छेड़खानी से परेशान युवक 150 से ज्यादा मनचलों को करा चुका है जेल

441

महिलाओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं आम हैं। सड़क पर चलते वक्त, लाइन में लगे हुए, सफर करते वक्त या बस और ट्रेन में चढ़ते वक्त उनके साथ जान बूझकर धक्का मुक्की करना भी आम बात है लेकिन क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपमें से किसी ने उनके साथ छेड़खानी करने वाले को रोकने की कोशिश की हो या उनके खिलाफ कोई एक्शन लिया हो। आप में से कुछ लोगों ने शायद कभी – कभार ऐसा किया भी होगा लेकिन मुंबई के दीपेश टैंक महिलाओं के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए रोज़ अपना समय देते हैं।

IMG 01112017 161631 0 -

गाँव कनेक्शन से बात करते हुए दीपेश बताते हैं, ”मेरा बचपन मुंबई की एक झुग्गी में बीता है। पापा कि स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो घर चला पाएं इसलिए मां ने उनकी जगह ले ली और घर चलाने का सारा संघर्ष मां ने ही किया। मां ने अपना केटरिंग का बिजनेस शुरू किया और अक्सर दिन में 12 घंटे से ज़्यादा काम करती रहीं। जब वो पूरे दिन काम करने के बाद रात में देर से घर आती थीं तो अक्सर पास पड़ोस के लोग उन्हें बुरा – भला कहते थे। ये सब देखने के बाद मेरे मन में उनकी इज़्जत बढ़ती गई।

16 की उम्र में छोड़ दी थी पढ़ाई

‘मैं अपनी मां की मदद करना चाहता था इसलिए 16 साल की उम्र में ही मैंने पढ़ाई छोड़ दी और ऑफिस ब्वॉय की नौकरी करने लगा। मैं उस कार्यालय में कम्प्यूटर ठीक कहना था। दफ्तर में सबसे पहले मैं जाता था और वहां से सबसे आखिर में निकलता था। मैंने हमेशा यही कोशिश की कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा सीख सकूं।

IMG 01112017 161652 0 -

 

जैसे – जैसे मेरा अनुभव बढ़ता गया, नौकरी में भी मेरी तरक्की होती गई, फिर मुझे सेल्स की नौकरी मिल गई। कुछ वर्षों की और मेहनत के साथ मुझे एक प्रतिष्ठित विज्ञापन एजेंसी में नौकरी मिल गई लेकिन इस बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी।”

घिन आती है कि ऐसे समाज का हिस्सा हूं

दीपेश बताते हैं कि मैं रोज़ मुंबई की तरह मुंबई लोकल में सफ़र करने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां मैंने देखा कि पुरुषों का एक समूह ट्रेन के डिब्बे में चढ़ती महिलाओं को परेशान कर रहा है। उस समय मेरे मन में गुस्सा था और घिन थी कि हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां हर दिन महिलाओं को इस तरह की समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। वो कई थे और मैं अकेला इसलिए उनसे लड़ नहीं सकता था, मैं पुलिस के पास गया उनकी शिकायत करने लेकिन पुलिस ने शुरुआत में मुझे नज़रअंदाज कर दिया। मैंने काफी समझाया तो एक अफसर मेरे साथ आया लेकिन तब तक वो पुरुष वहां से जा चुके थे।

वो बात वहीं ख़त्म हो गई लेकिन इस घटना का मेरे ऊपर बहुत असर हुआ। मैं सिर्फ सोच रहा था उस बुरे समाज के बारे में जिसमें महिलाएं रहती हैं। मैंने सोचा कि अक्सर देर रात घर लौटती मेरी मां को अगर कोई इस तरह परेशान करता तो क्या मैं उसे रोकनी की कोशिश नहीं करता? मुझे लगा कि इस घटना को यूं ही नहीं जाने देना चाहिए। मुझे कुछ करना चाहिए। मैंने और मेरे एक दोस्त ने थोड़ी खोजबीन शुरू की और कई रेलवे स्टेशनों पर नज़र रखी तो पाया कि ऐसे सैंकड़ों पुरुष हर जगह मौजूद थे और 85 फ़ीसदी से ज़्यादा सफ़र करने वाली औरतों को इस तरह की दिक्क्तों का सामना करना पड़ता था।

इस तरह शुरू की मुहिम

मैं इस तरह के तथ्य के जुटाना चाहता था इसके लिए मैंने एक जोड़ी सनग्लासेज ख़रीदे जिनमें अंदर एक एचडी कैमरा लगा था। इस कैमरे में रिकॉर्डिंग होती रहती थी। इसके बाद मैं रेलवे स्टेशन जाता और महिला डिब्बे की तरफ़ वाले एक कोने में खड़ा हो जाता। इससे मेरी नज़रों के सामने से गुज़रने वाली हर गतिविधि कैमरे में रिकॉर्ड होती रहती। इस पूरी प्रक्रिया ने मुझे भीतर तक झिंझोड़ दिया और मुझे यह समझ आया कि महिलाओं का रोज़ किस तरह शोषण होता है।

कैमरे में रिकॉर्डिंग करके सारे सबूत हमने पुलिस इंस्पेक्टर के सामने रखे और उनका इस समस्या की गंभीरता से परिचय करवाया और ग़नीमत रही कि इस बार वो समझ गए। 40 पुलिस ऑफिसर्स हमें दी गई ताकि हम ऐसे लोगों को पकड़ सकें लेकिन इस टीम ने दो ही दिन हमारा साथ दिया। इसके बाद मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ‘वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज’ नाम से एक संस्था बनाई और रेलवे स्टेशन पर महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले लोगों को पकड़ना शुरू किया। हर रोज़ हम लोग दो स्टेशनों के बीच सफ़र करते।

इस तरह पकड़ते थे मनचलों को

मेरी लाइव रिकॉर्डिंग से वो सब अपराधी कैमरे में क़ैद हो जाते जिससे जब तक वो अगले स्टेशन पर पहुँचते वहां पर मौजूद पुलिस ऑफिसर्स उनको पकड़ पाते। लगभग 4 साल पहले हमने ये काम करना शुरू कर दिया था। 6 महीने के अंदर ही हमने 140 ऐसे अपराधियों को जेल भिजवाया और हमारी लड़ाई अभी भी जारी है जहां अब मैं ज़्यादातर डोमेस्टिक वायलेंस और किन्हीं भी परिस्थितियों में असुरक्षित महसूस कर रही औरतों की हर संभावित मदद के लिए प्रयासरत हूं।

वह बताते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करने के अलावा हम यूथ पीपल एनजीओ भी चलाते हैं जिसमें बच्चों की शिक्षा पर भी काम करते हैं। वह कहते हैं कि मैं अब पूरी तरह से समाज सेवा करना चाहता हूं।