Daughters Day Blog : क्यों हमें सविता जैसी बेटियों के स्वागत की ज्यादा जरूरत?

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Daughters Day Blog : क्यों हमें सविता जैसी बेटियों के स्वागत की ज्यादा जरूरत?

कहा जाता है कि जब एक महिला शिक्षित होती है तो एक राष्ट्र शिक्षित होता है। हाल ही में, छतरपुर जिले के दूर-दराज के गांव की एक लड़की ने भारतीय सेना में नौकरी पाकर न केवल अपने मां-बाप का नाम रोशन किया बल्कि अपने गांव और क्षेत्र की बाकी लड़कियों के लिए प्रेरणा-स्रोत भी बनी। 24 वर्षीय सविता के पिता एक टैक्सी ड्राइवर हैं। सेना की वर्दी में जब यह बेटी अपने घर लौटी तो पूरे गांव ने बैंड-बाजे, फूल-मालाओं और देशभक्ति के गीतों के साथ अपनी बेटी का स्वागत किया।


नीति आयोग के अनुसार छतरपुर को एक महत्वाकांक्षी जिले के रूप में पहचाना गया है, लेकिन बुंदेलखंड के बाकी हिस्सों की तरह, छतरपुर में भी औद्योगिक विकास, रोजगार के अवसरों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है। हालांकि, हाल ही में बढ़ते उद्योगों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, मजबूत शैक्षणिक संस्थानों और राज्य सरकार की ओर से दिए जा रहे संगठित प्रोत्साहन के चलते छतरपुर और बुंदेलखंड का परिदृश्य बदल रहा है।

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उदाहरण के लिए, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय जो 2015 में स्थापित किया गया था, बंदर डायमंड और केन-बेतवा लिंक परियोजना या खजुराहो पर्यटन स्थल परियोजना जैसी हालिया परियोजनाएं तेजी से छतरपुर का स्वरूप बदलने में सक्षम हैं। हीरा खनन परियोजना से इस क्षेत्र में 40,000 करोड़ रुपये तक की आर्थिक गतिविधियों के साथ सरकार को 28,000 करोड़ रुपये का योगदान मिलने की उम्मीद है।

परियोजनाओं के कारण आर्थिक विकास के साथ-साथ कई कंपनियां अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) गतिविधियों के माध्यम से महिलाओं के प्रति सामाजिक परिदृश्य को सशक्त बनाने पर जोर दे रही हैं। जीवन ज्योति, सैलॅन-आई और सखी कुछ ऐसे प्रयास हैं, जिससे स्थानीय महिलाओं और बेटियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आए हैं।
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जिले में इन कार्यक्रमों की शुरुआत कर महिलाओं को शिक्षित, उनके कौशल विकास और उन्हें प्रशिक्षित करने का काम किया है। गौरतलब है कि प्रोजेक्ट सखी पहल के तहत, जमीनी स्तर पर संचालित संस्थानों जैसे कि स्वयं सहायता समूहों और उनके संघों को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है। इस प्रोग्राम के तहत 214 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं और इसके जरिए 27,000 से अधिक महिला सदस्यों को फायदा मिला है और 500 से अधिक महिलाओं को कौशल-संपन्न बनाया जा सका है।

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सविता इस बात की मिसाल है कि लगन के बल पर हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। बालिका शिक्षा दिवस के अवसर पर, सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है, जिससे न केवल महिलाओं को सशक्त और शिक्षित बनाया जा सकता है बल्कि उनमें ऊंची उड़ान भरने का हौसला भी पैदा किया जा सकता है।
लेखक : उमा त्रिवेदी (ये लेखक के निजी विचार हैं)



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