सम्राट अशोक के शेरों से कितने अलग हैं नए संसद भवन के शेर, जानिए क्यों हो रही सारनाथ स्तंभ से तुलना

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सम्राट अशोक के शेरों से कितने अलग हैं नए संसद भवन के शेर, जानिए क्यों हो रही सारनाथ स्तंभ से तुलना

सम्राट अशोक के शेरों से कितने अलग हैं नए संसद भवन के शेर, जानिए क्यों हो रही सारनाथ स्तंभ से तुलना

लखनऊ: संसद भवन की नई बिल्डिंग सेंट्रल विस्टा (Central Vista) पर लगा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (National Emblem) इस समय चर्चा का विषय बन गया है। इस राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर बहस यह छिड़ गई है कि सारनाथ और सांची के शेरों से ये शेर अलग हैं। अलग इस मामले में इन दोनों जगहों पर शेर काफी शांत मुद्रा में दिखते हैं। वहीं, सेंट्रल विस्टा की छत पर स्थापित किए गए शेरों की मुद्रा आक्रामक है। हालांकि, इसको लेकर विशेषज्ञों के मत अलग-अलग हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये शेर सम्राट अशोक के शेरों की तर्ज पर ही दिखते हैं। दोनों शेरों में कोई खास अंतर नहीं है। इस मामले में विवाद तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट के बाद भड़का है। महुआ मोइत्रा ने ट्वीट के जरिए अशोक काल के शेरों से वर्तमान समय में बनाए गए राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह से करते हुए तंज कसा है।

सम्राट अशोक ने अशोक स्तंभ का निर्माण कराया था। देश के कई स्थानों पर निर्माण कराया गया था। स्वतंत्र भारत के प्रतीक चिन्ह के रूप में अशोक स्तंभ को अपनाया गया। वाराणसी के सारनाथ संग्रहालय में रखे गए अशोक लाट को देश के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में 26 अगस्त 1950 को अपनाया गया। यह प्रतीक सरकारी लेटरहेड का हिस्सा है। साथ ही, यह देश की मुद्राओं पर भी दिखता है। भारतीय पासपोर्ट की भी पहचान अशोक स्तंभ से होती है। इस स्तंभ के नीचे स्थित अशोक चक्र भारतीय ध्वज के मध्य भाग में लगाया जाता है। यह प्रतीक चिन्ह देश में सम्राट अशोक की युद्ध और शांति की नीति को प्रदर्शित करता है।

देश की नीति को प्रदर्शित करते सम्राट अशोक
सम्राट अशोक को युद्ध और शांति का प्रतीक माना जाता है। सम्राट अशोक मौर्य वंश के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक माने जाते हैं। 304 ईसा पूर्व में उनका जन्म हुआ था। 232 ईसा पूर्व तक उनका साम्राज्य उत्तर में हिंदूकुश, तक्षशिला से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी, मैसूर तक फैला हुआ था। पूर्व में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में ईरान, अफगानिस्तान, बलुचिस्तान तक उनका शासन था। इतिहास के प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि अशोक को चक्रवर्ती सम्राट अशोक कहा जाता है। इसका अर्थ सम्राटों के सम्राट होता है। उन्होंने अपने जीवन काल में काफी युद्ध लड़े और विजय हासिल की।

सम्राट अशोक ने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और कांधार विश्वविद्यालयों की स्थापना कराई थी। ईसा पूर्व 261 में कलिंग पर आक्रमण और भारी नरसंहार के बाद अशोक ने बुद्ध के शांति के मार्ग को चुना। डॉ. कुमार कहते हैं कि राजा हर जगह मौजूद नहीं रह सकता है, इसलिए अशोक ने स्तंभों की स्थापना कराई थी। बाद में शेरों की छवि को सौम्य बनाया गया।

