बुंदेलखंड में जल संस्थान के हलक सूखे

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चित्रकूट: देश में बुंदेलखंड़ की बदहाली पर सरकारों को विशेष कृपा होती है लेकिन यहां के जल संस्था विभाग के साथ प्रदेश सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है। वर्ष 2013 में प्रदेश के जल संस्थान का विलय नगर निगम व नगर पालिका से कर दिया है पर बुंदेलखंड के सात जिलों में बेगाना छोड़ दिया है। जिसका असर यहां जल संस्थान पर ऐसा पड़ा है कि पूरे बुंदेलखंड में विभाग पर काम करने वाले करीब तीन हजार पूर्णकालिक, संविदा और ठेका कर्मियों को वेतन के लाले है। कई-कई माह उनको वेतन नहीं मिलता है आज भी चार माह से वे वेतन को तरस रहे है।

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बुंदेलखंड़ के जलसंस्थान की आर्थिक तंगहाली की हालत यह है कि चित्रकूटधाम और झांसी मंडल में तैनात करीब तीन हजार कर्मचारियों का दशहरा और दीपावली फांके में गुजरा है। दशहरा और दीपावली पर्व में जहां सभी खुशियां मना रहे थें, वहीं विभाग के कर्मचारियों के चेहरों से खुशियां गायब हैं। वह अपने बच्चों को पटाखे और मिठाई भी नहीं ला सके है। परिवार की आर्थिक स्थित डावाडोल होने पर कुछ अधिकारी व कर्मचारी इस्तीफा देने लगे हैं। चित्रकूटधाम और झांसी मंडल में करीब डेढ़ करोड़ की आबादी को जल संस्थान पानी पिलाता है लेकिन उसके कर्मियों की प्यास बुझाने वाली सरकार उदासीन है। कर्मी बताते है कि सरकार कहती है कि अपने संसाधन से कमाई करके वेतन लें। जबकि वसूली के नाम पर दोनों मंडल में प्रति वर्ष करीब 15 करोड़ रूपये की होती है जबकि वेतन प्रति माह पांच करोड़ रूपये से अधिक देना पड़ता है ऐसे में कैसे यह विभाग अपने संसाधन से चलेगा।

बजट नहीं मिलने से यह है दुश्वारियां

– पूर्णकालिक, संविदा व ठेका कर्मियों का वेतन, पेंशन आदि अन्य भुगतान नहीं हुआ

– विभाग के पेयजल लाइन व नलकूपों की मरम्मत

– डीजल उधार न मिलने से वाहन खड़े है

– फील्ड वर्क के साथ टैंडरों से पेयजल आपूर्ति प्रभावित

– प्लांट के मरम्मत और सफाई का कार्य प्रभावित

‘बुंदेलखंड़ के कर्मियों के साथ सरकार के सौतेला व्यवहार खत्म होना चाहिए। यहां के जल संस्थान को भी नगर निगम व पालिका में मर्ज कर दे ताकि कर्मियों को वेतन मिल सके।’   शिव प्रसाद वर्मा – प्रांतीय उपाध्यक्ष जल संस्थान कर्मचारी महासंघ, लखनऊ।