परिवारवाद की राजनीति में परिवार और पार्टी के बीच ‘दरार’ की 5 कहानी

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परिवारवाद की राजनीति में परिवार और पार्टी के बीच ‘दरार’ की 5 कहानी

हाइलाइट्स

  • पति की मौत के बाद मेनका गांधी ने गांधी परिवार से तोड़ा नाता
  • समाजवादी पार्टी में मुलायम-शिवपाल-अखिलेश के बीच विवाद जारी
  • लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान की पार्टी भी टूटी परिवार भी बिखरा
  • राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक लालू प्रसाद यादव के परिवार में कलह

पटना।
देश और प्रदेश की राजनीति करने वाले कई ऐसे परिवार हैं जिन्होंने अपनी विरासत परिवार के लोगों को ही सौंपी है। गांधी नेहरू परिवार वाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपने समाजवादी पार्टी का उत्तराधिकारी भी अपने बेटे को ही बनाया, लेकिन उनके परिवार के भीतर ही घमासान छिड़ा है।

राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना करने वाले और खुद को कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण का शिष्य बताने वाले लालू प्रसाद यादव को भी सामाजिक न्याय का सबसे बड़ा चिंतक अपने ही परिवार में मिला। उन्होंने पहले बड़े बेटे तेजप्रताप को दरकिनार कर छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाया और बिहार की सत्ता से हटने के बाद, पार्टी की कमान भी उनके हाथ में थमा दी। नतीजा आज लालू प्रसाद यादव के परिवार की कहानी भी मुलायम सिंह यादव के परिवार से जुदा नहीं है।

गांधी परिवार से मेनका गांधी ने तोड़ा नाता


देश के बड़े राजनीतिक परिवार, गांधी परिवार में संजय गांधी के निधन के बाद मौत को लेकर हुए कलह के कारण उनकी पत्नी मेनका गांधी ने बगावत कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चली गईं। नतीजा यह निकला कि मेनका गांधी ने परिवार से अलग होकर कांग्रेस के खिलाफ राजनीति शुरू कर दिया। फिलहाल मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी भाजपा में हैं। बता दें कि 1980 में जब वरुण गांधी के पिता संजय गांधी की मौत एक विमान दुर्घटना में हुई थी तब उनकी उम्र महज 3 महीने की थी। आज परिवारवाद की वजह से ही कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता नाराज है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर कभी सोनिया गांधी तो कभी राहुल गांधी को बिठाए जाने से नाराज 23 वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आने वाले समय में पार्टी की हालत और भी पतली कर सकते हैं।

समाजवादी पार्टी में मुलायम-शिवपाल-अखिलेश विवाद

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कांग्रेस की तरह उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी में भी पारिवारिक विवाद देखने को मिलता है। राम मनोहर लोहिया को आदर्श मानने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी, तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वे खुद ही पार्टी से अलग हो जायेंगे। जब मुलायम के भाई शिवपाल यादव अपने 13 साल बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव के विरोध में खड़े हो गए। लेकिन जब वे अखिलेश सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता न दिखा सके तो शिवपाल यादव ने दूसरी पार्टी बनाने की कोशिश में लग गए। दूसरी तरफ अखिलेश के रिश्ते भी अपने पिता मुलायम सिंह यादव से बिगड़ने लगे। आज की तारीख में भी मुलायम परिवार में आपसी खींचतान जारी है।

बाला साहेब ठाकरे का परिवार भी टूटा

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महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहेब ठाकरे और शिवसेना सिक्का आज भी चलता है। बाला साहेब ठाकरे की वजह से लंबे समय तक परिवार एकजुट रहा। लेकिन पावर गेम में बाला साहेब के भतीजे राज ठाकरे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी। इसे देख बाला साहेब के पुत्र उद्धव ठाकरे ने अपने पिता के जरिये राज ठाकरे को कंट्रोल करने की कोशिश की। लेकिन उद्धव ठाकरे की इस कोशिश ने राज ठाकरे को आर भी ज्यादा आक्रामक बना दिया और उन्होंने शिव सेना से अलग होकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन कर लिया।

लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान का परिवार भी बिखरा

लालू प्रसाद यादव से अलग होने के बाद रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। सत्ता की चाबी जेब में लेकर घूमने वाले रामविलास पासवान ने पार्टी का गठन करते वक्त कभी नहीं सोचा होगा कि उनके निधन के बाद न सिर्फ पार्टी के दो टुकड़े होंगे, बल्कि उनका परिवार भी बिखर जाएगा।

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रामविलास पासवान के पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच पार्टी के उत्तराधिकारी बनने की लड़ाई का नतीजा यह हुआ कि पार्टी दो टुकड़ों में बंट गई। अब रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पार्टी के सिंबल को चुनाव आयोग ने फ्रीज कर दिया है। चुनाव आयोग ने रामविलास के भाई पशुपति पारस को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का नाम दिया और चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन एलॉट किया है। वही रामविलास के पुत्र चिराग पासवान को पार्टी का नाम लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास और चुनाव चिन्ह हेलीकॉप्टर अलॉट कर दिया है।

राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक लालू प्रसाद यादव के परिवार में कलह
मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान की तरह लालू प्रसाद यादव ने भी यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनके जीते जी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए परिवार के अंदर ही घमासान मच सकता है। लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी के बीच शीत युद्ध जारी है। उसे देखकर अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि लालू परिवार में किस तरह की राजनीतिक खींचतान है। जब से लालू प्रसाद यादव ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के बजाय छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर भरोसा जताना शुरू किया तभी से परिवार के भीतर चिंगारी सुलगने लगी थी, जो अब आग का रूप ले चुकी है।

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लालू परिवार में सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती के अलावा तीसरे नंबर की बेटी रोहिणी आचार्य के साथ तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव की अलग अलग राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। लालू प्रसाद यादव के इन बच्चों के अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस कदर भरी है कि आने वाले समय में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो के परिवार का हाल भी दिवंगत रामविलास पासवान और मुलायम सिंह यादव के परिवार जैसा हो सकता है।

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इनके अलावा जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस में शेख़ अब्दुल्ला के बाद फारूक अब्दुल्ला और अब उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के हाथ में कमान हैं। जम्मू कश्मीर में ही मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अब महबूबा मुफ़्ती संभाल रही हैं। हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल को चौधरी देवीलाल के बाद उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला चला रहे हैं। इसी प्रकार अब्दुल वहाद ओवैसी द्वारा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का विस्तार उनके बेटे असदुद्दीन ओवैसी ही कर रहे हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में मायावती बहुजन समाज पार्टी (BSP) की कमान अपने भाई को सौंपने की तैयारी लगभग पूरी कर चुकी हैं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी TMC का उत्तराधिकारी अपने भतीजे को बना सकती हैं। यानी देश में ज्यादातर क्षेत्रीय राजनीतिक दल में परिवारवाद ही हावी है।

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