तोप से उड़ाया, सिर से चमड़ी उधेड़ी फिर ब्रिटिश महारानी को गिफ्ट की खोपड़ी…शहीद आलम बेग के साथ अंग्रेजों की क्रूरता पढ़ कांप जाएगी रूह

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तोप से उड़ाया, सिर से चमड़ी उधेड़ी फिर ब्रिटिश महारानी को गिफ्ट की खोपड़ी…शहीद आलम बेग के साथ अंग्रेजों की क्रूरता पढ़ कांप जाएगी रूह

चंडीगढ़: पंजाब के अजनाला (Ajnala) में अंग्रेजों ने 1857 में भारतीय स‍िपाह‍ियों के साथ जो क्रूरता की थी, उसकी परत खुलने लगी है। लगभग 165 साल बाद पुरातत्वविदों ने यह सिद्ध कर दिया है क‍ि अमृतसर, अजनाला के कुएं (Ajnala well) में जो नर कंकाल म‍िले थे वे भारतीय स‍िपाह‍ियों के थे जिन्‍होंने 1857 में अंग्रजों से बगावत कर दी थी। 282 वीरों को अंग्रेजों ने मारकर कुएं में डाल दिया था। इस कड़ी में अब हवलदार आलम बेग (freedom fighter Alam Beg) की कहानी भी जुड़ गई जिनकी खोपड़ी आज भी इंग्‍लैंड (England) के एक पब में रखी गई है। ये खोपड़ी इंग्‍लैंड की महारानी को उपहार स्‍वरूप देने के लिए ले जाया गया था। इस जिक्र ब्र‍िटिश इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी क‍िताब द स्‍कल ऑफ आलम बेग (the skull of alum bheg) में किया है।

अजनाला नरसंहार से जुड़ी है कड़ी
आलम बेग ब्र‍िटिश सेना में शामिल थे। उनती तैनाती मियां मीर ( अब पा‍किस्‍तान) में थी। तब अमृतसर के आयुक्‍त रहे फ्रेडरिक हेनरी कूपर ने अपनी किताब द क्राइसिस इन द पंजाब में लिखा था क‍ि यहां 1857 में लगभग 500 भारतीय स‍िपाह‍ियों ने बगावत कर दी थी। हालांक‍ि कूपर ने अपनी क‍िताब द क्राइसिस इन द पंजाब में इसका जिक्र करते हैं क‍ि 500 से ज्‍यादा भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। वे लिखते हैं क‍ि भारतीय सिपाही पंजाब की ओर बढ़ रहे थे। अंग्रजी फौज ने उनमें से कई को जम्‍मू में रावी नदी के तट पर गोल‍ियों से भुन दिया था। बाकी के बचे सैनिकों को गोली मारकर अजनाला के कुएं में फेंक दिया गया था।

165 साल बाद कंकालों ने बताई ब्र‍िटिश क्रूरता की आप बीती, 282 भारतीय सिपाह‍ियों की शहादत कुएं में थी दफन
कौन थे वीर आलम बेग
इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी क‍िताब द स्‍लकल ऑफ आलम बेग में लिखा है क‍ि आलम अजनाला में मारे गये भारतीय सिपाह‍ियों के मुख‍िया थे। वे वहां से बच निकलने में कामयाब हो गये थे। हवलदार आलम बेग विद्रोह कर रही 46 रेजीमेंट बंगाल नॉर्थ इंफ्रेंट्री बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। लेकिन बाद में उन्‍होंने कानपुर से पकड़क सियालकोट लाया गया। ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी कूपर को पता चला कि रानी विक्टोरिया आ रही हैं तो उन्हें आलम बेग का सिर भेंट करने की योजना बनाई। सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में रानी के सामने उसे तोप से उड़ा दिया गया। इसके बाद उनकी खोपड़ी को गरम पानी में डालकर चमड़ी उतारी गई। उनके सिर को ग्रिसली ट्रॉफी नाम दिया गया। यह सिर 1858 में इंग्लैंड ले जाया गया। ब्र‍िटेन की महारानी को इंग्‍लैंड में भेंट दिया गया।

