नक्सलियों की शरणस्थली में अब रोजगार की ‘झप्पी

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नक्सलियों की शरणस्थली में अब रोजगार की ‘झप्पी

पुलिस की मुहिम: मंडला-बालाघाट के युवा कर रहे हैदराबाद-बेंगलूरु में नौकरी

भोपाल. कान्हा नेशनल पार्क के बफर जोन में बसे 160 गांवों को नक्सलियों की शरण स्थली कहा जाता है। इसे नक्सलियों ने कान्हा भोरमदेव यानी केवी डिवीजन नाम दिया है। शिक्षा व रोजगार नहीं होने से बालाघाट, मंडला जिलों के बच्चे गलत राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में पुलिस ने यहां के युवाओं को रोजगार दिलाने का बीड़ा उठाया है।

इसके तहत एलएंडटी कंपनी के साथ मिलकर 5वीं से 8वीं तक पढ़े युवाओं को हैदराबाद, मुंबई और विशाखापट्नम में ट्रेनिंग कराकर 15 से 18 हजार रुपए महीने की नौकरी दिलवाई जा रही है। पिछले छह महीने में 133 युवाओं को हैदराबाद और बेंगलूरु में 18 हजार रुपए प्रतिमाह के वेतन पर नौकरी मिली है। इलेक्ट्रीशियन, वेल्डर, कारपेंटर, बेंडिंग और मेशन वो फील्ड में युवाओं को स्किल्ड बनाया जाता है।

युवाओं के जीवन में नई रोशनी
कान्हा नेशनल पार्क के बफर जोन में बसे खारी गांव से विशाखापट्नम और कन्याकुमारी गए यशवंत और योगेश के भाई दीपक सारवे कहते हैं कि नौकरी के कारण उन्होंने गांव में नया घर बनवा लिया है। बेंगलूरु में नौकरी कर रहे हेमंत ने कहा कि कम पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी लगना हमारे लिए सपना पूरा होने जैसा है। पंड्रापानी, लालबर्रा से सटे नैनपुर सहित अन्य गांवों के युवाओं को भी नौकरी मिली है।

ये है तांडादलम का इलाका
बालाघाट और मंडला जिलों में पिछले एक साल में वारदातें बढ़ी हैं। मंडला में दो बार पुलिस मुठभेड़ में नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ है। बालाघाट में भी नक्सली-पुलिस मुठभेड़ हो चुकी है। हाल ही में बालाघाट में अर्बन नक्सलियों का बड़ा गिरोह पकड़ाया था जिसकी योजना शहीद दिवस पर बड़ी वारदात करने की थी। इस इलाके से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा लगती है, इसलिए नक्सलियों ने इसको अपनी शरण स्थली बनाया है। केवी डिवीजन के साथ यहां नक्सलियों ने प्लाटून विस्तार दो और तीन डिवीजन भी बनाई हैं। यहां पर तांडादलम और मलाजखंड दलम का इलाका माना जा है।

133 को मिली नौकरी
हाल के दिनों में 133 बच्चों को पुलिस की मदद से नौकरी दिलाई जा चुकी है। उम्मीद है आने वाले समय में नक्सल प्रभावित इन जिलों के युवाओं के लिए रोजगार के और भी नए मौके पैदा हो सकेंगे। हमारी कोशिश है कि ये युवा रोजगार से जुड़ें, ताकि इनको गलत रास्तों पर जाने से रोका जा सके।
केपी वेंकटेश्वर राव, एडीजी, बालाघाट













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