विशेष आलेख : जब महात्मा गांधी ने बताया था पत्रकारिता का माहत्व और मूल मंत्र | Mahatma Gandhi thoughts on Journalism by Dr. Subhash Kumar | Patrika News

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विशेष आलेख : जब महात्मा गांधी ने बताया था पत्रकारिता का माहत्व और मूल मंत्र | Mahatma Gandhi thoughts on Journalism by Dr. Subhash Kumar | Patrika News

विशेष आलेख : जब महात्मा गांधी ने बताया था पत्रकारिता का माहत्व और मूल मंत्र | Mahatma Gandhi thoughts on Journalism by Dr. Subhash Kumar | Patrika News

महात्मा गांधी ने 6 अक्टूबर 1921 के अंक में कहा था कि ‘हमें समाचार पत्र तथ्यों के अध्ययन के लिए पढ़ने चाहिए, उन्हें यह अनुमति नहीं देनी चाहिए कि वे हमारे स्वतंत्र चिंतन को समाप्त करें। स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र साहचर्य और स्वतंत्र प्रेस उनके लिए लगभग ‘पूर्ण स्वराज’ था।’ उनका मत था कि प्रेस हमारी स्वतंत्रता को बरकरार रखें।

महात्मा गांधी ने ‘इंडियन ओपिनियन’ के जरिए एक ही लक्ष्य रखा कि भारतीय समुदाय की जरूरतों और इच्छाओं से अवगत करवाकर उन्हें एकता के सूत्र में पिरोया जाएं। गांधी जी के लिए पत्रकारिता न सिर्फ स्वाधीनता आंदोलन का हिस्सा थी, बल्कि देश की सेवा का एक सर्वोत्तम माध्यम था। समाज के सम्पूर्ण विकास की चेष्टा उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से की। पत्रकारिता में उन्होंने व्यावसायिकरण की घोर निंदा की। गांधी जी का मानना था कि देश के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जरूरी है कि उन्हें पत्रकारिता से जोड़ा जाएं। उनका ध्येय पत्रकारिता के माध्यम से सम्पूर्ण समाज को जोड़ना था।

पत्रकारिता का उद्देश्य सिर्फ सूचना देना नहीं, प्रेरित करना भी है
महात्मा गांधी ने अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती भाषाओं में लेखन किया। उन्होंने कई अखबार अनेक भाषाओं में निकाले। लेकिन सभी का मूल उद्देश्य एक दूसरे की भावना को जोड़कर उन्हें सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक जागरूकता देनी था। इसी जागरूकता के बाद उन्होंने इसे आंदोलन के रूप में लोगों के सामने प्रदर्शित किया। समाज में सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। उनका मानना था कि पत्रकारिता का उद्देश्य लोगों को प्राथमिक सूचना मात्र देना नहीं है बल्कि लोगों को प्रेरित करना भी है।

गांधी ने दी अखबार की भाषाओं को नई धार
महात्मा गांधी एक लेखक के तौर पर भी अधिक जाने गए। उन्होंने अखबारों की क्लासिकल भाषाओं का विरोध किया। अपनी लिखावट में उन्होंने सरल और सहज भाषाओं को ही परिलक्षित किया। वैसे भी गांधी की पुस्तकों में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वो सरल भाषा के हिमायती थे। उनका मानना था कि अखबार की भाषा सरल और बोधगम्य ही होनी चाहिए ताकि वो लोगों के लिए एक सशक्त माध्यम बन सके। हालांकि आज भी कई बड़े अखबार उस सामान्य लिखावट तक पहुंच भी नहीं सके है।

विज्ञापन नहीं बल्कि समाजोन्मुख हो कंटेंट
गांधी जी ने हमेशा ही अखबार को रोजगार नहीं बल्कि सेवा का माध्यम माना है। वे कहते रहे कि अखबारों को विज्ञापनों पर फोकस नहीं होना चाहिए, अखबार का कंटेंट हमेशा समाजोन्मुख होना चाहिए। उनके संवाद और सम्प्रेषण की कला कौशल अखबार के माध्यम से जनमानस तक पहुंचती थी, जिसके चलते उन्हें राष्ट्रपिता के तौर पर पहचान मिली। उनका मानना था कि मूल्य आधारित समाजोन्मुखी पत्रकारिता ही देश की दिशा और दशा बदल सकती है। उन्होंने कहा कि इंसान का नैतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास हो इसके लिए पत्रकारिता आदर्शमूलक रहेगी। इंडियन ओपिनियन के अलावा महात्मा गांधी ने यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया। गांधी ने अपने पहले संस्करण में ही पाठकों के लिए एक नोट दिया की समाचार पत्र कोई विज्ञापन नहीं लेगा।



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