गुवाहाटी में बागी विधायकों का जमावड़ा, आखिर पुलिस के रडार से कैसे ‘गायब’ हो जाते हैं नेता, जानिए

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गुवाहाटी में बागी विधायकों का जमावड़ा, आखिर पुलिस के रडार से कैसे ‘गायब’ हो जाते हैं नेता, जानिए

मुंबई: शिवसेना (Shivsena) के दर्जनों नेताओं के महाराष्ट्र से गायब होने और फिर सूरत व गुवाहाटी शिफ्ट होने के बाद महाराष्ट्र (Maharashtra) गृह मंत्रालय के इंटेलिजेंस नेटवर्क की विफलता पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन मुंबई पुलिस के कई अधिकारियों का कहना है कि कई बार नेता अपने गायब होने के लिए खुद पुलिस प्रोटेक्शन फोर्स को वापस कर देते हैं। एक अधिकारी के अनुसार, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री सहित आठ से दस बड़े मंत्रियों/नेताओं के रोज के कार्यक्रम, उनकी वर्तमान लोकेशन का स्टेटस हर दिन सुबह सात बजे और शाम सात बजे डीजीपी, पुलिस कमिश्नर, जॉइंट कमिश्नर व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा जाता है। यह जानकारी प्रोटेक्शन ब्रांच, स्टेट इंटेलिजेंस ब्रांच और स्पेशल ब्रांच (एसबी-वन) के जरिए मिले इनपुट्स के आधार पर भेजी जाती है।

इन सभी वरिष्ठ नेताओं को प्रोटेक्शन ब्रांच से प्रोटेक्शन मिलती है। प्रोटेक्शन विधायकों को भी दी जाती है, लेकिन कई बार नेता अपने पीए के जरिए खुद ही प्रोटेक्शन टीम को संदेश भिजवाता है कि वह इस या उस होटल में पूरी रात रुकेगा, इसलिए प्रोटेक्शन टीम फिलहाल चली जाए। जब कल सुबह हम होटल से निकलेंगे, तो प्रोटेक्शन टीम को फोन कर देंगे।

टॉप पुलिस अधिकारियों को शेयर की जाती सूचनाएं
कई बार नेता यह बताते भी नहीं हैं। वह किसी और गेट से अंदर जाते हैं और दूसरे गेट से बाहर निकल जाते हैं। कई घंटे बाद पीए इसकी सूचना प्रोटेक्शन टीम को देता है कि नेता जी चले गए हैं, आप भी चले जाओ। प्रोटेक्शन टीम का अधिकारी या सिपाही एक डायरी में यह जारी जानकारी लिखता है। यही नहीं, कंट्रोल रूम को भी इसकी सूचना दे देता है। इस अधिकारी के अनुसार, इस तरह की पूरे महाराष्ट्र में रोज 20 से 25 सूचनाएं कंट्रोल रूम या टॉप पुलिस अधिकारियों को शेयर की जाती हैं। चूंकि अब यह प्रक्रिया रूटीन बन गई है, इसलिए पुलिस इस बात को गंभीरता से लेती नहीं कि किसी नेता ने प्रोटेक्शन फोर्स कुछ देर के लिए ही सही, क्यों वापस कर दी?

इस अधिकारी के अनुसार, महाराष्ट्र के एक उप मुख्यमंत्री लावणी डांस देखने के बहुत शौकीन थे। जब वह अपने काफिले के साथ चल रही पुलिस फोर्स को एकाएक वापस जाने को कहते थे, पुलिस समझ जाती थी कि मंत्री जी कहां जा रहे हैं। हालांकि अब सीसीटीवी और मोबाइल सीडीआर का युग है। नेताओं की लोकेशन छिप नहीं सकती। लेकिन यदि कोई नेता अपनी मर्जी से एक शहर से दूसरे शहर निकल गया और वह अपनी निजता भी चाहता है, तो एक शहर की पुलिस दूसरे शहर की पुलिस को उस नेता की उसके शहर में प्रोटेक्शन देने की सूचना भी नहीं देती।

