‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान में बीजेपी की हमराह बनती क्यों दिख रही हैं ममता, समझें

66


‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान में बीजेपी की हमराह बनती क्यों दिख रही हैं ममता, समझें

नई दिल्ली
पहले अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को टीएमसी में शामिल कराना और फिर कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन यूपीए के वजूद को ही नकारना…नरेंद्र मोदी के मुकाबले खुद को विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर स्थापित करने में जुटीं ममता बनर्जी एक तरह से ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत के अभियान में बीजेपी का साथ दे रही हैं। बंगाल की सत्ता में जीत की हैटट्रिक लगाने के बाद उत्साह से लबरेज दीदी का अगला लक्ष्य टीएमसी को राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का और खुद को नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करना है। इसी कड़ी में वह ‘कांग्रेस-मुक्त’ विपक्ष की राह में आगे बढ़ रही हैं।

बंगाल चुनाव के दौरान ही जाहिर कर दिए इरादे
इसी साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान ही ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया था कि 2024 में वह वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी ताल ठोकेंगी। पीएम को उनके ही संसदीय क्षेत्र में शिकस्त देने का दम भरा। ममता ने तभी अपना लक्ष्य स्पष्ट कर दिया था और अब उसी की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ने के लिए बड़े करीने से गोटियां सेट करने में जुटी हैं।

ममता के हमलों से कांग्रेस में खलबली
यूपीए का अस्तित्व नकारने और बिना नाम लिए राहुल गांधी पर ‘आधा समय विदेश में रहने वाले नेता’ के उनके तंज से कांग्रेस तिलमिलाई हुई है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रमुख चेहरे अधीर रंजन चौधरी दीदी पर लगातार हमलावर हैं। उन पर बीजेपी को मदद पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन दीदी को तो जैसे किसी भी आलोचना की कोई परवाह ही नहीं है। वह अर्जुन की तरह ‘मछली की आंख’ पर निशाना साधना चाहती हैं और उनके लिए ‘मछली की आंख’ है केंद्र की सत्ता से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेदखली। बंगाल चुनाव से पहले तक ममता के तेवर अलग थे, चुनाव के बाद बिल्कुल अलग। पहले ममता जब भी दिल्ली आती थीं तो सोनिया गांधी से जरूर मिलती थीं। लेकिन इस बार संसद के शीतकालीन सत्र से पहले वह जब दिल्ली के दो दिवसीय दौरे पर आईं थीं तो सोनिया से नहीं मिलीं। इतना ही नहीं, संसद में मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बनाने के लिए कांग्रेस की बुलाई बैठक का भी टीएमसी ने बहिष्कार किया।

‘ममता ही मोदी को चुनौती दे सकती हैं’ का नैरेटिव
ममता बनर्जी से जब भी पूछा जाता है कि क्या वह खुद को विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर पेश करना चाहती हैं तो उनका जवाब होता है कि वह तो एक छोटी सी कार्यकर्ता हैं। लक्ष्य बीजेपी और नरेंद्र मोदी की ‘फासीवादी’ सरकार को रोकना है। ममता बनर्जी अब सीधे-सीधे कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रही हैं। जोर देकर यह कह रही हैं कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस में जज्बा नहीं। आधा समय विदेश में रहने वाले नेता बीजेपी को चुनौती नहीं दे सकते। कोई कुछ कर नहीं रहा तो उसमें ‘वह क्या करें’। दीदी यही साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि अगर कोई बीजेपी और नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सकता है तो वो टीएमसी और वह खुद हैं। कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाले गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो तो खुलकर कहते हैं, ‘ममता बनर्जी इकलौती नेता हैं जो लोगों के लिए सड़क पर लड़ रही हैं। वह एकमात्र नेता हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार और बीजेपी को चुनौती दे सकती हैं।’

बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस
कांग्रेस इस वक्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कभी पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली पार्टी आज कई राज्यों में वजूद के संकट से जूझ रही है। एक के बाद एक लगातार चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के तमाम नेता शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं। पार्टी के भीतर असंतुष्ट नेताओं का समूह G23 सक्रिय है। उसके प्रमुख नेता कपिल सिब्बल तो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सार्वजनिक तौर पर नेतृत्व को यह कहकर कठघरे में खड़ा कर दिया कि उन्हें पता ही नहीं, पार्टी में फैसले कौन करता है।

लंबे समय से पार्टी बिना किसी जिन गिने-चुने राज्यों में वह सत्ता में भी है, वहां जबरदस्त अंदरूनी कलह और गुटबाजी से जूझ रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही पार्टी पर हमलावर हैं। राजस्थान में पार्टी अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट में बंटी हुई है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव और सीएम रमन सिंह का गुट है। गुटबाजी की वजह से ही मध्य प्रदेश में हाथ में आई सत्ता चली गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितेंद्र प्रसाद जैसे बड़े युवा नेता बीजेपी का दामन थाम चुके हैं।

कांग्रेस की कमजोरी भुना रहीं ममता
ममता बनर्जी कांग्रेस की कमजोरियों को भुनाने में लगी हैं। टीएमसी के राष्ट्रीय स्तर पर आक्रामक विस्तार की उनकी मुहिम में कांग्रेस के असंतुष्ट नेता उनके आसान टारगेट बन रहे हैं। पिछले महीने पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में टीएमसी कांग्रेस को तोड़कर राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस के कुल 17 में से 12 विधायकों ने टीएमसी का दामन थाम लिया। पूर्वोत्तर में पैठ बढ़ाने के लिए ही टीएमसी ने महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं तेजतर्रार पूर्व सांसद सुष्मिता देव को पार्टी में शामिल किया। गोवा में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हों फलेरियो को तोड़ा। दोनों को राज्यसभा भेजा। पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी भी कांग्रेस छोड़ टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। यूपी में कांग्रेस के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री रहे कमला पति त्रिपाठी के पोते ललितेश त्रिपाठी का ठिकाना भी टीएमसी बनी है। बीजेपी से कांग्रेस में गए पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद कीर्ति आजाद, जेडीयू नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा, हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अशोक तंवर भी पार्टी की सदस्यता ले चुके हैं। आने वाले वक्त में यह लिस्ट और लंबी हो सकती है।



Source link