Ground Report: अखिलेश और ओवैसी में ‘कन्फ्यूज’ हैं यूपी के मुसलमान? चुनावी चर्चा में बताई मन की बात

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Ground Report: अखिलेश और ओवैसी में ‘कन्फ्यूज’ हैं यूपी के मुसलमान? चुनावी चर्चा में बताई मन की बात

लखनऊः उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में 80 फीसदी और 20 फीसदी के नए जुमले के बीच मुस्लिम वोटर्स को लेकर नए तरह का संग्राम चल रहा है। माना जा रहा है कि प्रदेश के ज्यादातर मुसलमान बीजेपी को हराने पर ज्यादा फोकस करेंगे। इसके लिए उनके सपा के पक्ष में लामबंद होने की संभावना अधिक है क्योंकि यूपी में मुख्य लड़ाई सपा और बीजेपी के बीच मानी जा रही है। हालांकि, इस बीच मुस्लिम समुदाय में बहुत से लोग सत्ता में ‘मुस्लिम नेतृत्व’ की भी संभावना देखने लगे हैं। यही एक रास्ता है, जिससे ओवैसी को यूपी की राजनीति में बढ़िया प्रवेश द्वार मिल सकता है।

‘बाहरी’ ओवैसी के लिए यूपी में कितनी संभावना
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र और स्टूडेंट पॉलिटिक्स में दखल रखने वाले दिलावर कहते हैं कि सालों से राजनीतिक पार्टियों ने प्रदेश के मुस्लिम वोटर्स का इस्तेमाल किया। पहले कांग्रेस ने और फिर समाजवादी पार्टी ने हमारे वोट का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए किया। इन सबके बावजूद मुस्लिम समुदाय की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। ऐसे में हम अब अपने विकास के लिए ‘अपने’ प्रतिनिधि तैयार करेंगे।

जुबैर से हमने सवाल किया कि क्या उत्तर प्रदेश में वह ऐसे किसी मुस्लिम नेता के बारे में जानते हैं, जिसमें इस अल्पसंख्यक समुदाय के नेतृत्व की संभावना हो। उन्होंने एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी की तरफ इशारा किया। ओवैसी बिहार में 5 सीटें जीतने के बाद बड़ी उम्मीद के साथ यूपी की राजनीति में दाखिल हुए हैं। उन्होंने बाबू सिंह कुशवाहा और भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन करके भागीदारी संकल्प मोर्चा तैयार किया है और प्रदेश की 100 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है।

जुबैर से हमने फिर पूछा कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के लिए हैदराबाद के ओवैसी पर भरोसा क्यों? क्या यूपी में एक भी मुसलमान नेतृत्व नहीं खड़ा किया जा सकता? सवाल पर दिलावर थोड़ा तल्ख हो जाते हैं। वह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड से आकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो ओवैसी क्यों नहीं?

ओवैसी को लेकर सजग हैं मुसलमान
कानपुर के रहने वाले एक मुस्लिम युवक कहते हैं कि देश की जो मौजूदा परिस्थिति है, उसमें नफरतों की दुकानदारी हो रही है। मुस्लिम समाज में एआईएमआईएम या ओवैसी साहब को लेकर सजगता है क्योंकि अभी तक देखा गया है कि तमाम समाज जिन्होंने कामयाबी हासिल की है, उन्होंने अपनी नुमाइंदगी की है। सिर्फ मुस्लिम समाज बार-बार बैलेंसिंग करता रहा है। ऐसे में इस बार मुस्लिम समाज सोच रहा है कि हम किसी को हराएंगे नहीं। चाहे समाजवादी या कांग्रेस। हम खुद को जिताने का काम कर करेंगे। ताकि विधानसभा के 403 विधायकों में हमारी नुमाइंदगी करने के लिए 40-50 लोग हों।

उनका कहना है कि खासतौर पर युवा इसे लेकर काफी ऐक्टिव हो रहा है। समाजवादी पार्टी से नाराज एक ऐसे ही युवा जफर हाशमी ने तो यह तक दावा कर दिया कि सेकुलर पार्टियों ने मुस्लिमों को जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना बीजेपी ने भी नहीं पहुंचाया होगा। हम इस बात की तवक्को नहीं कर रहे हैं कि योगी को हराने के लिए हम सपा या किसी और पार्टी के पास जाएंगे। वह कहते हैं कि हम किसी पार्टी के बारे में नहीं सोच रहे हैं। जो हमारे विधानसभा के लिए बेहतर होगा, उसी के फेवर में हमारा वोट जाएगा। अगर कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आया तो कानपुर की आवाम नोटा दबाएगी। अखिलेश और उनके वालिद के हुकूमत में भी काफी नुकसान हमें झेलने पड़े हैं।

हालांकि, इससे पहले जेल से रिहा होने के बाद आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम ने कहा था कि मुसलमान खुलकर सपा के साथ रहेंगे। हापुड़, मेरठ और आगरा में भी ज्यादातर मुसलमानों ने सपा को ही समर्थन देने की बात कही है। बहुजन समाज पार्टी भी इस बार के चुनाव में ज्यादा ऐक्टिव नहीं है। ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशियों के जीतने के बाद भी उसके सत्ता पर काबिज होने की संभावना न के बराबर है। ऐसे में बीजेपी को हटाने के लिए मुस्लिम वोटरों के लिए एसपी ही विकल्प बचती है।

सपा को सपोर्ट करेंगे मुसलमान

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