उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा मन का खाने के लिए या प्रेम करने के लिए उत्सव की ज़रुरत क्यूँ

340

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ‘‘बीफ फेस्टीवल’’ आयोजन के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया और कहा कि यदि कोई चाहता है तो बीफ खा सकता है लेकिन इसके लिए कोई महोत्सव आयोजित करने की कोई जरूरत नहीं है.

इन चीज़ों का महोत्सव कैसा

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने नई दिल्ली के ‘आर ए पोदार कालेज आफ कॉमर्स’ के ‘प्लेटिनम जुबली’ समारोह में बात करते हुए बीफ या किस फेस्टिवल मनाने के औचित्य पर सवाल खड़ा किया. नायडू ने सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘‘आप बीफ खाना चाहते हैं तो खाइये. (एक) महोत्सव क्यों? इसी तरह से चुंबन लेना चाहते हैं तो आपको यह करने के लिए कोई महोत्सव आयोजित करने या किसी की अनुमति लेने की क्यों जरूरत है.’’

इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरू के समर्थन में नारे लगाने वालों पर भी निशाना साधा. नायडू ने कहा,‘‘ कुछ लोग अफजल गुरू के नाम पर नारेबाजी कर रहे हैं. क्या हो रहा है? उसने हमारी संसद को उड़ाने का प्रयास किया.’’

Festival -

यहाँ हुआ बीफ फेस्टीवल

बताते चलें कि जुलाई 2017 में आईआईटी मद्रास के छात्रों ने गोहत्या पर रोक के खिलाफ आईआईटी के परिसर में ‘‘बीफ फेस्टीवल’’ आयोजित किया था. इसी तरह से फरवारी महीने के शुरू में जम्मू कश्मीर में अफजल गुरू और जेकेएलएफ संस्थापक मकबूल भट की बरसी पर एक परामर्श जारी किया गया था.

भट और अफजल गुरू को क्रमश: 11 फरवरी 1984 और 9 फरवरी 2013 को फांसी देकर नयी दिल्ली के तिहाड़ जेल के भीतर दफना दिया गया था.

नौकरी पर भी चर्चा

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले भी उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू अपने एक बयान को लेकर खबरों में आए थे. तब उन्होंने नौकरियों को लेकर नीति आयोग और सीआईआई के कार्यक्रम में सवाल करते हुए था कि क्या इस देश में हर किसी को नौकरी दी जा सकती है? नायडू ने कहा कि हर किसी को नौकरी नहीं दी जा सकती लेकिन चुनाव के दौरान हर सरकारें ऐसा वायदा करती हैं. अगर सरकारें ऐसा वादा ना करें तो जनता उन्हें वोट नहीं देगी.

नायडू ने कहा था कि जो काम किसी पर भी निर्भर है, वह अपने आप में एक काम है और इसलिए पकौड़ा बनाना भी एक काम है. दरअसल उपराष्ट्रपति नायडू का ये बयान उस समय आया था जब पकौड़ा विवाद चर्चा में था. पीएम नरेंद्र मोदी ने रोजगार के सवाल पर एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि सड़क किनारे पकौड़े बनाने वालों को भी असंगठित रोज़गार सृजन में शामिल किया जा सकता है.