Neelkanth Tiwari: चुनाव जीत कर भी हारे नीलकंठ तिवारी, जनता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी पड़ी भारी… योगी कैबिनेट से हुए बाहर

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Neelkanth Tiwari: चुनाव जीत कर भी हारे नीलकंठ तिवारी, जनता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी पड़ी भारी… योगी कैबिनेट से हुए बाहर

अभिषेक कुमार झा, वाराणसी: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। योगी के साथ दो डेप्युटी सीएम और 50 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली, लेकिन पहले कार्यकाल में वाराणसी जिले के सबसे कद्दावर मंत्री रहे नीलकंठ तिवारी (Neelkanth Tiwari) का नाम इस बार लिस्ट से गायब रहा। नीलकंठ तिवारी की जगह कभी कांग्रेसी रहे दयाशंकर मिश्रा दयालु (Dayashankar Mishra) का नाम शामिल किया गया।

दया शंकर मिश्रा दयालु फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं है। 2014 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल किए गए दयाशंकर मिश्रा दयालु को आखिर क्यों स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है, इसे समझने के लिए वाराणसी जिले के सबसे प्रतिष्ठित सीट शहर दक्षिणी के चुनावी नतीजों को देखना बेहद जरूरी है। जिले से अनिल राजभर को कैबिनेट और रविन्द्र जायसवाल को भी स्वतंत्र प्रभार देकर योगी ने भरोसा जताया है, लेकिन पहले कार्यकाल में धर्मार्ध कार्य और पर्यटन मंत्री रहे नीलकंठ तिवारी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाकर पार्टी और योगी आदित्यनाथ ने साफ संदेश दे दिया कि जनता अगर आपसे नाराज़ है तो आपको सज़ा जरूर मिलेगी।

जनता और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी बनी वजह
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 7 बार विधायक रहे श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को प्रत्याशी बनाया था। श्याम देव राय का टिकट कटने पर कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराज़गी थी, लेकिन फिर भी शहर दक्षिणी से बीजेपी के नीलकंठ तिवारी 17 हज़ार से ज्यादा वोट से जीत गए। योगी सरकार में पहली बार ही विधायक बने नीलकंठ तिवारी को मंत्रालय भी मिला। पार्टी की सोच थी कि श्याम देव राय का टिकट कटने के बाद नाराज़ लोगों की नाराजगी दूर हो जाएगी, लेकिन पूरे 5 साल नीलकंठ तिवारी ने जनता से दूरी बना ली। कार्यकर्ताओ के साथ भी व्यवहार को लेकर नीलकंठ चर्चा में रहे। चुनाव के समय कार्यकर्ताओ की नाराजगी ऐसी थी कि नीलकंठ तिवारी को फेसबुक लाइव में आकर माफी मांगनी पड़ी। इसके बावजूद कार्यकर्ता और आम जनता के बीच नीलकंठ अपनी पैठ नहीं बना पाए थे।

पीएम मोदी को उतरना पड़ा मैदान में
सपा ने महामृत्युंजय मन्दिर के कामेश्वर नाथ उर्फ किशन दीक्षित को नीलकंठ के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार दिया। इससे मुकाबला काफी कड़ा हो गया। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी किशन दीक्षित के लिए रोड शो भी किया था। जनता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को भांपते हुए पीएम मोदी को इस क्षेत्र में रोड शो तक करना पड़ा। इतना ही नहीं बनारसी अंदाज में वोटरों को लुभाने के लिए पीएम मोदी को अस्सी स्थित पप्पू की अड़ी पर अड़ीबाजी भी करनी पड़ी। पप्पू की दुकान पर बनारसी अंदाज़ में चाय पीना और उसके बाद पान खाने के बाद कार्यकर्ताओ में एक उत्साह जगा, जिसके बाद बमुश्किल आखिरी राउंड में नीलकंठ तिवारी 10 हज़ार वोटों के अंतर से जीत पाए। 2017 के चुनाव में ये अंतर 17 हज़ार से ज्यादा था।

दयालु को मंत्री बना कर पार्टी ने दिया साफ संकेत
कभी कांग्रेस के टिकट पर दो बार शहर दक्षिणी से चुनाव लड़ चुके दयाशंकर मिश्रा दयालु को मंत्री बनाकर बीजेपी ने साफ संदेश दिया है। दया शंकर मिश्रा 2014 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। दयाशंकर मिश्रा दयालु 7 बार के विधायक श्यामदेव राय चौधरी के खिलाफ 2 बार चुनाव लड़ चुके थे और दूसरे स्थान पर रहे थे। 2017 में भी इनकी तगड़ी दावेदारी थी, लेकिन नीलकंठ को टिकट दिया गया और उन्हें मंत्री बनाया गया, लेकिन जनता से दूरी और उनके व्यवहार ने दयाशंकर मिश्रा के लिए मंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया। दयाशंकर मिश्रा को मंत्री बनाने के पीछे साफ और सीधा संदेश यह है कि कार्यकर्ता व जनता से दूरी पार्टी किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी। मूल रूप से दया शंकर मिश्रा हरिश्चन्द्र कॉलेज और बीएचयू की छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं। जनता के बीच अपने मधुर व्यवहार को लेकर दयालु दक्षिणी विधान सभा क्षेत्र में खासे लोकप्रिय भी हैं।

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