शरीर की नहीं आत्मा की रक्षा करो

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शरीर की नहीं आत्मा की रक्षा करो

तिलवाराघाट स्थित दयोदय तीर्थ गौशाला में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

जबलपुर। तिलवाराघाट स्थित दयोदय तीर्थ गौशाला में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि शरीर की नहीं आत्मा की रक्षा करो। आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होई। यूं तो इस जीव को साथी सगा न गाना कोई। यानि आप अकेले आए थे और अकेले ही आपको जाना है। मृत्यु के समय कोई भी साथी, सगा नहीं होता। इसलिए जब तक संसार में हैं, आप धर्म-कर्म उत्तम कार्य और दूसरों की सेवा में अपने समय को लगाएं। तभी मोक्ष मार्ग मिल सकता है।

घोड़े की तरह बनें सेवाभावी-
उन्होंने समझाया कि त्रियांच् जीव में पशु-पक्षी सभी आते हैं। इनमें कुछ बहुत बलशाली होते हैं और कुछ बहुत कार्यशील। कुछ जानवर अपने स्वामी की इतनी सेवा और उनका इतना ख्याल रखते हैं जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। इन्हीं जीवों में एक जीव है घोड़ा। यदि हम घोड़े के विषय में चर्चा करें तो ज्ञात होता है कि कई मांसाहारी देशों में रहने के बाद भी शुद्ध शाकाहारी बना रहता है। घोड़ा अपने मालिक का पूर्ण वफादार होता है। सदैव मालिक की सेवा में तत्पर रहता है। ऐसा माना जाता है कि घोड़ा कभी सोता नहीं है । न ही कभी थक कर जमीन पर बैठता है। अपनी आलस मिटाने के लिए कभी-कभी घोड़ा जमीन पर लोटता अवश्य है। लेकिन कितनी भी उम्र हो जाए घोड़ा नहीं बैठता। वह सदैव अपने चारों पैरों में से एक पैर उठाये रहता है। जो एहसास कराता है कि वह मालिक की सेवा में कभी भी गति पकडऩे के लिए तत्पर है। दौड़ते समय भी वह अपने मालिक का पूरा ख्याल रखता है। किसी-किसी घोड़े में अतिरिक्त गुण होते हैं जो तेज भाग कर अपने मालिक को पुरस्कार भी दिलाते हैं।

निद्रा का दास न बनें-
आचार्यश्री ने कहा कि जिस तरह गिलोय एक कड़वी लेकिन उपयोगी औषधि है। यदि गिलोय नीम के पेड़ के साथ लिपटकर बड़ा हुआ है, तो गिलोय की उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि हमारे तीर्थंकर भी अपनी तपस्या के समय कभी शायद ही सोए थे। इसके प्रमाण नहीं हैं। भगवान बाहुबली तो कभी भी निद्रा में गए ही नहीं। एक ही स्थान पर तपस्या करते रहे। जैन मुनि को भी निद्रा बंध नहीं होना चाहिए। जैन मुनि कभी भी सीधे या उल्टी अवस्था में लेट कर विश्राम नहीं करते। आप लोगों को भी संकल्प लेना चाहिए कि हम अनावश्यक निद्रा देवी का प्रवेश न होने दें। जैन मुनियों को आमंत्रण या आग्रह स्वीकार नहीं है। वह तो सत्याग्रह करते हैं। एकांत में बैठने से निद्रा की जगह चिंता आती है। एकांत में आपको निद्रा इसलिए भी नहीं आती कि आप भय और असुरक्षा से ग्रस्त रहते हैं। जहां भय होगा वहां कैसे निद्रा आएगी।





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