपड़ी में रहती हैं। अम्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमें सभी ने आश्वासन दिया लेकिन आज तक घर नहीं मिला है। वहीं, अधिकारियों ने कहा कि राज्य डाटा सूची में इनका नाम नहीं है। इनके बेटों का घर का लाभ मिला है। नियम के मुताबिक हमलोग कुछ नहीं कर सकते हैं। शासन के स्तर पर ही निर्णय हो सकता है।

गुरु को समर्पित है यह सम्मान

गुरु को समर्पित है यह सम्मान

जोधइया अम्मा ने बताया कि आशीष स्वामी मेरे गुरु हैं और उन्होंने मुझे चित्रकारी सिखाई है। मैं बहुत गरीब परिस्थिति में थी और मजदूरी गारा का काम करती थी। इसके बाद आशीष स्वामी आए और उन्होंने मुझे पेंटिंग की ट्रेनिंग दी। पहले मिट्टी, फिर कागज, लकड़ी, लौकी और तुरई में मैं पेंटिंग की। आज मुझे पद्मश्री मिला है, मैं बहुत खुश हूं। यह सम्मान में अपने गुरु को समर्पित करती हूं। अम्मा के परिवार में दो लड़के बहू और नाती हैं।
उमरिया से सुरेंद्र त्रिपाठी की रिपोर्ट

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