गरदा है ‘कड़वी हवा’, ट्रेलर देख के माथा झन्ना जाएगा बंधु

8904

कड़वी हवा फिल्म का नाम है बन्धु, बात महाराष्ट्र के लातूर की हो रही है। सूखे की मार से त्रस्त ये क्षेत्र वहां के बाशिदों के लिए अभिशाप ही बन गई है। फिल्म केवल सूखा ग्रस्त इलाके की बात ही नहीं करता है बल्कि उन क्षेत्रों की समस्याओं को भी उठाता है जहां बाढ़ और तूफान से लोगों का जीवन जीना दूभर हो गया है। बेहतरीन संवाद और मंझे हुए सुधीर मिश्रा और रणवीर शौरी जैसे कलाकारों ने तो फिल्म में जान डाल दी है जैसे घटना अभी-अभी आंखों के सामने ही घटी हो।

668 -

तो बंधु बात कुछ ऐसी है कि जिन्हें सूखा ग्रस्त इलाकों की जानकारी नहीं है तो इस बच्ची की संवाद को सुनिये, जो वो अपने पिता यानि कि सुधीर मिश्रा से पूछती है, बच्ची – “हमारे क्लास में एक लड़का कै रो है कि साल में दो ही मौसम होवे है, गर्मी और सर्दी।” दूसरे ही दृश्य में एक शिक्षक प्राथमिक विद्यालय में बच्चे से पूछता है, “बरसात को का होगो।” तो बच्चा बोलता है, “मा साहब (मास्टर साहब) बरसात तो साल में दो चार दिन ही पड़तो है।” सुधीर मिश्रा – “सही कही उसने।” बच्ची – “हमारे बुक में तो चार मौसम लिखे है।” सुधीर मिश्रा – “पहले होत थे।” तो वो भाइयों और भाइयों के साथ फिल्म देखने जाने वाले उनके स्त्री-पुरूष दोस्तों। मटकती कमर देखने में आपको मजा आती है तो कोई समस्या नहीं है ये तो मानव स्वभाव है। लेकिन हमारे ग्रामीण इलाकों में जहां किसानों और मजदूरों की स्थिति बदतर हो गई है, थोड़ा पैसा उन्हें देखने में भी खर्च कर लीजिए, ताकि प्रोड्यूसर – अक्षय कुमार परिजा, मनीष मुंदरा, नीला माधव पांडा जैसे लोगों का हौसला बनी रहे और वो आगे भी ऐसी फिल्में बनाते रहें।

वैसे कड़वी हवा बनाने वाले दृश्यम फिल्म्स के बैनर तले पहले भी आंखों देखी, मसान और न्यूटन जैसी अच्छी फिल्में बन चुकी है। आई एम कलाम जैसी बेहद अच्छी फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर नीला माधव पांडा ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है तो बेशक बढ़िया बनाई होगी। अब इस संवाद को भी पढ़ें –   सुधीर मिश्रा (किसान ग्रामीण के रूप में) – “कोई फंदा लटक के मर र है, कोई जहर खा के मर र है। अब इन बीहड़ में सिर्फ उन्हीं की चीखें गूंजती हैं।”

सुधीर मिश्रा – “आओ कहां के हो।”

रणवीर शौरी – “उड़ीसा का हूं।”

सुधीर मिश्र – “स्वर्ग है वा तो हर तरफ पानी-पानी, हवा की बड़ी कृपा है तुम सबों पे।”

रणबीर शौरी – “हां कुछ ज्यादा ही है।” अरे भैया दोनों के संवाद से कुछ समझ में आया क्या, अरे नहीं आया तो हम समझाते हैं, मतलब ये है कि कहीं लोग बिना पानी के मर रहे हैं तो कहीं पर पानी से मर रहे हैं लेकिन मौज उड़ाने वालों को मौज उड़ाने से फुरसत कहां है। वो तरक्की के नाम पर पर अपनी सनक सौंप रहे हैं हमारे ऊपर। औ ये वाला गाना है – मैं बंजर, मैं बंजर, मैं बंजर……।

IMG 01112017 190625 0 -

जो लोग अब भी भारत को किसानों और मजदूरों का देश कहते और समझते हैं या सुनते हैं, उनके लिए ये ट्रेलर देखने के साथ-साथ फिल्म देखना भी बहुत जरूरी है। यही नहीं समझना भी जरूरी है कि वाकई ये देश किसानों मजदूरों और गरीबों का ही है।

हां जो इस देश को किसानों, मजदूरों और गरीबों का नहीं बल्कि केवल अपने बाप की जागीर समझकर कुछ भी करने को तैयार हैं और करते भी हैं उनके लिए भी ये ट्रेलर बेहद ही जरूरी है। क्योंकि बात यहां हवा और पानी और मौसम की हो रही है। तो याद रखना 24 नवंबर की तारीख उसी दिन रीलिज हो रही है ये फिल्म कड़वी हवा देखने जरूर जाना, केवल देखना ही नहीं देखकर समझना और इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश भी करना और लोगों को इसके प्रति जागरूक करना।

IMG 01112017 190733 0 -

ये बात शाहरूख जैसे हाथ फैलाने वालों आपके लिए, शुद्ध हवा और पानी भिखारियों की तरह हाथ फैलाने से भी नहीं मिलती है। हां ये भी सोचो कि खेती किसानी छोड़कर गांव के सारे लोग शहर को पलायन कर गए तो क्या होगा तुम्हारे विकास का, वो सचमुच में पागल हो जाएगा। फिर अनाज किसान नहीं व्यापारी पैदा करेंगे जो सरकार की साजिश है। सोचो ऐसा हुआ तो क्या होगा।