Nurse Day: बिना खाना-पानी के परिवार से दूर रहकर कर रही हैं कोविड मरीजों की सेवा

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Nurse Day: बिना खाना-पानी के परिवार से दूर रहकर कर रही हैं कोविड मरीजों की सेवा


गौरव खरे/योगेश मिश्र
नर्स के काम की तुलना किसी भी दूसरी चीज से नहीं की जा सकती। खासकर कोविड के इस दौर में उनका काम और अतुल्य हो गया है। कभी इधर दौड़ना, कभी उधर। इस मरीज की सांस फूलने लगी, उस मरीज को फलां दवा देनी है। पीपीई किट पहनी है तो पानी भी नहीं पी सकते। मां-बाप भी मरीज हैं लेकिन उन्हें कोविड न हो इसलिए उनसे दूरी बनाई है। मां का दिल नहीं मानता, वह चाहती हैं कि बेटे/बेटी से मिल लें लेकिन नर्स बेटा/बेटी क्वारंटीन है। बेटी ने अपनी ड्यूटी निभाने के लिए मम्मी-पापा से दूरी बनाई है। कोई दिन ऐसा भी गुजर जाता है कि जब दाल, चावल, सब्जी, रोटी भी नसीब में नहीं होती। कुछ ऐसी हैं इन नर्सों की कहानियां। आइए कोरोनाकाल में नर्सों के फर्ज को करीब से महसूस करते हैं।

कई नर्सेज ने खोया अपने परिवार को
हमने इस दौरान अपने परिवार को भी खोया है, लेकिन हम हिम्मत नहीं हार सकते। यह कहना है श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट में नर्सिंग सुपरिन्टेन्डेन्ट लेफ्टिनेंट कर्नल सरिता अहलुवालिया का। वह कहती हैं, ‘मैं पिछले साल से कोरोना मरीजों को देख रही हूं। मेरे घर में 5 लोग हैं, जिनमें मेरी डेढ़ साल की नातिन भी है। उनकी जिंदगी को लेकर मुझे डर लगता है। मेरे साथ 450 नर्सों की टीम होती है, उनके अंदर भी ये रहता है कि कहीं उनको या उनके परिवार को कोई नुकसान ना उठाना पड़े। मेरे घर वाले कहते हैं ये जॉब छोड़ दो, ऐसे ही दूसरी नर्सेज हैं, वो भी मरीजों को देखकर या किसी के निधन पर स्ट्रेस में आ जाती हैं। लेकिन इस वक्त अगर हम मरीजों की देखभाल नहीं करेंगे, तो हम खुद को कभी माफ नहीं कर पाएंगे। जबकि हर महीने हमारी 30-32 नर्सेज कोरोना पॉजिटिव हो जाती हैं। ऐसी नर्स भी हैं जिन्होंने अपने पापा और भाई को इस दौरान खो दिया। कोरोना का डर इतना है कि घर में काम करने वाली को ये नहीं बता सकती कि मैं कोरोना ड्यूटी में हूं, वरना वो अगले दिन से घर आना बंद कर देगी।

मरीज को मुस्कुराहट देने की कोशिश होती है
हॉस्पिटल में नर्स मंजू सिंह बताती हैं कि हम लोग इस समय घर में रहकर ही मानो घर से दूर रह रहे हैं। पिछले महीने की आठ तारीख को मेरी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई थी। होम क्वारंटीन रहकर ठीक हुई। फिर 24 को रिपोर्ट नेगेटिव आई तो 26 से अपने काम पर लौट आई। हालांकि, अभी हॉस्पिटल आने की हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन थोड़ा-बहुत लगा ही रहता है। हमें तो अपना काम करना है। इस समय हम अपनों को ही खोते जा रहे हैं। रोज कोई-न-कोई खबर हमें अंदर तक हिला देती है। लेकिन सबकुछ भुलाने की कोशिश करते हुए हम फिर से अपने काम पर डट जाते हैं। मैं ही एक अकेले लेबर हूं इसलिए कठिनाई होती है। फिर भी हम जितने भी लोग हैं, सब मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं कि हंसी-खुशी सबकी सेवा करते रहें और मरीजों को मुस्कुराहट दे सकें।

अपनों से दूरी बढ़ाकर हॉस्पिटल की कर रहे ड्यूटी पूरी
सीनियर नर्सिंग ऑफिसर पीएस तिवारी बताती हैं कि चाहे यह कोविड का दौर हो या पहले का रहा हो, हम मरीज की सेवा में तत्पर रहते हैं। वह कहती हैं, ‘मुझे डायबीटीज और बीपी की शिकायत है लेकिन ऊपरवाले ने अभी तक कोविड से बचा रखा है। यही वजह है कि हिम्मत के साथ डटकर कोविड नियमों का पालन करते हुए मरीजों की सेवा कर रही हूं। इस साल अभी तक एक भी छुट्टी नहीं ली है और न ही आगे लूंगी। कभी-कभार सोशल डिस्टेंसिंग भी नहीं हो पाती है। ऐसे में पता नहीं किसको कोविड के लक्षण हों और वह हमें भी संक्रमित कर जाए। मैं जब ड्यूटी से घर वापस आती हूं तो पर्स, पानी की बॉटल और हाथ सैनिटाइज करती हूं। बिना कुछ छुए सीधे बाथरूम जाती हूं। उसके बाद ही कुछ नाश्ता करती हूं।

किसी-किसी दिन खाना भी नसीब नहीं होता
कई नर्सेज इस दौरान अपने घर से दूर किराए पर भी रह रही हैं। ऐसी ही हैं नर्स प्रियंका राय। वह बताती हैं कि ड्यूटी करने के लिए मैंने अपने मम्मी-पापा से दूरी बना ली है। रेंट पर रूम लेकर रहने लगी हूं। मेरी साथी सिस्टर्स हैं, उन्होंने अपने बच्चे को उनके दादा-दादी के पास छोड़ा हुआ है। उनसे मिलना तक छोड़ दिया है। सैलरी की शॉर्टेज चल रही है, घरवाले भी कह रहे हैं कि बेटा घर आ जाओ। लेकिन हम अपने काम में लगे हुए हैं। हम अपना प्रफेशन नहीं छोड़ना चाहते। हमें हॉस्पिटल से रूम और रूम से हॉस्पिटल तक अकेले आना होता है। कोई साथी पॉजिटिव है तो उसकी भी ड्यूटी करते हैं। ऐसे में लौटते समय रात के 10 भी बज जाते हैं। फिर उस समय सारी दुकानें बंद रहती हैं। अगर हमें किसी चीज की जरूरत पड़ी तो कहां लेने जाएं। एक दिन मैंने चावल में चटनी डालकर खाया। सुबह उठकर फिर से जल्दी-जल्दी ड्यूटी के लिए भागना पड़ता है। इतना समय नहीं मिल पाता कि हम अपनी यूनिफॉर्म साफ कर सकें या अपने लिए खाना बना सकें।

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