MSP कानून बना तो खड़ी होंगी संवैधानिक समस्याएं, जानें क्या-क्या है वजह

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MSP कानून बना तो खड़ी होंगी संवैधानिक समस्याएं, जानें क्या-क्या है वजह

नई दिल्ली
किसानों के विरोध के चलते केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानून रद्द करने पड़े। अब किसान संगठन एमएसपी पर कानून बनाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं। एमएसपी पर कानून बनाना कितना संभव है? केंद्र सरकार ने किसानों की आय को 2022 तक दुगना करने का वादा किया था, सरकार उसे कैसे पूरा कर पाएगी? इन मुद्दों पर नीति आयोग के सदस्य और कृषि अर्थशास्त्री प्रो. रमेश चंद से महेंद्र कुमार ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

सवाल : माना जा रहा है कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाना इस क्षेत्र में सुधारों के लिहाज से झटका है। आपकी क्या राय है?
जवाब : कृषि कानून वापस होना निराशाजनक है। पिछले 20 सालों से इन कानूनों को लेकर सिर्फ चर्चा हो रही थी, लागू करने के कदम नहीं उठाए जा रहे थे। इस दिशा में हमारी और केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को कदम उठाने के लिए कहा गया था। राज्य कदम उठाने की बात कहते थे, लेकिन जमीनी स्तर पर उन्होंने काम नहीं किया। राज्य सरकारें कृषि व्यापारियों, बिचौलियों और किसान संगठनों के दबाव में इन कानूनों को लागू नहीं कर रहीं थी। इसको लेकर फिर केंद्र सरकार को दखलंदाजी करनी पड़ी और उसने कृषि कानून लागू कर दिए। जिसको इससे फायदा होता हुआ नहीं दिखा, उन्होंने पुरजोर विरोध किया। वहीं जिन किसानों को इस कानून से फायदा हो रहा था, वो एकत्रित होकर सामने नहीं आए। यह हमारे देश का लोकतंत्र है। जनता के विरोध के कारण सरकार को अपने कदम पीछे लेने ही पड़ते हैं।

प्रो. रमेश चंद।

सवाल : क्या एमएसपी की गारंटी देने से महंगाई बढ़ेगी? क्या इससे मौद्रिक नीति पर भी असर पड़ेगा?
जवाब : बड़ी बात यह है कि आप किस एमएसपी को लीगल मानते हैं? एमएसपी की तो कोई परिभाषा निर्धारित नहीं है। 2018 में एक नई एमएसपी सामने आई, उससे पहले एक अलग तरह की एमएसपी थी। यदि देश मार्केट आधारित कीमत को एमएसपी मानता है, तब उसका जो सरकार पर बोझ पड़ेगा, अगर वह लीगल भी होगा तो भी बहुत कम होगा। उसका बोझ सरकार आसानी से उठा लेगी। लेकिन अभी की एमएसपी में 50 प्रतिशत किसान का नेट प्रॉफिट शामिल है। इसका एक हिस्सा कीमत है, जो किसान की लागत पर आधारित है। यदि हम मौजूदा एमएसपी सिस्टम को लीगल मानकर कैलकुलेशन करते हैं तो कृषि क्षेत्र के जानकारों की जो चिंता है, बिल्कुल वाजिब है। इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। प्राइवेट सेक्टर खत्म हो जाएगा, निर्यात बंद हो जाएंगे। इसके कई बड़े प्रभाव देखने को मिलेंगे। मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि किस एमएसपी को लीगल किया जाता है, यह उस पर निर्भर है। यदि एक रीजनेबल एमएसपी को लीगलाइज किया जाता है, तब हम इन प्रभावों को देख सकते हैं। दुनिया के कुछ देश हैं, जो एमएसपी इंश्योर करते हैं, लेकिन इन देशों ने भी एमएसपी को लीगल नहीं किया है। एमएसपी लीगल करने से भविष्य में अनेक संवैधानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इससे जुड़ी व्यवस्था में बदलाव करना मुश्किल हो जाएगा।

सवाल : सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था। इस मामले में कहां तक प्रगति हुई है ?
जवाब : इसके लिए जमीनी स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है, तभी किसानों की आय दुगनी होगी। इसके लिए हमने नीति आयोग में एक शोध पत्र बनाया था, जिसमें हमने किसानों की आय दुगनी करने से जुड़े 7 प्रमुख उपायों का जिक्र किया था। इसमें प्रमुख था कि किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले। इसको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई। हमारा मानना था कि अगर कृषि कानून लागू होते तो किसानों की आमदनी में लगभग 17 प्रतिशत वृद्धि होती। इससे कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ती, फसलों की अधिक उत्पादकता होती, उद्योगों के लिए कच्चे माल में बढ़ोतरी होती। यह परिवर्तन हमें दो से तीन साल में देखने को मिलता। इन कानूनों के लागू होने से मंडियों की संरचना में विस्तार होता, कृषि क्षेत्र मजबूत होता। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जिन पांच-छह प्रमुख स्रोतों की हमने पहचान की थी, उनमें हमने पाया कि अधिकांश प्रदेशों में किसानों की आय बहुत अधिक है। वहां उत्पादकता बढ़ने की उम्मीद नहीं है। इसके लिए वहां पूरी कृषि व्यवस्था में बदलाव करना होगा, तभी किसानों की आय में वृद्धि होगी। मध्य प्रदेश, गुजरात के किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि कानून अहम साबित होते।

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सवाल : कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता बड़ी समस्या रही है। इसे दूर करने के लिए क्या सोचा जा रहा है?
जवाब : हमारे यहां कुछ फसलों की उत्पादकता बहुत अधिक है, इनका वैश्विक अनुपात बहुत अच्छा है। दूसरी ओर, अधिकांश फसलों की उत्पादकता में सुधार की आवश्यकता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश के 70 फीसदी किसान एक हेक्टेयर से भी कम जोत पर खेती करते हैं। जब जोत छोटी होगी, तो उत्पादकता भी कम होगी। छोटे किसानों के लिए आय के दूसरे स्रोतों का विस्तार करना होगा, उनका सिर्फ खेती पर आश्रित होना ठीक नहीं। छोटे किसानों को भी इसका अहसास है। उनकी कुल आमदनी में आज 50 फीसदी योगदान खेती-बाड़ी का है, जबकि बाकी आय गैर-कृषि कार्यों से हो रही है। कृषि कार्य से जुड़े अधिकतर छोटे किसानों के परिवार के सदस्य नौकरियां भी कर रहे हैं।

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सवाल : कृषि कानून तो रद्द हो गए। अब कृषि सुधार के लिए कोई और तरीका अपनाया जा सकता है?
जवाब : इसके लिए सरकार को किसानों के लिए चल रही सभी सब्सिडी को मिलाकर एक यूनिवर्सल इनकम तैयार करनी चाहिए। छोटे किसानों के लिए यह अहम कदम होगा। इसके लिए सरकार को कृषि बजट में बढ़ोतरी करनी होगी। इस दिशा में एक कदम बढ़ाया गया है। पीएम किसान योजना के तहत साल में हर एक किसान को 6000 रुपये दिए जाते हैं । इस तरह की और भी योजना बनानी होगी।

msp



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