Allahabad News: 23 साल बाद हुई पुलिस सेवा में बहाली लेकिन बकाया सैलरी नहीं मिलेगी- इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश

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Allahabad News: 23 साल बाद हुई पुलिस सेवा में बहाली लेकिन बकाया सैलरी नहीं मिलेगी- इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश

हाइलाइट्स

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुरादाबाद के कृष्ण कुमार को 23 साल बाद सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया है
  • हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि याची फिट न पाया जाय तो उससे कार्यालय में तैनात किया जाए
  • उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के रहने वाले कृष्ण कुमार का 1998 में पुलिस भर्ती में सलेक्शन हुआ था

आनंदराज, प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1998 की पुलिस भर्ती में चुने गए मुरादाबाद के कृष्ण कुमार को 23 साल बाद सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि याची फिट न पाया जाय तो उससे कार्यालय में तैनात किया जाए।

एसपी कार्मिक इंचार्ज डीआईजी स्थापना यूपी ने सत्यापन हलफनामे में तथ्य छिपाने के कारण नियुक्ति देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट के पुनर्विचार के आदेश के बाद भी नियुक्ति नहीं दी गई तो कोर्ट ने कहा भर्ती के 23 साल बाद विभाग को विचार करने का आदेश देना उचित नहीं है। इसलिए कहा कि याची को बहाल किया जाय। किंतु वह बकाये वेतन का हकदार नहीं होगा।

यह है मामला
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के रहने वाले कृष्ण कुमार का 1998 में पुलिस भर्ती में सलेक्शन हुआ था। लेकिन साल 1991 में किसी आपराधिक मामले में उन पर एफआईआर दर्ज हुई थी। जिसका जिक्र पुलिस भर्ती में नौकरी में अप्लाई दौरान उन्होंने नहीं किया था। याची कृष्ण कुमार पर आरोप लगा था कि उन्होंने इस तथ्य को छुपाया था। उन पर तथ्य छुपाने पर धोखाधड़ी का मामला भी दर्ज हुआ था।

इस दौरान कृष्ण कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जिस पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने दिया है। इस मामले में याची के अधिवक्ता राजेश यादव ने बहस की। इसमें कहा गया याची 1998 पुलिस भर्ती में चयनित किया गया। उसके खिलाफ 1991मे आपराधिक केस दर्ज हुआ था। जिसमें वह 1999 में बरी हो चुका है।

कोर्ट ने नियुक्ति देने का दिया निर्देश
याची कृष्‍ण कुमार पर गलत जानकारी देने पर धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ। जिसके आधार पर नियुक्ति नहीं दी गई। 4 अगस्त 2017 के इस आदेश को चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट ने जानकारी छिपाने पर नियुक्ति से इंकार के आदेश को रद्द कर पुनर्विचार का निर्देश दिया तो उसी आधार पर दुबारा नियुक्ति देने से इंकार करना सही नहीं है। याची आपराधिक केस में बरी हो चुका है। तो धोखाधड़ी के केस का कोई मायने नहीं है। कोर्ट ने कहा 23 साल बाद विभाग को भेजने के बजाए निर्देश देना उचित रहेगा और याची को कांस्टेबल पद पर पुलिस में या कार्यालय में तैनात करने का निर्देश दिया है।

सांकेतिक तस्‍वीर



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