आजादी के बाद के वो नेता जिन्होंने नैतिकता के आधार पर दिया इस्तीफा

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आजादी के बाद के वो नेता जिन्होंने नैतिकता के आधार पर दिया इस्तीफा

दोस्तों हाल ही में रेल दुर्घटना को लेकर रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की है। आज हम आपको आजादी के बाद के उन नेताओं के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया है।

1956 में महबूबनगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पद से इस्तीफा दे दिया था, हालांकि इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। इस हादसे के 3 महीने बाद ही अरियालूर रेल दुर्घटना में 114 लोगों की मौत हो गई थी जिसके बाद शास्त्री ने फिर इस्तीफा दे दिया। इस बार नेहरू ने इस्तीफा स्वीकारते हुए संसद में कहा कि वह इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं ताकि यह एक नजीर बने इसलिए नहीं कि हादसे के लिए किसी भी रूप में शास्त्री जिम्मेदार हैं।

देश के चौथे वित्त मंत्री टीटी कृष्णानामचारी ने साल 1958 में मुंद्रा घोटाले के चलते इस्तीफा दे दिया था। कोलकाता के व्यापारी हरिदास मुंद्रा की घाटे में चल रही 6 कंपनियों में LIC ने 1 करोड़ 25 लाख रुपये से अधिक का निवेश किया था। कहा जाता है कि यह निवेश सरकार के दबाव में किया गया था और LIC इन्वेस्टमेंट कंपनी ने इसे पास किया था। टीटी कृष्णानामचारी के बजट के बाद इन कंपनियों के शेयर्स तेजी से गिरे थे और इस निवेश में LIC को बड़ा नुकसान हुआ था।

1962 के युद्ध में चीन से मिली शिकस्त के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री वी. के. कृष्ण मेनन ने अपना इस्तीफा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। चूंकि उस वक्त लोगों में मेनन के खिलाफ गुस्सा उफान पर था। इसी के चलते नेहरू ने यह इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया था।

1963 में तत्कालीन खान और ईंधन मंत्री केशव देव मालवीय ने सुप्रीम कोर्ट के जज की जांच के बाद इस्तीफा सौंप दिया था। जांच में सामने आया था कि मालवीय ने एक प्राइवेट फर्म से चुनावों के लिए फंड जुटाने हेतु वित्तीय मदद मांगी थी।

बोफोर्स घोटाले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन रक्षा मंत्री वी. पी. सिंह के बीच तनातनी इतनी बढ़ी थी कि साल 1987 में सिंह ने न केवल अपने मंत्रालय से इस्तीफा सौंपा बल्कि लोकसभा और कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था।

1993 में तत्कालीन नागरिक उड्डयन एवं पर्यटन मंत्री माधवराव सिंधिया ने रूसी जहाज TU-154 (जिसे पायलटों की स्ट्राइक खत्म करने के लिये भारतीय एयरलाइंस ने हायर किया था) क्रैश होने पर इस्तीफा दे दिया था। इस क्रैश में सभी यात्री सुरक्षित बच गए थे।

ऐसे ही 90 के दशक में राजनीति के गलियारों में हलचल मचा देने वाले 64 करोड़ रुपये के जैन हवाला कांड में नाम आने पर BJP के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साल 1996 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। तब हवाला कारोबारी एस. के. जैन की डायरी की प्रविष्टियों को CBI ने आडवाणी समेत शीर्ष नेताओं के खिलाफ अहम सबूत के तौर पर पेश किया था। इस केस में क्लीनचिट मिलने के बाद साल 1998 में वह संसद के लिए फिर से निर्वाचित हुए।

इसी हवाला कांड में नाम आने के बाद JDU के ही नेता शरद यादव ने नैतिकता के आधार पर संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, बाद में इस मामले में वह भी बाइज्जत बरी हो गए थे।