अवैध फोन टैपिंग में फंस चुकी है पुलिस
इस अधिकारी के अनुसार, प्रोटेक्शन फोर्स की टीमें कई बार 24-24 घंटे उस होटल के बाहर रहती हैं, जिस होटल में नेता या मंत्री रुकते हैं, लेकिन प्रोटेक्शन टीम उस नेता या मंत्री के होटल के कमरे में तो नहीं रहती। इसलिए बंद कमरे में क्या खिचड़ी पक रही है, इसकी जानकारी पुलिस कैसे बता सकती है। हां, कई बार होटल की लॉबी के सीसीटीवी फुटेज से इतना जरूर पता चल जाता है कि नेता या मंत्री के कमरे में कौन-कौन गया? लेकिन ऐसा तब किया जाता है, जब ऊपर से मौखिक ही सही कोई आदेश आए। मौखिक आदेश में कई बार पुलिस खुद फंस जाती है।

ताजा उदाहरण अडिशनल डीजी रश्मि शुक्ला का है, जिन पर अवैध फोन टैपिंग में दो एफआईआर पुणे और कोलाबा पुलिस में दर्ज हुईं और बांद्रा साइबर पुलिस भी उनके खिलाफ जांच कर रही है। आरोप है कि ढाई साल पहले के राजनीतिक घटनाक्रम के दौर में नाना पटोले, एकनाथ खडसे सहित कई नेताओं की उन्होंने अवैध फोन टैपिंग करवाई। कई पुलिस वाले फोन टैपिंग की इस अवैध प्रक्रिया को तमाम दबाव के बावजूद रिजेक्ट कर देते हैं। कई बार राजनीतिक इंटेलिजेंस इस वजह से भी फेल हो जाते हैं।

पुलिस के खबरी जेलों में बंद किए जाते हैं
एक अन्य अधिकारी ने एक और महत्वपूर्ण जानकारी दी। उसके अनुसार, देश की जेलों से कई बार इस तरह की खबरें आती हैं कि वहां कैदियों के पास से मोबाइल जब्त किए गए। कई बार वाकई में जेल प्रशासन को पता नहीं रहता कि मोबाइल जेल की बैरक में कैसे पहुंचे। लेकिन कई बार किसी आरोपी तक जानबूझ कर मोबाइल पहुंचाए जाते हैं, ताकि उसके मोबाइल को टैप करके पता चल सके कि विदेश या देश के किसी शहर में छिपे उसके सरगना द्वारा क्या-क्या साजिश रची जा रही है।

कई बार पुलिस अपने किसी खबरी को किसी छोटे-मोटे केस में गिरफ्तार करती है और जेल भिजवा देती है। जेल में वह किसी बैरक में रुकता है। वहां बंद कुछ खतरनाक आरोपियों से दोस्ती का ड्रामा करता है और दस-पंद्रह दिन बाद जमानत पर बाहर आकर पुलिस को जेल में बंद आरोपियों से मिली सूचनाएं शेयर करता है। पुलिस अपना इंटेलिजेंस इस तरह इकट्ठा करती है।

जेल में बंद हर आरोपी को मुकदमे के दौरान कोर्ट में लाया जाता है। यदि मुकदमा नहीं शुरू हुआ, तब भी उसकी हर 14 दिन में कोर्ट में पेशी होती है। यदि आरोपी अंडरवर्ल्ड या किसी आतंकवादी संगठन से जुड़ा है, तो कोर्ट में मौजूद पुलिस तारीख के दौरान इस बात पर खास तौर से नजर रखती है कि उससे मिलने कौन-कौन आया? बाद में इन ‘कौन-कौन’ की जानकारी निकालकर भी किसी साजिश को बेनकाब किया जाता है।

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