Lucknow: अब अमरमणि त्रिपाठी सियासत पर कितना असर डालेंगे? मधुमिता हत्याकांड में जेल से बाहर आ गए लेकिन आगे क्या

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Lucknow: अब अमरमणि त्रिपाठी सियासत पर कितना असर डालेंगे? मधुमिता हत्याकांड में जेल से बाहर आ गए लेकिन आगे क्या

Lucknow: अब अमरमणि त्रिपाठी सियासत पर कितना असर डालेंगे? मधुमिता हत्याकांड में जेल से बाहर आ गए लेकिन आगे क्या

लखनऊ: पूर्वांचल की राजनीति में दो दशक तक प्रभावी दखल रखने वाले हत्या के दोषी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी अपनी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी के साथ रिहा हो गए हैं। कवयित्री मधुमिता की हत्या के मामले में 2007 से आजीवन कारावास काट रहे पति-पत्नी की बची सजा माफ कर दी गई है। इसके साथ ही यह आकलन तेज हो गया है कि जेल से बाहर अमरमणि सियासत के भीतर कितना असर डालने में संभव होंगे? सजायाफ्ता होने के चलते वह राजनीति की मुख्यधारा में आ नहीं सकते, इसलिए जमीन नेपथ्य में ही तलाशने की कवायद होगी। हालांकि, उनकी यह सक्रियता किसको फायदा पहुंचाएगी नजरें इस पर भी हैं।

अमरमणि त्रिपाठी ऐसे समय जेल से बाहर आए हैं, जब पूर्वांचल के बाहुबली ब्राह्मण चेहरे हरिशंकर तिवारी का निधन हो चुका है। हरिशंकर तिवारी के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी फिलहाल सपा में है और 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। बड़े बेटे भीष्म शंकर तिवारी 2019 में संतकबीरनगर से एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा लड़े थे और हार गए थे। दोनों ही फिलहाल कद की चुनौती से जूझ रहे हैं। वहीं, अमरमणि भी हरिशंकर तिवारी की ही छत्रछाया में सियासत में आए थे।

अमरमणि का हर दल में रहा दखल

ढाई दशक से अधिक की सक्रिय राजनीति में अमर मणि त्रिपाठी का दखल और असर हर दल में रहा। 1980 में हरिशंकर तिवारी ने उन्हें बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ चुनाव लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं मिली। 1989 में अमरमणि महराजगंज जिले की लक्ष्मीपुर विधानसभा से पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद दो चुनाव में हार मिली। 1996 में कांग्रेस के टिकट पर दोबारा विधायक बने और कल्याण सिंह के समर्थन में गए। इसके बाद लोकतांत्रिक कांग्रेस का हिस्सा बन गए। इसका इनाम उन्हें बीजेपी सरकार में मंत्री के तौर पर मिला।

जेल में रहकर भी जीता था चुनाव

हालांकि, 2001 में बस्ती के एक व्यवसायी के बेटे के अपहरण में नाम आने के बाद मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। 2002 में अमरमणि बीएसपी से चुनाव लड़े और जीते। अगले साल ही मधुमिता हत्याकांड में नाम आने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। इस बीच सरकार की बागडोर मुलायम के हाथ आई और उन्होंने सपा का दामन थाम लिया। 2007 में जेल में रहते हुए वह एसपी से विधायक बने। हालांकि, इसके बाद मधुमिता के हत्या में आजीवन कारावास हो गया।

अभी सबका जारी है परहेज

बिहार में बाहुबली आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई के बाद जिस तरह से स्वागत-विरोध के स्वर उभरे थे, यूपी में अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई पर फिलहाल अभी विरोध के ही सुर हैं। सपा की मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव ने रिहाई पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी सरकार को घेरा है। बिहार से उलट यूपी में अमरमणि से सियासी दलों का अभी खुला परहेज जारी है। अमरमणि ने कारावास के दौरान लंबा वक्त गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में बिताया है। इसलिए, उनका सियासी ‘टच’ पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ।

2012 में एसपी के टिकट पर बेटा अमनमणि नौतनवा से चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं पाया। हालांकि, 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत मिली, लेकिन 2022 में बरकरार नहीं रह पाई। अमरमणि की बेटी को भी 2019 में कांग्रेस ने महाराजगंज से लोकसभा का टिकट दिया था, हालांकि बाद में बदल दिया। ऐसे में सियासी प्रासंगिकता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।

एनबीटी लेंस – नैरेटिव बनाना नहीं होगा आसान

पूर्वांचल में ब्राह्मण बहुल सीट से जीतकर जातीय छत्रप के तौर पर उभरे अमरमणि के लिए फिलहाल पुरानी जमीन पाना आसान नहीं है। अमरमणि ब्राह्मण की ही हत्या में सजायाफ्ता रहे हैं। विपक्ष की राजनीति का अजेंडा बदल चुका है। बीजेपी ने पूर्वांचल में पहले ही ब्राह्मण चेहरे तैयार करने शुरू कर दिए हैं, दूसरे लोकसभा के चुनाव में हिंदुत्व, विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दों के साथ बीजेपी को उनको लुभाने के लिए किसी और की जरूरत भी नहीं दिखती। ऐसे में अमरमणि के सामने की चुनौती बेटे को कंधा बनाकर फिर से सियासत में खड़े होने की है। पत्नी के हत्या के आरोप में जेल जा चुके बेटे अमनमणि का भी दामन इतना दागदार है। सीधे तौर पर साध तलाशना दोनों के लिए अभी टेढ़ी खीर ही है। हालांकि, जेल से बाहर निकलने के लिए तैयार की गई भूमिका के नफा-नुकसान किसी न किसी के खाते में तो जोड़े ही जाएंगे।

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