क्या है भारतीय जेल में एक कैदी की जिंदगी

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नई दिल्ली: ये तो हम सभी जानते है आज हमारा कानून काफी सख्त हो गया है, आज हमारी कानून व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है. पर क्या आप जानते है एक जेल में रह रहें कैदी की आम रूप से क्या जिंदगी होती होगी, अगर नहीं जानते है तो इस आर्टिकल को जरुर पढ़ें….

पहले के समय में सुबह के वक्त जगाने के लिए न तो हमारे पास घड़ी होती थी न ही मोबाइल फोन उस दौरान सभी लोग मुर्गे की बांग पर जगा करते थे, ऐसा ही कुछ उन दिनों जेलों में भी देखा जाता था, लेकिन आज ये भले ही पीछे छुट गया हो पर जेलों में बंदियों को जिम्मेदारी और वक्त का एहसास घंटे की गूंज पर होती है. हर साठ मिनट बाद बजाने वाला घंटा उन्हें समय बताता है, वहीं पचासा की एकमुश्त गूंज उन्हें उनकी जिम्मेदारी बताती है.

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सुबह से शाम तक चार बार पचास गूंजती है

आपको बता दें कि सुबह से शाम तक चार बार पचास गूंजती है जिनका हर बार अलग-अलग मकसद होता है. कैदियों की दैनिक कार्य तय करने वाली पहली पचासा सुबह पांच बजे गूंजती है. इसका उद्देश्य कैदियों को उठाकर नित्य क्रिया और प्रार्थना सभा में एकत्रित करने की जानकारी देने से है. यहीं से कैदियों को काम पर भेजा जाता है.

चार बार गूंजती है पचासा

दूसरी पचासा दिन में करीब 11 बजे गूंजती है. जिसका अर्थ है कैदियों को काम से वापिस लौटकर खाना बंटने वाली जगह पर पहुंचना है. फिर तीसरी पचासा दोपहर में करीब 1 बजे गूंजती है जिसका मतलब है कैदियों को अपना काम तेज करने से है. आखिरी यानी चौथी पचासा शाम को पांच बजे गूंजती है जिसका मतलब है तमाम कैदी काम छोड़कर कर बैरक के पास आ जाएं. हर पचासा के बाद जेल के कर्मचारी कैदियों की गिनती करते है. आखिरी पचासा बजने तक जेल से जिनको रिहाई का आदेश मिला होता है, उनकी ही रिहाई उस दिन संभव होती है, वहीं जिसकी रिहाई का आदेश पचासा के बाद होता है उसकी रिहाई उस दिन नहीं बल्कि अगले दिन होती है.

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जेल में किसी भी प्रकार की घटना होने पर जेल की घंटी काफी बेतुके तरीके से बजाई जाती है. घंटे की ये गूंज ही आपातकाल और खतरे का एहसास कराने लगती है. इसका मतलब जेल के तमाम लोगों को अलर्ट करने से है. जेल में संघर्ष होना, कोई घटना हो जाना और कैदी भागने पर खतरे की घंटी के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस दौरान कैदियों और बंदियों को प्रार्थना सभा वाले ग्राउंड में पहुंचकर सावधान मुद्रा में खड़ा होना होता है.

जेलों का निजाम बनारसी घंटा से ही चलता है

शायद कम लोग ही जानते है कि अंगरेजों के जमाने से जेलों का निजाम बनारसी घंटा से ही चलता है. बनारस के बने घंटे ही यूपी के जेलों में टंगे हुए है जिनके पचासा से कैदियों की दिनचर्या तक होती है. बता दें कि अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रहीं यह प्रथा आज भी पूरी तरीके से कायम है. करीब दस किलो वजन का घंटा जेलों की पहचान बन चुका है. आपको बता दें कि समय के साथ समय जेलों की चीजों में भी काफी बदलाव हुए है. जेलों में आधुनिकीकरण हो रहा है. कैदियों के ऑनलाइन डोजियर सहित कई बड़े बदलाव किए गए है. कई जेलों में हूटर लगाए गए है.

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कैसा मिलता है जेल में खाना

वहीं बात करें कैदियों के खाने की तो, कैदियों को खाना खूब रुलाता है. क्योंकि उन्हें जेल के मेन्यू में ही गुणवत्ता के अनुसार ही भोजन मिलता है. सही भोजन न मिलने पर पेट तक नहीं भरता और कई बीमारियां तक होती है. काफी कैदियों का कहना है कि जेल के अंदर शुद्ध भोजन नहीं मिलता है और न ही दवाइयों का ही पर्याप्त बंदोबस्त होता है. कैदियों को स्वादिष्ट खाने का स्वाद नही मिलता है. पर शायद समय के साथ खाने में भी सरकार ने बदलाव जरुर किया है. अब कैदियों को खाने की गुणवत्ता को बढ़ा दिया है. अब उन्हें हर दिन अलग-अलग खाना दिया जाता है.

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