skull of alumbegh

शहीद आलम बेग की खोपड़ी

खोपड़ी की पहचान कैसे हुई?
खोपड़ी को कैप्‍टर एआर कॉस्टेलो इंग्‍लैंड ले गये तो उस समय सियालकोट में कैप्‍टन के पद पर तैनात थे। 1963 में खोपड़ी को लंदन के लॉर्ड क्लाइड पब के एक स्टोर रूम में खोजा गया था जब उसके किसी और ने खरीद लिया था। नए मालिक 1857 से इस युद्ध ट्रॉफी को पाकर खुश नहीं थे। वर्ष 2014 में जब अजनाला में हुई खुदाई में नरकंकाल मिले तो उसी समय वैज्ञानिक वैगनर ने पब मालिकों से संपर्क किया।

किम ए वैगनर और उनकी क‍िताब द स्‍कल ऑफ आलम बेग​

किम ए वैगनर और उनकी क‍िताब द स्‍कल ऑफ आलम बेग

खोपड़ी की आंख में एक आधी गली हुई चिट्ठी थी। यह बात वैज्ञानिक वेंगर को पता लगी तो उन्होंने पूरा रिसर्च किया। चिट्ठी में लिखा था कि आलम बेग को जब तोप से उड़ाया गया था तो उनकी उम्र 32 साल थी। कद पांच फीट सात इंच था। शरीर सुडौल था। वह कभी न थकने वाला इंसान दिख रहा था। रिकॉर्ड में अंग्रेजों ने उस समय लिखा था कि आलम बेग पक्का देशभक्त था जो किसी हाल में झुकने का तैयार नहीं था।

आलम बेग की खोपड़ी में मिली थी ये चिट्ठी

आलम बेग की खोपड़ी में मिली थी ये चिट्ठी

चिट्ठी में यह भी लिखा है क‍ि 1857 की क्रांति में हवलदार आलब बेग सबसे व्रिदोही थे। उन्‍होंने अपने ग‍िरोह के साथ मिलकर डॉ ग्राहम को निर्दयातापूर्वक मार डाला था। इसे बाद उन्‍होंने मिस्‍टर हंटर और उनकी पत्‍नी, बच्‍चों को भी मार डाला।

इस बारे में एंथ्रोपोलॉजी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. जेएस सहरावत जिन्‍होंने अजनाला में मिले अवशेषों की जांच कर रहे हैं। वे बताते हैं क‍ि 1857 की क्रांति के दौरान हवलदार आलम बेग को पकड़कर तोप से उड़ाया गया था। उनकी खोपड़ी इंग्लैंड में मिली। वहां के वैज्ञानिक वैगनर व मेरे परिचित वैज्ञानिकों ने मुझे बताया है। पूरा सर्च रिकॉर्ड मिल गया। वे आगे कहते हैं क‍ि हम वैगनर के संपर्क में हैं। वे जल्‍द ही भारत खोपड़ी लेकर आएंगे और हम उनका अंतिम संस्‍कार हिंदू रीति रिवाज से करेंगे।

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इसी पब में मिली थी शहीद आलम बेग की खोपड़ी

किम ए वैगनर लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में ग्लोबल एंड इंपीरियल हिस्ट्री के प्रोफेसर हैं। उन्होंने भारत के इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं, जिनमें ‘ठग्गी: बैंडिट्री एंड द ब्रिटिश इन अर्ली उन्नीसवीं-सेंचुरी इंडिया’, ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1957: रुमर्स, कॉन्सपिरेसीज एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन अप्रीजिंग’, ‘द स्कल ऑफ फिटकरी’ शामिल हैं। भेग: द लाइफ एंड डेथ ऑफ ए रिबेल ऑफ 1857′ और ‘अमृतसर 1919: एन एम्पायर ऑफ फियर एंड द मेकिंग ऑफ ए नरसंहार’ शामिल हैं।



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