स्तंभों का है अपना अलग संदेश
अशोक स्तंभ का अपना अलग संदेश है। इन स्तंभों के जरिए अशोक ने अपनी उपलब्धता हर जगह दिखा दी थी। अब तक मिले अशोक स्तंभों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि सारनाथ और सांची में सिंहों का ऊपरी हिस्सा दिखता है। सारनाथ के जिस अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह में शामिल किया गया है, उसमें चार एशिया मूल के शेर दिखाई देते हैं। ये शेर शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गौरव को प्रदर्शित करते हैं। इसके नीचे एक घोड़ा और एक बैल है। इसके बीच में धर्म चक्र है। चक्र के पूर्वी भाग में एक हाथी, पश्चिमी भाग में एक बैल, दक्षिणी भाग में घोड़े और उत्तरी भाग में शेर है। ये बीच में बने पहियों से अलग होते हैं।

सम्राट अशोक ने बिहार के वैशाली, लौरिया और रामपुरवा में भी स्तंभों का निर्माण कराया था। यहां पर बने पिलर पर दो शेर बैठे दिखते हैं। एक शेर चौंका हुआ और दूसरा सुस्ताया सा दिखता है। चीनी यात्री फाह्यान ने भारत की यात्रा वृतांत में मौर्य वंश की राजधानी पाटलिपुत्र में भी अशोक स्तंभ के बने होने का जिक्र किया है। हालांकि, इस स्तंभ को अब तक खोजा नहीं जा सका है।

अशोक ने दिखाई थी धमक
अशोक चक्रवर्ती सम्राट थे। यानी सभी छोटी-मोटी रियासतों को साफ संदेश था कि आप हमारे अधीन हैं। अपने साम्राज्य में उन्होंने एक प्रतीक चिन्ह के रूप में इसे स्थापित कराकर संदेश दिा था कि हम आप पर नजर रखे हुए हैं। किसी प्रकार की बगावत की सोचिएगा भी मत। स्तंभों को सम्राट अशोक की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। बिहार के वैशाली, लौरिया और रामपुरवा के स्तंभ इसकी तस्दीक भी करते हैं। सियासत के राजाओं के साथ-साथ जनता को भी एक संदेश दिया गया था कि राजा आप पर नजर रखे हुए है। आप पर आने वाले हर खतरे को लेकर शेर की तरह चौकन्ना भी है।

माना जाता है कि इन इलाकों में बनवाए गए शेर अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार करने से पहले के हैं। वहीं, सारनाथ और सांची में मिले शेर उनके शांतिप्रिय बनने के बाद बौद्ध धर्म के हमेशा गतिशील होने के संदेश को प्रदर्शित करते हैं।

अशोक ने दिया बड़ा संदेश
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कल्चरल जियोग्राफी एंड हेरिटेज स्टडीज के प्रोफेसर राणा पीबी सिंह कहते हैं कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अपने मंत्री समूह और बौद्ध भिक्षुओं से चर्चा के बाद लोगों के बीच शांति का संदेश देने के लिए शेरों की इस मुद्रा को एक बड़े पिलर पर स्थापित कराया। उन्होंने कहा कि शेरों की मुद्रा को लेकर कोई विवाद ही नहीं है। वे कहते हैं कि दोनों अशोक स्तंभों के निर्माण का वक्त अलग है और इसमें बड़ा अंतर भी है। जब कोई चीज किसी की प्रतिकृति बनती है तो यह तय है कि उससे थोड़ी अलग होगी। इस पर किसी विवाद की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि देश की शांति और सौहार्द्र को अपनाने वाले देश की है। प्रतिकृति पर विवाद अनावश्यक है।

टीएमसी सांसद ने ट्वीट पर बढ़ा विवाद
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सारनाथ और सेंट्रल विस्टा पर लगे शेरों की तस्वीर को पोस्ट करते हुए सवाल खड़ा किया। उन्होंने ट्वीट कर पूरे मामले में विवाद को गरमा दिया है। महुआ मोइत्रा ने लिखा कि सच कहा जाए तो सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते तक हम पहुंच गए हैं। लंबे समय से आत्मा में पड़ा संक्रमण बाहर आया है। उनके ट्वीट पर अब सेंट्रल विस्टा के शेरों का मुद्दा खासा गरमा गया है। दावा किया जा रहा है कि शेर का मुंह काफी खुला हुआ है। इससे साफ है कि वह आक्रामक मुद्रा में है। यह देश की शांत और सौम्य छवि के उलट है। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि 130 करोड़ देशवासी देखें कि देश के साथ क्या हो रहा है।

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